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Monday, October 7, 2019

शब्द रूपी दवा या शब्द रूपी घाव

शब्द रूपी दवा या शब्द रूपी घाव

आजकल व्यंग्यात्मक भाषा का प्रचलन बहुत बढ़ गया है। लगभग सभी को सर्केजम के नाम पर कड़वी बात करने की आदत होती जा रही है।

महाभारत की कहानी में धृतराष्ट्र और पाण्डु भाई थे। राजा बड़े बेटे को बनाया जाता था परंतु धृतराष्ट्र नेत्रहीन थे, अँधे थे, उन्हें दिखाई नहीं देता था तो राज्य सम्भालने का काम उनके छोटे भाई पाण्डु को दे दिया गया। धृतराष्ट्र की सन्तान कौरव और पाण्डु की सन्तान पाण्डव कहलाई। जब पांडवो ने अपना महल बनवाया तो उसमें वास्तुकार ने इस प्रकार की कला का प्रयोग किया कि फर्श पर पानी होने का आभास होता था लगता था कि वहाँ पर तालाब है। जहाँ तालाब था वहाँ लगता था की जमीन है। जब धृतराष्ट्र का बड़ा पुत्र दुर्योधन महल देखने आया तो जमीन पर तालाब समझकर उसने तालाब में तैरने के लिए अपने पैरों में से जूतियों को उतार दिया। परन्तु अगला कदम रखते ही उसे पता लगा कि वहाँ पर पानी नही हैं। जब दुर्योधन दूसरे कमरे गया तो  उसे लगा की जमीन पर पानी है औरउसने सोचा कि यह भी पिछली जगह की तरह पानी का धोखा है और जमीन समझ कर पैर रख दिया और पानी में गिर गया। तब द्रोपदी ने हँसते हुए व्यंग्यात्मक वाक्य कहा था कि, "अँधे का पुत्र अँधा ही होता है"। यह सुनने के बाद ही दुर्योधन ने बदला लेने के ठान लिया था और इसी का परिणाम महाभारत के भयंकर युद्ध के रूप में सामने आया।सोलह दिन तक चले इस युद्ध में बहुत ज्यादा तबाही हुई।

पहले कहा जाता था कि ऐसी बानी बोलिये मन का आपा खोय,ओरन को शीतल करे,आप हू शीतल होये। यानि ऐसी बात बोलनी चाहिए जिसमें अपने आप को भी अच्छा लगे और सुनने वाले को भी अच्छा लगें।किसी के खराब मूड को भी अच्छी बात बोलकर ठीक किया जा सकता है पर खराब बात बोलने से स्थिति ज्यादा खराब हो सकती है। कई बार परिस्थिति थोड़ी सी बुरी होती है और हम अपने आप को उसके अनुसार बदल नहीं पाते और परेशान होकर कोई बुरी बात कह देते हैं। परिस्थिति तो कुछ समय बाद ठीक हो जाती हैं लेकिन बात का असर इतनी जल्दी ठीक नहीं होता। इसीलिए कहा जाता है कड़वा बोलने वाले का गुड़ भी नहीं बिकता और मीठा बोलने वालों की तो मिर्च भी बिक जाती है। यह हमारे शब्द ही होते जो दुखी मन पर दवा का काम करते हैं और सामने वाले का दुख कम हो जाता है।व्यंग्यात्मक बातें कई बार तलवार का काम करतें हैं जो सुनने वालों के मन पर इतना बड़ा घाव कर देते हैं कि आपस में रिश्ते बिगड़ जाते हैं। आजकल सबके साथ ही कोई न कोई परेशानी लगी रहती है ऐसे में कठोर शब्दों का प्रयोग दूसरे को और अधिक नाराज़ कर सकता है।मज़ाक करने और मज़ाक उड़ाने में अंतर होता है।मजाक करते समय सभी उसका आनन्द लेते हैं माहौल हल्का हो जाता है,तनाव कम हो जाता है। सभी लोग अपने आसपास खुशमिजाज व्यक्ति को पसंद करते हैं। जिस व्यक्ति को ताने मारने की आदत होती है उसे कुछ समय तक ही लोग पसंद करते हैं औऱ थोड़े दिन बाद उससे मिलने जुलने वालों की संख्या कम होने लगती है, जबकि खुशमिजाज, मजाकिया, हँसमुख व्यक्ति के चारो ओर से लोग आकर्षित होते हैं।

