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Wednesday, January 8, 2020

भय का भूत

भय का भूत

ये एक कुम्हार के परिवार की कहानी है। परिवार का कोई भी एक सदस्य खदान से मिट्टी खोद कर लाता था, और फिर वो उन मिट्टी के बर्तनो को बाजार में बेचते थे। जहाँ से वो मिट्टी खोदते थे, वहां बहुत कीड़े मकोड़े भी थे। और कई बार मिट्टी निकालते समय कीड़े मकोड़े काट लेते थे। तो उन्हें डर भी नही लगता था, क्योंकि, शुरू से ही उन्हें इन सबकी आदत हो गई थी। एक दिन कुम्हार मिट्टी खोद कर लाया तो उसका हाथ मिट्टी में बने बिल में चला गया और बिल मे रहने वाले किसी कीड़े मकोड़े ने उसके हाथ में काट लिया। उसने अपने हाथ पर मिट्टी लगाकर पट्टी बाँध ली, और बर्तन बना कर बाजार में बेचने के लिए चला गया। अगले दिन उसकी पत्नी मिट्टी लेने मैदान में गई तो उसने देखा कि जहाँ पर कुम्हार के हाथ पर किसी कीड़े ने काटा था। वहाँ पर एक जहरीला बिच्छू मरा हुआ पड़ा था। किसान की पत्नी समझ गई कि इसी बिच्छू ने उसके पति को काटा है। वह घबराई हुई घर पहुँची और अपने पति का इंतजार करने लगी। रात को कुम्हार घर आया, पत्नी ने उसकी तबीयत पूछी। कुम्हार बोला हाथ में दर्द है, लेकिन वो सब काम कर रहा है। पत्नी ने खाना देते समय बताया कि, उसने मैदान में मरा हुआ जहरीला बिच्छू देखा, जिसके डंक से इंसान कुछ ही घन्टे में मर जाता है। कुम्हार को तो कुछ भी नहीं हुआ था। पत्नी की बात सुनकर कुम्हार ने खाना खाने के बाद हाथ की पट्टी को खोलकर देखा तो वास्तव में जहरीले बिच्छू के काटने का निशान था। अब तो कुम्हार की हालत खराब हो गई। उसके मुँह से झाग निकलने लगा और वह जमीन पर गिर गया।

इसका अंत क्या हुआ ये महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण ये है कि जब तक कुम्हार को सच्चाई पता नहीं थी, वह सारा काम कर रहा था। पर जैसे ही उसे विष का पता लगा, उसकी हालत खराब हो गई। अनदेखी परेशानी हमारे मन मे डर के भूत को बैठा देती है, औऱ हम काम करने से पहले ही डर के कारन हार जाते हैं। अगर पहले से ही मालूम हो जाए की काम कठिन है, तो हम घबरा जाते हैं। पर कितना भी मुश्किल काम हो, जब तक हमें पता नहीं होता, तब तक हम उस काम को करने की पूरी कोशिश करते है। तनाव, घबराहट और व्याकुलता से बचने के लिए हरेक काम को आसान समझ कर करना चाहिए। बीमारी कितनी भी बड़ी हो डॉक्टर हमेशा कहते हैं कि, ठीक हो जाओगे। बस यही विश्वास और सकारात्मकता हमेशा अपने साथ रखें तो मुसीबत, बीमारी, परेशानी औऱ मुश्किल हालात हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।

खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।

Wednesday, January 1, 2020

Children's Upbringing

Children's Upbringing

Children should be raised in such an environment in childhood that a healthy, sensible personality is grown up. The effect of whatever happens in childhood is reflected in the personality of the child's future.

Chubby and healthy Nikunj studied in a co-educational school. One day his mother went to his class for some work, then saw the girls sitting in separate queues and the boys sitting on separate benches. He was very surprised to see this. She told the class teacher that "when it is a co-educational school, why are boys and girls seated in separate rows". The teacher blushed and said, "it doesn't matter where the children are sitting and how". Mother said, "In this way, children will start thinking of girls differently from childhood". The teacher said, "This is a good thing. Children will especially respect girls". Then the mother said that "This is childhood. The difference between boys and girls should not come in the mind of children at all. Co-education means to sit together and study". Now a few days later, the same teacher called the mother to school and told that Nikunj pushed the girl sitting with her. In class, the mother noticed that the girl sitting with Nikunj is more chubby than Nikunj. The children said that due to the lack of space on the bench, the girl pushed Nikunj, causing him to fall down, due to which all the children started laughing. Nikunj started sitting again after sweeping the clothes, but by then the girl sat comfortably, so the space on the bench was reduced further. When he started to sit, the girl again pushed Tej. Nikunj's elbow crashed into the adjacent bench. He angrily pulled the girl's hair. The teacher blamed Nikunj completely. The mother listened to it and laughed saying that "It is not the fault of a child because, instead of having two obese children together in a classroom, a fat child with a thin child would be seated, instead of sitting on a bench, There is no fight ".

