शब्द रूपी दवा या शब्द रूपी घाव
आजकल व्यंग्यात्मक भाषा का प्रचलन बहुत बढ़ गया है। लगभग सभी को सर्केजम के नाम पर कड़वी बात करने की आदत होती जा रही है।महाभारत की कहानी में धृतराष्ट्र और पाण्डु भाई थे। राजा बड़े बेटे को बनाया जाता था परंतु धृतराष्ट्र नेत्रहीन थे, अँधे थे, उन्हें दिखाई नहीं देता था तो राज्य सम्भालने का काम उनके छोटे भाई पाण्डु को दे दिया गया। धृतराष्ट्र की सन्तान कौरव और पाण्डु की सन्तान पाण्डव कहलाई। जब पांडवो ने अपना महल बनवाया तो उसमें वास्तुकार ने इस प्रकार की कला का प्रयोग किया कि फर्श पर पानी होने का आभास होता था लगता था कि वहाँ पर तालाब है। जहाँ तालाब था वहाँ लगता था की जमीन है। जब धृतराष्ट्र का बड़ा पुत्र दुर्योधन महल देखने आया तो जमीन पर तालाब समझकर उसने तालाब में तैरने के लिए अपने पैरों में से जूतियों को उतार दिया। परन्तु अगला कदम रखते ही उसे पता लगा कि वहाँ पर पानी नही हैं। जब दुर्योधन दूसरे कमरे गया तो उसे लगा की जमीन पर पानी है औरउसने सोचा कि यह भी पिछली जगह की तरह पानी का धोखा है और जमीन समझ कर पैर रख दिया और पानी में गिर गया। तब द्रोपदी ने हँसते हुए व्यंग्यात्मक वाक्य कहा था कि, "अँधे का पुत्र अँधा ही होता है"। यह सुनने के बाद ही दुर्योधन ने बदला लेने के ठान लिया था और इसी का परिणाम महाभारत के भयंकर युद्ध के रूप में सामने आया।सोलह दिन तक चले इस युद्ध में बहुत ज्यादा तबाही हुई।
पहले कहा जाता था कि ऐसी बानी बोलिये मन का आपा खोय,ओरन को शीतल करे,आप हू शीतल होये। यानि ऐसी बात बोलनी चाहिए जिसमें अपने आप को भी अच्छा लगे और सुनने वाले को भी अच्छा लगें।किसी के खराब मूड को भी अच्छी बात बोलकर ठीक किया जा सकता है पर खराब बात बोलने से स्थिति ज्यादा खराब हो सकती है। कई बार परिस्थिति थोड़ी सी बुरी होती है और हम अपने आप को उसके अनुसार बदल नहीं पाते और परेशान होकर कोई बुरी बात कह देते हैं। परिस्थिति तो कुछ समय बाद ठीक हो जाती हैं लेकिन बात का असर इतनी जल्दी ठीक नहीं होता। इसीलिए कहा जाता है कड़वा बोलने वाले का गुड़ भी नहीं बिकता और मीठा बोलने वालों की तो मिर्च भी बिक जाती है। यह हमारे शब्द ही होते जो दुखी मन पर दवा का काम करते हैं और सामने वाले का दुख कम हो जाता है।व्यंग्यात्मक बातें कई बार तलवार का काम करतें हैं जो सुनने वालों के मन पर इतना बड़ा घाव कर देते हैं कि आपस में रिश्ते बिगड़ जाते हैं। आजकल सबके साथ ही कोई न कोई परेशानी लगी रहती है ऐसे में कठोर शब्दों का प्रयोग दूसरे को और अधिक नाराज़ कर सकता है।मज़ाक करने और मज़ाक उड़ाने में अंतर होता है।मजाक करते समय सभी उसका आनन्द लेते हैं माहौल हल्का हो जाता है,तनाव कम हो जाता है। सभी लोग अपने आसपास खुशमिजाज व्यक्ति को पसंद करते हैं। जिस व्यक्ति को ताने मारने की आदत होती है उसे कुछ समय तक ही लोग पसंद करते हैं औऱ थोड़े दिन बाद उससे मिलने जुलने वालों की संख्या कम होने लगती है, जबकि खुशमिजाज, मजाकिया, हँसमुख व्यक्ति के चारो ओर से लोग आकर्षित होते हैं।
अगर आप भी चर्चित होना चाहते हैं, लोगों के चहिते बनना चाहते हैं तो हर बात पर ताना मारना, व्यंग्य करना बन्द कर दीजिए। चेहरे का व्यंग्यात्मक अंदाज हटा कर एक सहज,मुस्कुराहट कायम करने की कोशिश करें। शुरू में नकली मुस्कान रखें, धीरे धीरे अपनेआप को खुश रखने की आदत हो जाएगी। थोड़ा समय जरूर लगेगा पर नकली हँसी असली हँसी में बदल जाएगी। चेहरे की लकीरें, झुर्रियां, झाइयाँ दूर हो जाएगी। जीवन मे ऊंचाईयों पर जाने का मूलमंत्र तनावरहित चमकदार और प्रसन्न चेहरा होता है जो सबको आकर्षित करता है।