अगर आप भी चर्चित होना चाहते हैं, लोगों के चहिते बनना चाहते हैं तो हर बात पर ताना मारना, व्यंग्य करना बन्द कर दीजिए। चेहरे का व्यंग्यात्मक अंदाज हटा कर एक सहज,मुस्कुराहट कायम करने की कोशिश करें। शुरू में नकली मुस्कान रखें, धीरे धीरे अपनेआप को खुश रखने की आदत हो जाएगी। थोड़ा समय जरूर लगेगा पर नकली हँसी असली हँसी में बदल जाएगी। चेहरे की लकीरें, झुर्रियां, झाइयाँ दूर हो जाएगी। जीवन मे ऊंचाईयों पर जाने का मूलमंत्र तनावरहित चमकदार और प्रसन्न चेहरा होता है जो सबको आकर्षित करता है।

खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।

Word-Medicine or Word-Wound

Word-Medicine or Word-Wound

Nowadays the prevalence of satirical language has increased a lot. Almost everyone is getting used to talking bitter in the name of circumnavigation.

Dhritarashtra and Pandu were brothers in the Mahabharata story. The king's elder son was made, but Dhritarashtra was blind, blind, and he could not see, so the task of taking over the kingdom was given to his younger brother Pandu. Dhritarashtra's children were called Kauravas and Pandu's children Pandavas. When the Pandavas built their palace, the architect used such art in it that there was a feeling of water on the floor, it seemed that there is a pond there. Where there was a pond there seemed to be land. When Dhritarashtra's elder son Duryodhana came to see the palace, he considered the pond on the ground, and removed the shoes from his feet to swim in the pond. But on taking the next step, he came to know that there is no water there. When Duryodhana went to another room, he felt that there was water on the ground and he thought that this too was a deception of water like the previous place and, considering the ground, stepped on it and fell into the water. Draupadi then smilingly said the sarcastic statement that "the son of the blind is blind". It was only after hearing this that Duryodhana was determined to take revenge and this resulted in the fierce war of Mahabharata.

Earlier it was said that speak such a word, lose your temper, cool the oran, you cool down. That is to say such a thing in which you feel good and listeners also feel good. Someone's bad mood can also be corrected by speaking good words, but speaking bad things can make the situation worse. Sometimes the situation is a bit bad and we cannot change ourselves accordingly and get upset and say something bad. The situation gets cured after some time, but the effect of the matter is not cured so soon. That is why it is said that jaggery does not sell even to those who speak bitter, and chili is also sold to those who speak sweet. It would be our words that do the work of medicine on the unhappy mind and the misery of the front is reduced. The sarcastic things sometimes work as a sword which causes such a great wound on the minds of the listeners that the relationship between them deteriorates. Let's go. Nowadays, there is some problem with everyone, in such a situation, the use of harsh words can make the other more angry. There is a difference between mocking and making fun. Everyone enjoys it while doing fun. The atmosphere becomes lighter, Stress is reduced. Everybody likes a happy person around them. The person who has the habit of taunting for some time is liked by the people and after a few days, the number of people who meet him starts to decrease, while people are attracted by a happy, funny, cheerful person.

If you also want to be discussed, want to become the favorite of people, then stop taunting, satirizing everything. Remove the sarcastic look of the face and try to maintain a smooth, smooth smile. Initially keep a fake smile, slowly you will get used to keeping yourself happy. It will take some time but fake laughter will turn into real laughter. Facial ridges, wrinkles, freckles will go away. The motto of going to the heights in life is a faceless, shiny and happy face that attracts everyone.