Children start fighting over small things. Then teach them to face the quarrel in peace. At that time, if a child would get up and show the teacher the remaining space on the bench and say that he could not sit in such a small place, then there would not be a fight. In childhood, make the habit of resolving the fight as a problem. Anger always hurts, be it children or older. Everyone should be respected because what they give comes back after some time. If we answer the fight in the same way, then the matter increases. But spontaneously and calmly answering poorly spoken language can calm the anger of the angry person, and will also avoid high blood pressure and mental stress. When someone uses profanity, it is very difficult to remain calm but not impossible. With a little practice, keeping quiet in these situations, thinking correctly and giving accurate answers will start.

Be happy, be healthy, be busy, be cool.

बच्चों की परवरिश

बच्चों की परवरिश

बच्चों को बचपन मे ही इस तरह के परिवेश में पालना चाहिए कि बड़े होकर एक स्वस्थ, समझदार व्यक्तित्व सामने आए। बचपन में जो भी होता है उसी का प्रभाव बच्चे के आने वाले समय के व्यक्तित्व में झलकता है।

गोल-मटोल और स्वस्थ निकुंज सहशिक्षा विद्यालय में पढ़ता था। एक दिन उसकी माँ किसी काम से उसकी कक्षा में चली गई, तो देखा लड़कियाँ अलग कतार में बैठी हैं और लड़कों को अलग बैंच पर बैठाया हुआ है। यह देखकर उसे बहुत आश्चर्य हुआ। उसने कक्षा अध्यापिका से कहा कि "जब यह सहशिक्षा विद्यालय है, तो लड़कों और लड़कियों को अलग अलग पंक्तियों में क्यों बैठाया गया है"। अध्यापिका ने झेंपते हुए कहा कि "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बच्चे कहॉ और कैसे बैठे हैं"। माँ ने कहा "इस तरह तो, बच्चे बचपन से ही लड़कियों को अपने से अलग समझने लगेँगे"। टीचर बोली "ये तो अच्छी बात है। बच्चे लड़कियों का ख़ास सम्मान करेंगे"। तब माँ ने कहा कि "यह बचपन है। इसमें लड़के और लड़की का भेद बच्चों के मस्तिष्क में बिलकुल भी नहीं आना चाहिए। सह शिक्षा का अर्थ है, एकसाथ बैठ कर पढ़ाई करना"। अब कुछ दिन बाद उन्ही अध्यापिका जी ने माँ को स्कूल में बुलवाया ओर बताया कि, निकुंज ने अपने साथ बैठने वाली लड़की को धक्का मारा है। कक्षा में माँ ने देखा कि निकुंज के साथ बैठी बच्ची निकुंज से भी ज्यादा गोल मटोल है। बच्चों ने बताया कि बैंच पर जगह कम होने की वजह लड़की ने निकुंज को धक्का दे दिया जिससे वह नीचे गिर गया, जिसके कारण सब बच्चें हँसने लगे। निकुंज कपड़े झाड़कर दुबारा बैठने लगा पर तब तक बच्ची आराम से बैठ गई, तो बैंच पर जगह और कम हो गईं। जब वह बैठने लगा तो बच्ची ने दुबारा तेज की धक्का दे दिया। निकुंज की कोहनी साथ के बैंच से टकरा कर खुरच गई। उसने गुस्से में लड़की के बाल खींच दिए। टीचर ने पूरी गलती निकुंज की ही थेरायी। माँ ने सारी बात सुनी और हँसते हुए कहा कि "किसी बच्चे की गलती नहीं है क्योंकि, कक्षा में दो मोटे बच्चों को एक साथ, एक बैंच पर बैठाने की बजाए, एक पतले बच्चें के साथ एक मोटे बच्चे को बैठा दिया जाता, तो यह लड़ाई होती ही नहीं"।

