सही दिशा
कभी कभी समझ नहीं आता कि हमारे काम सही तरीके से आगे क्यों नहीं बढ़ रहे।बहुत ज्यादा समय लगा कर कुछ काम करने पर भी उस काम से सही प्राप्ति नहीं होती।माधव श्री कृष्ण भगवान का भक्त था। वह अक्सर सोचता था कि "मैं भगवान की इतनी भक्ति, पूजा, अर्चना करता हूँ पर भगवान मेरी सुनते नहीं है"। माधव को लगता था कि सबका समय अच्छा आने लगा है, सिर्फ उसी का समय खराब चल रहा है। उसकी पूजा पाठ किसी काम नहीं आ रही। प्रभु श्री कृष्ण जी उसकी तरफ ध्यान नहीं दे रहे, तभी तो उसके काम ठीक से नहीं हो रहे। कई दिनों तक इस तरह की बात सोचने के बाद एक दिन उसने कृष्ण जी की मूर्ति उठाकर कमरे मे ऊपर बनी टाँड़ पर पटक दी और दुर्गा जी की मूर्ति लाकर उनकी पूजा करने लगा। रोज सुबह मूर्ति के सामने धूप-दीप घुमाने लगा। एक दिन उसके मन में विचार आया कि धूप-दीप का धुँआ सीधा ऊपर की ओर जाता है और ऊपर कृष्ण जी की मूर्ति है, तो वह भी इस धुएँ को सूँघते होंगे। बस फिर क्या था, यह विचार आते ही उसने एक कपड़ा उठाया और मूर्ति की नाक पर बाँध दिया औऱ बोला कि जब मेरे काम नहीं करते तो मेरी धूप भी नहीं सूँघ सकते। जैसे ही उसने यह बोला, कृष्ण जी साक्षात प्रकट हो गए। भगवान बोले कि आज तक तू मुझे पत्थर की निर्जीव प्रतिमा समझ कर मेरी पूजा अर्चना कर रहा था। आज पहली बार तूने मन में सोचा कि मै सांस लेता हूँ। बस तभी मैं तेरी परेशानी को दूर करने के लिए प्रकट हो गया। जहाँ तुम्हारी सोच की दिशा ठीक हो जाती है वहीँ काम भी ठीक होने लगते हैं।
यह एक धार्मिक कहानी है इसलिए भगवान जी सामने आ गए, वास्तविक जीवन में ऐसा नहीं होता। परन्तु इस कहानी से यह समझ में आता है कि, जिस काम को करो उसे पूरी लगन, निष्ठा और समर्पण की भावना के साथ करना चाहिए। माधव पूजा को पूरे मन से नही करता था। केवल नियम निभाने के लिए सारी पूजा करता था। इसलिए जैसे ही उसने सोचा कि मूर्ति सांस लेती है, वही क्षण था, जब उसका मन की भावना समर्पण की भावना में बदल गई। जब हम काम को दिनचर्या के अनुसार करते है तो वह बहुत निर्जीव होता है। उसमें सार्थकता का अभाव होता है चाहे दफ्तर हो, घर हो या अपना कोई काम उसको सकारात्मक सोच के साथ खुशी से, मन लगा कर किया जाए तो परिणाम भी सकारात्मक प्रभाव देगा। जबकि काम को निबटाने के विचार से करना, बोझल मन से करना उस काम अपने ऊपर बोझ बना देता है। जिसकी वजह से काम करना एक सिरदर्द बन जाता है। चाहे जो भी करना चाहते हो उसे आनन्द लेकर करें। उसमें अपनी योग्यता का पूरा सौ प्रतिशत योगदान दें। तब उस काम का नतीजा भी सौ प्रतिशत सकारात्मक और खुशी देनें वाला मिलेगा।