Be happy, be healthy, be busy, be cool.

Thursday, September 26, 2019

कल कभी नहीं आता

कल कभी नहीं आता

ये कहानी भी काफी पुराने समय की है। मैंने ये कहानी अपने बचपन मे सुनी थी। ये कहानी आपने भी कभी, कहीं सुनी होगी।

एक किसान के खेत मे एक चिड़िया ने अपना घोंसला बना कर अंडे दिए। जब उसमें से छोटे-छोटे चूजे निकले तो चिड़िया चूजों को अकेला छोड़कर उनके लिए भोजन लेने जाती थी। चिड़िया को अपने बच्चों की चिंता लगी रहता थी कि, अगर किसी ने फसल काटी तो, उसके बच्चों को नुकसान पहुंच जाएगा। एक दिन उसके वापस लौटने पर बच्चों ने बताया कि, किसान फसल देखने आया था और कह रहा था कि फसल पक गई है काटनी पड़ेगी। यह सुनकर चिड़िया बोली "कोई बात नहीं, अभी किसान फसल  नहीं कटेगा"। अब उसे भी फ़िक्र हो गई क्योंकि अभी चूजों के पँख इतने बड़े नहीं थे की वो उड़ सके। दो दिन बाद बच्चों ने बताया की किसान आज कह रहा था कि, वह अपने पड़ोसियों को भेजेगा फसल काटने के लिए। चिड़िया जानती थी कि, कोई नही आयेगा। पर, दो दिन बाद बच्चों ने कहा कि, किसान आया था और बोल रहा था कि, "अब फसल बहुत पक चुकी है"। कल भाइयों को भेजेगा काटने के लिए। यह सुनकर चिड़िया बोली उड़ने का अभ्यास करते रहना क्योंकि दो चार दिन मै ही हमें यह जगह छोड़नी होगी। पर अभी कल उसके भाई काम करने नहीं आएंगे। अबकी बार किसान आया तो वह फसल देखकर बोला कि, "अब तो मुझे ही काटना पड़ेगा, कोई किसी का काम नहीं करता। मुझे अपना काम खुद ही करना होगा नहीं तो फसल खराब हो जाएगी"। जब चिड़िया के बच्चों ने यह बात चिड़िया को बताई तो वह बोली अब यहाँ पर रुकना ठीक नहीं है। उसके बच्चों के पँख भी थोड़े बड़े हो चुके थे। वह अपने बच्चों को लेकर उड़ गई।

ये बात बहुत साधारण सी लगती है लेकिन गहराई से देखे तो सच है। जब हम मन, वचन और कर्म से ठान लेते हैं, तब ही कोई काम पूरा कर सकते हैं। किसी दूसरे से काम कराने की इच्छा से कभी कोई काम नही होता। अपना काम स्वयं ही करना पड़ता है। दफ्तर के काम के लिए सहकर्मियों से काम कराने की उम्मीद करते हैं। घर में परिवार के सदस्यों से अपना काम करवाना चाहते हैं। परन्तु, कभी दूसरा कोई व्यक्ति हमारा काम कर देता है, तो बदले में कुछ हमसे भी चाहता है। और, कभी नहीं करता तब जो मानसिक तनाव होता है। उससे बचने के लिए हमेशा अपना काम स्वयं करना चाहिए।

जब हम सोचते हैं की यह करना है तब हम मानसिक रूप में अपने को काम करने के लिए तैयार कर रहे होते है। जब हम किसी के सामने मुँह से बोलते हैं अपने सोचे हुए काम को करने के बारे में, तब वचन यानी, बोली की भी ताकत जुड़ जाती है। इस प्रकार, मन अपने सोचने और मुँह अपने शब्दों से, काम को करने की ओर ले जाता हैं।  तब काम को पूरा करने के लिए जो मेहनत की जाती है वही कर्म है। उसके बिना मन और वचन अर्थहीन है। मुख्य भूमिका कर्म निभाता है। इस कहानी में दो सीख छुपी हुई हैं।