बच्चे छोटी-छोटी बातों पर लड़ने लगते हैं। तब उन्हें सिखाये कि, झगड़ो का शांति से सामना करें। उस समय अगर कोई एक बच्चा उठ कर अध्यापिका को बैंच पर बची हुई जगह दिखा कर कहता कि इतनी कम जगह पर बैठ नहीं सकते तो लड़ाई नहीं होती। बचपन में ही लड़ाई को एक समस्या मान कर उसका समाधन निकलने की आदत बनाये। बच्चे हो या बड़े हो गुस्सा हमेशा नुकसान ही पहुँचाता है। सम्मान सबका करना चाहिए क्योंकि जो देंगे वही कुछ समय बाद पलट कर वापस आता है। लड़ाई का जवाब उसी तरह से देंगे, तो बात बढ़ जाती है। लेकिन खराब भाषा भाषा बोलने का उत्तर सहजता और शांति से देने से गुस्सा करने वाले का क्रोध शान्त हो सकता है, और स्वयं भी उच्च रक्तचाप और मानसिक तनाव से भी बचे रहेंगे। जब कोई अपशब्दों का प्रयोग करता है, तो शांत रहना बहुत ज्यादा मुश्किल होता है परन्तु नामुमकिन नहीं है। थोड़े अभ्यास से इन स्थितियों में चुप रहना, सही तरीके से सोचकर सटीक जवाब देना आने लगेगा।

खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।

Wednesday, December 18, 2019

Right Direction

Right Direction

Sometimes we do not understand why our work is not proceeding properly. Even after taking a lot of time and doing some work, that work does not lead to realization.

Madhava was a devotee of Lord Krishna. He often thought that "I do so much devotion, worship, prayer to God but God does not listen to me". Madhav felt that everyone's time was coming, only his time was going bad. His worship is of no use. Lord Shri Krishna Ji is not paying attention to him, then his works are not being done properly. After thinking about such a thing for several days, one day he picked up the idol of Krishna Ji and slammed it on the top of the room and started worshiping him by bringing the idol of Durga Ji. Every morning, incense-lamps started to rotate in front of the idol. One day, he got the idea that the smoke of incense and lamp goes directly upwards and there is a statue of Krishna Ji above, then he must also be smelling this smoke. As soon as the idea came, he picked up a cloth and tied it on the nose of the idol and said that even when I do not work, I cannot smell my sunshine. As soon as he spoke, Krishna Ji appeared visually. God said that till today you were worshiping me like a lifeless idol of stone. Today for the first time you thought in your mind that I breathe. Just then I appeared to remove your problem. Where the direction of your thinking gets corrected, the work also starts to get fixed.

This is a religious story, so God came forward, it does not happen in real life. But it is understandable from this story that the work you do should be done with full dedication, loyalty, and dedication. Madhav did not do puja with all his heart. He used to do all the puja only to follow the rules. So as soon as he thought that the idol breathed, that was the moment when his sense of mind turned into a sense of surrender. When we do work according to the routine then it is very lifeless. There is a lack of meaning in it, whether it is an office, home or any of its work, if it is done happily, with positive thinking, it will give a positive effect. While doing the work with the idea of ​​handling it, doing it with burdensome heart makes that work a burden on itself. Because of which working becomes a headache. Whatever you want to do, do it with joy. Contribute the full hundred percent of your ability to it. Then the result of that work will also be a hundred percent positive and happy.

Be happy, be healthy, be busy, be cool.

सही दिशा

सही दिशा

कभी कभी समझ नहीं आता कि हमारे काम सही तरीके से आगे क्यों नहीं बढ़ रहे।बहुत ज्यादा समय लगा कर कुछ काम करने पर भी उस काम से सही प्राप्ति नहीं होती।

