कुछ भी की कीमत
सोहन नाम का एक व्यक्ति था। वह बहुत ही चालाक था। लोगों को बातों में उलझाकर मूर्ख बना लेता था और फिर उनसे एक मोटी रकम वसूल कर लेता था। इसीलिए उससे बात करने में सब घबराते थे। एक दिन उसने सुना की, सेठ हरिराम बहुत अच्छे, दयालु और जरूरतमन्द की मदद करते हैं। बस फिर धूर्त सोहन ने हरिराम से भी रुपये ऐंठने की योजना बनाई औऱ उनके घर पहुँच गया। सोहन ने सेठजी से कहा कि, मै बहुत गरीब हूँ। कुछ मदद करदे तो आपकी बड़ी कृपा होगी। सेठ हरिराम ने कहा कि, 'तुम जो करने में सक्षम हो वही करना शुरू कर दो और अपनी तनख़्वाह बता दो'। सोहन बोला 'कुछ भी दे देना'।सेठजी के अन्य कर्मचारियों ने बताया कि सोहन बहुत ज्यादा धूर्त, चालाक, बेईमान और मक्कार आदमी है। उससे काम पर नही रखो, वह कोई न कोई बेईमानी जरूर करेगा। सेठजी ने हँस कर बात टाल दी। अब उन कर्मचारियों ने सोहन से पूछा कि, उसने सेठजी से एक निश्चित पगार क्यो नही मांगी, सेठ जी दयावान है जरूरतमन्द की सहायता के लिए मोटी रकम देने के लिए भी तैयार हो जाते। सोहन हँसने लगा पर 'कुछ नहीं बोला क्योंकि, उसने पहले से सोच रखा था कि सेठ से कुछ भी के नाम पर ढेर सारे रुपये माँग लेगा।
काम करते हुए जब एक महीना पूरा हो गया तो वह सेठजी के पास वेतन माँगने पहुँचा। तमाशा देखने के लिए सारे कर्मचारी भी पीछे पीछे आ गए। जब सेठ जी ने पूछा कि कितनी तनख़्वाह दु, तो सोहन बोला कुछ भी दे दीजिए। सेठजी ने पाँच हजार रुपये उसको देने का कहा तो सोहन बोला ये तो बहुत कम है। मुझे तो 'कुछ' चाहिए था। अब सेठ जी ने उसके सामने दस हजार रुपये रख दिये, पर सोहन ने कहा ये तो कुछ नहीं है। सेठ जी ने पन्द्रह हजार उसके सामने रखे और सोहन ने वही बात दोहरा दी कि ये कुछ नहीं है।
सेठ हरि राम अब सारा माजरा समझ गये। उन्होंने सोहन से कहा "मैं समझ गया कि क्या कुछ देना है। मैं तुम्हारा वेतन मंगवाता हूं, तब तक तुम आराम से बैठो। अभी, मैं तम्हारे लिए बढ़िया, स्वादिष्ट, मीठा दूध मंगवाता हूँ।" सेठजी ने एक कर्मचारी को बुलाकर उससे दूध लाने के लिए कहा। सोहन मन मे हिसाब -किताब लगाने लगा कि, एक महीने के काम के लिए वह खूब मोटी रकम वसूल करेगा। तभी उसके सामने दूध आ गया। पीने के लिए मुँह तक ले जाते समय, उसने देखा कि दूध में काला सा कुछ तैर रहा है। उसके मुँह से एकदम ही निकला कि इसमें तो कुछ पड़ा है। सेठ हरीराम ने हँसते हुए कहा कि ठीक है निकाल कर अपने पास रखो क्योंकि तनख्वाह के रूप मे तुम्हें कुछ चाहिए था, तो यह तुम्हारी पूरे महीने की कमाई है। अब सोहन के पास कोई जवाब नहीं था।
ज्यादा के लालच में उसे थोड़ा भी नही मिला। कहते हैं कि "आधी छोड़, पूरी को धाय,आधी मिले ना पूरी पाय"।
अक्सर हमारे साथ भी ऐसा हो जाता है कि, हम किसी काम को यह सोच कर करते हैं कि, बहुत फायदा होगा, लेकिन, ऐसा नहीं होता। तब हमें समझना चाहिए कि, यदि रास्ता सही है, तो मन मुताबिक परिणाम मिलेगा जरूर। बस समय थोड़ा ज्यादा लग सकता है। किसी भी स्थिति में घबराना नहीं चाहिए। अपनी बुद्धि का प्रयोग समझदारी से करके हर हालात के लिए तैयार रहना चाहिए। जो लोग बिना रुके, बिना थके, सही मार्ग पर चलते रहते हैं, वो एक दिन अवश्य सफल होते हैं। अपने आसपास के किसी प्रतिष्ठित, सम्मानित, सफल व्यक्ति को देखिए क्योंकि, वह जिस स्थान पर पहुँचा है। आप भी एक दिन वही होंगे बस उसके लिए आपको अपनी लगन, दृढ निश्चय, सच्चाई, ईमानदारी को कभी नहीं छोड़ना। ये सब खूबियाँ आपको थोड़े समय में ही बुद्धिमान बना देंगी। अगर आप पहले से ही होशियार हैं, तो आपकी बुद्धि को तीव्र, पैना और चतुर कर देंगी। तो अब एक नई लगन, नए निश्चय के साथ अपने रुके हुए काम को, अपने बन्द किये हुए अभियान को और किसी नई शुरुआत को फिर से आगे बढ़ाने के लिए एक नई आशा, विश्वास, उमंग, स्फूर्ति के साथ दुबारा शुरू कीजिए, और सफलता की तरफ़ अपना कदम बढ़ाना आरम्भ कीजिए। इसी कामना के साथ