१.) अगर किसान को लेकर देखे तो उसने पहले ही दिन से कहा कि फसल पक गई है। परन्तु, वह खुद काम नहीं करना चाहता था। इसलिए पड़ोसियों औऱ भाइयो पर आश्रित, निर्भर हो गया। जिससे उसका काम समयानुसार पूरा नहीं हो सका और तब उसकी फसल खराब भी हो सकती थी। यानि, काम को समय सीमा में समाप्त करने के लिए किसी का आसरा देखने की जगह, खुद करना चाहिए।

२.) अगर चिड़िया के नजरिये से देखे तो हर परिस्थिति में शान्ति, समझदारी, और संयम से निर्णय लेना चाहिए। चिड़िया ने किसान की बात से समझ लिया कि, यह आलसी हैं और अपना काम दूसरों से कराना चाहता है। सारी चीजें देखकर, समझ कर और विचार करके उसने कुछ दिन और रुकने का निर्णय किया। और अपने बच्चों को इतना बड़ा कर लिया कि, वो सब सकुशल वहाँ से निकल सके।

किसी काम को करने का विचार मन मे आते ही समझ लेना चाहिए कि, उस विचार के साथ मन की शक्ति जुड़ गई है। उस बात पर सोचना चाहिए कि, कितना समय लगेगा, कितना धन लगेगा और काम खुशी के लिए करना है या धन प्राप्ति के लिए करना है। फिर बदले में कितनी खुशी होगी या कितनी धन प्राप्ति होगी। अच्छी तरह सोच समझकर उसमें वचन की शक्ति को जोड़ें। यानि कि जो अपने हैं, आपके शुभचिंतक हैं, करीबी दोस्त, रिश्तेदार है उन्हें अपना विचार बताए। अगर किसी को नहीं बताना चाहते तो फिर जिस भी सर्वोच्च शक्ति को मानते हैं, आपका जिस भगवान् पर विश्वास हो, उनके सामने अपनी बात कहे। जिससे उस विचार के साथ वाणी, बोली, वचन की शक्ति भी जुड़ जाए। इसके बाद अपनी तीसरी और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण शक्ति-कर्म, मेहनत को जोड़ दें क्योंकि इसके बिना मन और वचन का काम बेकार हो जाता है। मुख्य भूमिका कर्म ही निभाता है। जैसे कि, आप मन मे सोचने लगें कि, घर की सफाई करनी है, फिर, जो करना है वह बोलने भी लगे की, सफाई करनी है। किंतु, जब तक काम शुरू नही करेंगे, सोचना और बोलना बेकार होता रहेगा, और गंदगी बढ़ती रहेगी। अब से आदत बनाये जो काम करना है, उसे ज्यादा समय तक नहीं लटकाना है। जल्दी से जल्दी, समय-सीमा के साथ ही पूरा करने का प्रयास करना है। शुरू में थोड़ा समय लगेगा, फिर काम को समय से पूरा करने का अभ्यास हो जाएगा और आपके सब काम बिना किसी विघ्न-बाधा के, समय से पूरे होने लगेंगे।

खुश रहो,स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।

Tomorrow Never Comes

Tomorrow Never Comes

This story is also very old. I heard this story in my childhood. You must have heard this story sometime, somewhere.