माधव श्री कृष्ण भगवान का भक्त था। वह अक्सर सोचता था कि "मैं भगवान की इतनी भक्ति, पूजा, अर्चना करता हूँ पर भगवान मेरी सुनते नहीं है"। माधव को लगता था कि सबका समय अच्छा आने लगा है, सिर्फ उसी का समय खराब चल रहा है। उसकी पूजा पाठ किसी काम नहीं आ रही। प्रभु श्री कृष्ण जी उसकी तरफ ध्यान नहीं दे रहे, तभी तो उसके काम ठीक से नहीं हो रहे। कई दिनों तक इस तरह की बात सोचने के बाद एक दिन उसने कृष्ण जी की मूर्ति उठाकर कमरे मे ऊपर बनी टाँड़ पर पटक दी और दुर्गा जी की मूर्ति लाकर उनकी पूजा करने लगा। रोज सुबह मूर्ति के सामने धूप-दीप घुमाने लगा। एक दिन उसके मन में विचार आया कि धूप-दीप का धुँआ सीधा ऊपर की ओर जाता है और ऊपर कृष्ण जी की मूर्ति है, तो वह भी इस धुएँ को सूँघते होंगे। बस फिर क्या था, यह विचार आते ही उसने एक कपड़ा उठाया और मूर्ति की नाक पर बाँध दिया औऱ बोला कि जब मेरे काम नहीं करते तो मेरी धूप भी नहीं सूँघ सकते। जैसे ही उसने यह बोला, कृष्ण जी साक्षात प्रकट हो गए। भगवान बोले कि आज तक तू मुझे पत्थर की निर्जीव प्रतिमा समझ कर मेरी पूजा अर्चना कर रहा था। आज पहली बार तूने मन में सोचा कि मै सांस लेता हूँ। बस तभी मैं तेरी परेशानी को दूर करने के लिए प्रकट हो गया। जहाँ तुम्हारी सोच की दिशा ठीक हो जाती है वहीँ काम भी ठीक होने लगते हैं।

यह एक धार्मिक कहानी है इसलिए भगवान जी सामने आ गए, वास्तविक जीवन में ऐसा नहीं होता। परन्तु इस कहानी से यह समझ में आता है कि, जिस काम को करो उसे पूरी लगन, निष्ठा और समर्पण की भावना के साथ करना चाहिए। माधव पूजा को पूरे मन से नही करता था। केवल नियम निभाने के लिए सारी पूजा करता था। इसलिए जैसे ही उसने सोचा कि मूर्ति सांस लेती है, वही क्षण था, जब उसका मन की भावना समर्पण की भावना में बदल गई। जब हम काम को दिनचर्या के अनुसार करते है तो वह बहुत निर्जीव होता है। उसमें सार्थकता का अभाव होता है चाहे दफ्तर हो, घर हो या अपना कोई काम उसको सकारात्मक सोच के साथ खुशी से, मन लगा कर किया जाए तो परिणाम भी सकारात्मक प्रभाव देगा। जबकि काम को निबटाने के विचार से करना, बोझल मन से करना उस काम अपने ऊपर बोझ बना देता है। जिसकी वजह से काम करना एक सिरदर्द बन जाता है। चाहे जो भी करना चाहते हो उसे आनन्द लेकर करें। उसमें अपनी योग्यता का पूरा सौ प्रतिशत योगदान दें। तब उस काम का नतीजा भी सौ प्रतिशत सकारात्मक और खुशी देनें वाला मिलेगा।

खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।

Tuesday, December 3, 2019

Everyone's Caretaker

Everyone's Caretaker

There are seven days in a week and there is a story associated with everyone. There are many stories of each day. Today, we talk about one of the many stories of Sunday.

The king of a happy, prosperous kingdom was very religious, ritualistic and kind. His wife used to go to the temple daily to worship. One day after the puja, Pandit Ji tilak with "Roli" on the forehead of the queen, sprinkling Akshat (rice) on the head. When the queen put her hand forward, Pandit ji gave Charanamrit (water placed near God) in it, which the queen drank and put the hand on the head, applied the remaining water drops on the palm to the head. Rani asked that we have never seen God, so why worship him. Panditji told that God arranges for everyone's food. It is a way to honour them, so we care for them. The queen did not like this thing. He saw that there were ants on the sweet offerings. The queen picked up an ant and locked it in the comb between her hair. While sleeping at night, the queen told the king all the things that happened in the temple when she got the ant's attention. When the queen opened her hair part, the ant came out. The queen was surprised that the ant came out of the morning without food and water. Then the king explained that the rice which Panditji had sprinkled on your head. One of his grains was too much for the ant's food, and Charanamrit's hand which fell on the head and drops of water which would be on the hair was the ant's system of water for the whole day. Then the queen understood that God only cares for animals, birds, trees, plants and humans.