In a farmer's field, a bird made its nest and laid eggs. When small chicks came out of it, the bird left the chickens alone and went to take food for them. The bird used to worry about its children that, if someone harvested the crop, its children would be harmed. One day on his return, the children told that the farmer had come to see the crop and was saying that the crop had been ripened. Hearing this, the bird said, "No problem, the farmer will not reap the crop right now". Now he too was worried because the chicks were not so big that they could fly. Two days later, the children told that the farmer was saying today, he will send his neighbours to harvest. The bird knew that no one would come. But, two days later the children said that the farmer had come and said, "Now the crop is very ripe". Tomorrow we will send the brothers to bite. Hearing this, the bird said to keep practising flying because we have to leave this place within two to four days. But tomorrow his brother will not come to work. This time the farmer came and when he saw the crop, he said, "Now I have to reap, no one does any work. I have to do my work myself or else the crop will be spoiled". When the bird's children told this to the bird, she said that it is not right to stop here. The wings of his children had also grown a bit. She flew away with her children.

This thing seems very simple but if we look deeply it is true. Only when we are determined by our mind, words and actions can we complete a task. There is never any work with the desire to make someone else work. One has to do his own work. Expect colleagues to get work done for office work. Want to get family members to do their work at home. But, sometimes if someone else does our work, then in return something wants from us. And, never does that mental tension. One should always do his own work to avoid it.

When we think that this has to be done, then we are preparing ourselves mentally to work. When we speak in front of someone about doing our thought work, then the power of speech also gets added. In this way, the mind leads to thinking, and through its words, to do the work. Then the hard work that is done to complete the work is karma. Without him the mind and the word are meaningless. The main role plays karma. There are two lessons hidden in this story.

1.) If you look at the farmer, he said from the very first day that the crop is ripe. However, he did not want to work on his own. So dependent on neighbours and brothers became dependent. Due to which his work could not be completed on time and then his crop could also be spoiled. That is, to finish the work in time, instead of looking for someone, one should do it themselves.

2.) If you see it from the perspective of a bird, then in every situation you should decide with peace, understanding, and restraint. The bird understood from the farmer that he is lazy and wants to get his work done by others. Seeing all things, understanding and thinking, he decided to stay for a few more days. And made his children so big that they could all leave safely.

The idea of ​​doing some work should be understood as soon as it comes to mind, the power of the mind is attached to that idea. You should think about how long it will take, how much money will be spent and whether to do it for pleasure or to get money. Then how much happiness or wealth will be received in return. Thoughtfully add the power of the word to it. That is, those who belong to you, are your well-wishers, close friends, relatives and tell them your thoughts. If you do not want to tell anyone, then whatever supreme power you believe, you should speak in front of the God you trust. So that the power of speech, speech, speech is also associated with that idea. After this, add your third and most important power - karma, hard work, because without it the work of mind and speech becomes useless. The main role is played by karma. For example, you start thinking in your mind that you have to clean the house, then, whatever you want to do, you start saying that cleaning is to be done. But, until you start work, thinking and speaking will be useless, and the dirt will keep increasing. From now on, make it a habit not to hang it for long. Try to meet the deadline as quickly as possible. Initially, it will take some time, then there will be practice to complete the work in time and all your work will be completed in time without any hindrance.

Be happy, Be healthy, Be busy, Be cool.

Wednesday, September 18, 2019

थॉमस अल्वा एडिसन और दृष्टिकोण

थॉमस अल्वा एडिसन और दृष्टिकोण

कुछ दिन पहले मुझ से किसी ने कहा कि, 'आपकी कहानियों में सोने के सिक्के ही क्यों होते हैं?' तब मैंने कहा कि, 'ये उस समय की कहानियाँ है जब कागज के रुपये नहीं होते थे।' मैंने इन कहानियों में यहीं बताने की कोशिश की है कि, जो बात तब सही थी वही बात आज भी सही हो सकती है, बस नजरिया बदल कर देखने की जरूरत होती है, जिसे हम 'perspective' कहते हैं।