It is true that the God who does not let the birds sleeping on the trees fall, he has made some arrangement for everyone. But this does not mean that we should sit with our hands on it that we will get food. Just as the elders have said that the person is hungry, but does not sleep. But in today's time, if we want to make our life good, then a little hard work will have to be done because life is not the purpose of man only to fill his stomach. We are better than animals and birds, we have intelligence, wisdom, knowledge and understanding. Anyone who has all this can make their lifestyle more good with little effort. It takes some time but any ordinary situation can be transformed into a very good situation with the help of self-help, dedication and peace.

Be happy, be healthy, be busy, be cool.

सबका पालनहार

सबका पालनहार

सप्ताह में सात दिन होते हैं और सबके साथ कोई कहानी जुड़ी हुई है। हरेक दिन की अनेक कहानियाँ हैं। आज रविवार की अनेकों कहानियों में से एक कहानी की बात करते हैं।

एक सुखी, सम्पन्न राज्य का राजा बहुत धार्मिक, कर्मकाण्ड करने वाला और दयालु था। उसकी पत्नी रोज पूजा करने मंदिर जाती थी। एक दिन पूजा के बाद पंडित जी रानी के माथे पर "रोली" से तिलक किया, सिर पर अक्षत (चावल) छिड़के। रानी ने हाथ आगे किया तो पंडित जी ने उसमें चरणामृत (भगवान के समीप रखा जल) दिया, जिसको रानी ने पीकर हाथ को सिर पर फिरा लिया, हथेली पर बची पानी की बूंदे सिर पर लगा ली। रानी ने पूछा कि हमने भगवान को कभी देखा नहीं है तो उसकी पूजा क्यों करते हैं। पंडित जी ने बताया कि भगवान सबके भोजन की व्यवस्था करतें हैं। हमारा पालनपोषण करते हैं इसलिए उनका सम्मान करने का यह एक तरीका है। रानी को ये बात कुछ ठीक नहीं लगी। उसने देखा कि बराबर में मीठे प्रसाद पर चींटियाँ लगी हुई हैं। रानी ने एक  चींटी को उठाया और अपने बालों के बीच मे जूड़े में उसे बन्द कर दिया। रात को सोते समय रानी ने मंदिर में हुई सारी बात राजा को बताई तभी उसे चींटी का ध्यान आया। रानी ने बालों का जूड़ा खोला तो चींटी बाहर निकली। रानी को बड़ा अचम्भा हुआ कि चींटी सुबह से बिना भोजन, पानी के भी ठीकठाक बाहर आ गई थी। तब राजा ने समझाया कि जो चावल पंडित जी ने तुम्हारे सिर पर छिड़कें थे। उसका एक दाना भी चींटी के भोजन के लिए बहुत था, और जो चरणामृत का हाथ सिर पर फिराया उस जल की बूंदें जो बालों पर लगी होंगी, तो वह चींटी के पूरे दिन के पानी की व्यवस्था थी। तब रानी को समझ में आया की भगवान ही पशु, पक्षी, पेड़, पौधे और मनुष्य आदि सभी का ध्यान रखते है।

यह बात सही है कि जो भगवान पेड़ों पर सो रहे पक्षियों को गिरने नहीं देते, उन्होंने सबकी कोई ना कोई व्यवस्था जरूर की है। किन्तु इसका अर्थ यह नही है कि हम हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाये कि भोजन तो मिल ही जायेगा।जैसा कि बड़े बुजुर्गों ने कहा है कि इंसान भूखा जागता जरूर है पर सोता नहीं है। लेकिन आज के समय में यदि हम अपने जीवन को अच्छा बनाना चाहते हैं तो थोड़ी मेहनत अधिक करनी होगी क्योंकि केवल पेट भरने के लिए जीवन, मनुष्य का उद्देश्य नहीं है। हम पशु, पक्षियों से उन्नत हैं हमारे पास बुद्धि, विवेक, ज्ञान और समझदारी है। जिसके पास ये सब है वह थोड़ा थोड़ा प्रयत्न करके अपनी जीवनशैली को और अधिक अच्छा बना सकता है। थोड़ा समय जरूर लगता है लेकिन सयंम, लगन और शान्ति के साथ किसी भी साधारण परिस्थिति को अति उत्तम स्थिति में बदला जा सकता है।

खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।