 आज के समय की कहानी की बात करते हैं। थॉमस अल्वा एडिसन की कहानी सारी दुनिया जानती है, कि कैसे उनके स्कूल से एक कागज का टुकड़ा देकर उन्हें घर वापस भेज दिया गया था। जब उन्होंने अपनी मां को वह कागज दिखाया तो माँ वह पढ़कर रोने लगीं। बेटे के पूछने पर उन्होंने बताया कि इस पर लिखा है कि, आपका बच्चा इतना होशियार है कि स्कूल के अध्यापक उसे नहीं पढ़ा सकते। तब माँ ने उन्हें अपने आप घर पर ही पढ़ाना शुरू कर दिया और कुछ समय बाद वह एक वैज्ञानिक के रूप में पहचाने जाने लगे। अपनी माताजी के स्वर्गवास के बाद घर की सफाई के समय वही कागज जब उनको मिला। तब उन्होंने कागज पढ़ा तो उसमें लिखा था कि उनका बेटा मूर्ख है इसलिए उसे स्कूल से निकाला जा रहा है।

यह कहानी नहीं है। यह हकीकत है, किंतु कितने लोगों ने इस बात को गहराई से समझा है और, कितने लोग अपने बच्चों को पढ़ाई के समय मदद करते हैं। मदद के स्थान पर जो वो खुद नहीं कर सके उसे अपने बच्चों के द्वारा पूरा करने की इच्छा रखते हैं। आज के परिवेश में परिवारजनों को चाहिए कि, जब बच्चों को भावनात्मक सहयोग की आवश्यकता हो तब माता पिता उसकी परेशानी को समझ कर कोई हल निकाले, और उसके साथ रहे, ताकि बच्चे को अकेलापन महसूस ना हो। बच्चा अपनी समस्या बिना किसी हिचकिचाहट के उनके सामने रख सके। छोटे से बच्चे के साथ से ही स्पष्ट, पारदर्शी तरीके से, मित्रों जैसा सम्बन्ध बनाने का प्रयास करते रहना चाहिए। दोंनो में दोस्तों जैसा व्यवहार होगा, तो कोई भी कटु स्थिति आने से पहले ही सुलझ जाएगी।

अपनी बात को अधिक स्पष्ट करने से पहले, एक परिचिता की बताई हुई घटना आपके साथ साझा करना चाहूँगी। मेरी एक मित्र ने बताया कि, उनके छोटे बेटे को पढ़ाई के समय काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। वह शुरुआत से ही बहुत ज्यादा बीमार रहता था। घर में थोड़ी बहुत पढ़ाई करके उसने विद्यालय की प्रवेश परीक्षा पास कर ली। लेकिन जब छात्र कक्षा में किसी एक प्रश्न का उत्तर नहीँ दिया, तो अध्यापिका ने लड़के को दीवार की तरफ मुँह करके खड़ा कर दिया। हो सकता है नई कक्षा, नये सहपाठी, नये अध्यापक और नये माहौल को देखकर शायद उत्साह में उसने कोई शरारत भी की हो, परन्तु एक ढाई साल के बच्चे के लिए आधे घंटे तक दीवार की तरफ मुँह करके खड़े होना बहुत ज्यादा बड़ी सजा थी।

बात इतनी सी नही थी। अब, अगले दिन भी, टीचर ने उसे आते ही दीवार की तरफ मुँह करके खड़ा कर दिया, थोड़ी देर बाद बेटे ने पलट कर देख लिया तो मास्टरनीजी ने उसे अलमारी के पीछे जा कर खड़े होने की सजा दे दी। अब, रोज अध्यापिका उसको दीवार की तरफ मुँह करके, लोहे की अलमारी के पीछे खड़ा कर देती थी। जल्द ही, बेटे ने स्कूल जाने से मना करना शुरू कर दिया। फिर एक दिन, माँ ने बड़े बेटे से कहा कि, मध्यावकास के समय में जाकर देखे कि छोटे को कोई बच्चा तो तंग नही करता, किस बात से डर कर वो स्कूल नहीं जाना चाहता। माँ ने घर मे पढ़ाते हुए देखा कि बेटा d और b, w और m लिखने में गलती करने लगा है। प्रतिदिन के कक्षा कार्य की अभ्यास पुस्तिका पर काम नहीं किया, काम गलत है और काम गंदा है, लिखा मिल रहा था। अब एक दिन बड़े बेटे ने घर आकर बताया कि वो किसी काम से छोटे की कक्षा में गया तो देखा कि उसे दीवार की ओर मुँह करके अलमारी के पीछे खड़े होने की सजा मिली हुई थी। अब माँ को बेटे की सारी बात समझ आ गई। जब विद्यालय में बात की तो कोई सुनवाई नहीं हुई तब अपने बच्चें को पढ़ाने के लिए माँ ने ही कमर कस ली, और फिर जिस बच्चें को बचपन मे अध्यापिका जी ने डिस्लेक्सिया मरीज, बता दिया था आज वह एक सौ तीस के आईक्यू के साथ अच्छी खासी डिग्री, डिप्लोमा और सार्टिफिकेट ले चुका है। शायद यह बेटा भी आने वाले समय का थॉमस एल्वा एडिसन हो।

जिन शिक्षा संस्थानों को बच्चों को पढ़ाने के लिए एक मोटी रकम दी जाती है, उन पर आँख बंद करके भरोसा नहीं किया जा सकता। बच्चे हमारे है, तो हमें ही उनका साथ देना है। जिससे वह हरेक दुख, तकलीफ, मुसीबत, परेशानी या समस्या से आसानी हमारे साथ बाँटे, साझा करें और उनसे घबराने की बजाय उन से बाहर निकल सके।हम उनको हर परिस्थिति का सामना करने की हिम्मत दे सकते हैं, ताकि वो कठिनाइयों को चीर कर बाहर आ सके।

खुश रहो,स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।

Thomas Alva Edison & Perspective

Thomas Alva Edison & Perspective

A few days ago someone said to me, 'Why do you have gold coins in your stories?' Then I said, 'These are the stories of times when there was no paper money.' I have tried to tell here in these stories that, what was right then the same thing can be true even today, just need to change the perspective, which we call 'perspective'.

 Let's talk about the story of today. The world knows the story of Thomas Alva Edison, how he was sent back home from his school with a piece of paper. When she showed her mother the paper, she read it and started crying. On being asked by the son, he said that it is written that, your child is so clever that school teachers cannot teach him. Then mother started teaching him at home on her own and after some time she became recognized as a scientist. After the death of his mother, when he got the same paper while cleaning the house. When he read the paper, he wrote in it that his son is a fool, so he is being expelled from school.

This is not a story. This is a reality, but how many people have understood this deeply and, how many people help their children while studying. In the place of help, they wish to fulfil what they could not do themselves by their children. In today's environment, families should, when children need emotional support, parents understand their problems and find a solution, and stay with them so that the child does not feel lonely. The child could put his problem in front of them without hesitation. With a small child, we should keep trying to make a relationship like friends in a clear, transparent way. If both are treated like friends, then any bitter situation will be solved before they come.

Before I make my point more clear, I would like to share with you an incident described. A friend of mine told that his young son had to face a lot of difficulties while studying. He was very sick from the beginning. After studying a little at home, he passed the school entrance examination. But when the student did not answer anyone question in the class, the teacher made the boy stand facing the wall. He may have done some mischief in the excitement of seeing a new class, new classmates, new teachers and new environment, but it was a very big punishment for a two and a half-year-old child to stand facing the wall for half an hour.

It was not so much. Now, even the next day, the teacher made him stand facing the wall as soon as he came, after a while, the son turned around and saw the Masterji punished him by standing in the back of the cupboard. Now, every day the teacher would face her towards the wall and stand behind an iron cupboard. Soon, the son started refusing school. Then one day, the mother told the elder son that, during the time of mid-day, he would see that the younger one does not bother any child, fearing what he does not want to go to school. While teaching at home, the mother saw that the son had started making mistakes in writing d and b, w and m. The workbook of daily classroom work did not work, work was wrong and work was dirty, was getting written. Now one day the elder son came home and told that when he went to a small class for some work, he saw that he was punished for standing behind the cupboard facing the wall. Now the mother understood all the things about the son. When there was no hearing in the school, then the mother agreed to teach her children, and then the children, whom the teacher had told the child as a dyslexia patient, today she was good with an IQ of one hundred and thirty. Has taken substantial degrees, diplomas and certificates. Perhaps this son is also Thomas Elva Edison of the future.

Education institutions that are given a hefty amount to teach children cannot be blindly trusted. Children belong to us, so we have to support them. So that he can share, share with us easily from every sorrow, suffering, trouble, trouble or problem and can get out of them instead of being afraid of them. We can give them the courage to face every situation so that they can overcome the difficulties To come out.

Be happy, be healthy, be busy, be cool.

Saturday, September 7, 2019

How rich get richer

People say that money only draws money, that is why it becomes richer and richer and becomes poorer and poorer. This is a saying which means that one who has money can try to increase income by using that money and make more money. This process starts, it helps to make more money, but the rich can be the one who uses intelligence.

 It is in this context that an old story is remembered. There was a businessman. When the businessman earned a lot of money, he hired an employee to help with the work, who stayed at his house and also did the housework. In no time, the businessman made a lot of progress, his number began to be counted among the rich. One day the servant came to my mind that Mera Seth has become so much money in a short time and I remained the same employee. After thinking for several days, one day he asked the businessman the secret of his richness. The trader told that by using intelligence, one can increase wealth a little because money has magnetic power, so money only draws money. The servant decided to become rich after listening to the whole thing.

He used to see daily that the businessman used to lock the room by converting the money received from customers into gold coins in a cupboard of his room. The servant collected his gold and took a gold coin in return, and one day he finished all the work and, at night, took the gold coin in his hand and sat outside the room. He was thinking in his mind that with the effect of this coin, all the coins from the cupboard would come out from under the crack of the door and he would get rich by collecting them. In this spirit, he put the coin held in his hand under the crack. Nothing happened for a long time.

His hand also started to ache, he also started getting tired and in such a situation he got a little sleep, meditated and left the coin from the hand and went inside the room from under the crack. Now the servant's condition deteriorated and he was the only one who went too. He went to his boss in great anger, told him the whole thing and said that it is a lie that money only draws money, he sat all night but his Money could not draw anything. Now it was the turn of the owner to laugh. He said that my money was more when your coin was alone, so my coins pulled your coin to yourself. Money can be made only through sensible methods and not in foolish ways. The result of foolish work is that even his only coin went away by hand. By keeping it in today's time, we can learn a lot. In today's time, the biggest gold coin is to use our intelligence properly. Actually, it often happens to us that if one person has benefited from work, then we also copy it without thinking for profit, then the same work doesn't need to give us the same benefit as it has given to another person. The reason for this is that a person's dedication to work, time to work, and way of working may be different, his style of presenting his work may be different and all these things his benefits, advantages, and It reduces or reduces profits. The same thing happens among colleagues in the office and we say that the other one got promoted and his salary also increased while my progress was being made i.e. my salary was to increase. Now the business people, looking at other businessmen, think that we sell the same thing but others are making more profit. Then we should think that the frontman must be using some new technique in his work to increase income.

Now what we should do is understand it properly
1. Every work should be finished within the stipulated time frame.
 2. Instead of copying someone, working using your ideas will bring newness in the work which will impress everyone.
3. Try to do your work in a clear, clean, transparent and effective way.
4. Try to leave a special mark in your work or business, whether it is archaic, modern, scientific outlook or display of artistic interest. So that your work or business gets a new identity.

The truth is that income can be increased on the strength of hard work, passion, passion, honesty, honesty and intelligence.

Be happy, be healthy, be busy, be cool.