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Saturday, September 7, 2019

कैसे अमीर हो जाता है अमीर

लोग कहते हैं कि पैसा ही पैसे को खींचता है, इसीलिए अमीर और अमीर हो जाता है और गरीब और गरीब हो जाता है। ये एक कहावत है जिसका अर्थ यह है कि जिस के पास पैसा होता है वह उस पैसे का प्रयोग करके आमदनी बढ़ाने की कोशिश कर सकता है और ज्यादा पैसा बना सकता है। ये जो प्रक्रिया शुरू होती है वही ज्यादा पैसा बनाने में मदद करती है परन्तु धनवान वही हो सकता है जो बुद्धि का इस्तेमाल करता है।

 इसी संदर्भ में एक पुरानी कहानी याद आ गई।एक व्यापारी था। जब व्यापारी ने थोड़ा बहुत धन कमा लिया तो उसने काम में मदद के लिए एक कर्मचारी रख लिया जो उसके घर पर ही रहने लगा और घर का काम भी करने लगा। कुछ ही समय में व्यापारी ने काफी उन्नति कर ली, उसकी गिनती धनवान लोगो मे होने लगी। एक दिन सेवक के मन मे आया कि मेंरा सेठ तो थोड़े समय में ही इतना पैसे वाला हो गया है और मैं वहीँ का वहीँ कर्मचारी ही रह गया। कई दिन तक सोचने के बाद एक दिन उसने व्यापारी से उसकी अमीरी का राज पूछ ही लिया। व्यापारी ने बताया कि बुद्धि का प्रयोग करके कोई भी थोड़े से धन को बढ़ा सकता है क्योंकि धन में चुम्बकीय ताकत होती है इसलिए पैसा ही पैसे को खींचता है। सेवक ने सारी बात सुनकर अमीर बनने की ठान ली।

वह रोज देखता था कि व्यापारी रोज ग्राहकों से मिली रकम को सोने के सिक्कों में बदलकर अपने कमरे की एक अलमारी में रखकर कमरे को ताला लगा दिया करता था। सेवक ने अपनी पगार को इक्कट्ठा करके बदले में एक सोने का सिक्का ले लिया और एक दिन वह सब काम समाप्त करके रात को सोने का सिक्का हाथ मे लेकर क़मरे के बाहर बैठ गया। वह मन ही मन सोच रहा था कि इस सिक्के के असर से अलमारी में से सब सिक्के लाइन लगाकर दरवाजे की दरार के नीचे से बाहर आ जाएंगे और वो उन्हें इक्कट्ठा करकें अमीर बन जायेगा। इसी भावना से उसने अपने हाथ मे पकड़े सिक्के को दरार के नीचे लगा दिया। काफी देर तक कुछ नहीं हुआ।

उसका हाथ भी दर्द करने लगा वो थकने भी लगा और ऐसे में उसे हल्का सा नींद का झोंका आया, ध्यान चूका और हाथ से सिक्का छूट कर दरार के नीचे से कमरे के अंदर चला गया। अब सेवक की हालत खराब हो गई एकलौता सिक्का था वो भी चला गया।वो बहुत गुस्से में अपने मालिक के पास गया, उसे सारी बात बताई और बोला कि ये झूठी बात है कि पैसा ही पैसे को खीचता है वो सारी रात बैठा रहा पर उसका पैसा कुछ भी नहीं खींच सका। अब मालिक के हँसने की बारी थी। उसने कहा कि मेरा पैसा ज्यादा था जबकि तुम्हारा सिक्का अकेला था इसलिए मेरे सिक्कों ने तुम्हारे सिक्के को अपने पास खींच लिया। समझदारीपूर्ण तरीके के द्वारा ही पैसा बनाया जा सकता है मूर्खतापूर्ण तरीके से नहीं। मूर्खतापूर्ण काम का नतीजा ये हुआ कि उसका इकलौता सिक्का भी हाथ से चला गया।इसको आज के समय में रखकर हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। आज के समय में सबसे बड़ा सोने का सिक्का हमारी बुद्धि का सही प्रयोग करना है। दरअसल हमारे साथ भी अक्सर ऐसा होता है कि अगर किसी एक व्यक्ति को किसी काम से फायदा हो गया तो हम भी फ़ायदे के लिए बिना सोचे समझे उसकी नकल करते है तब ज़रूरी नहीं होता वही काम हमें भी उतना ही फायदा देगा जितना एक व्यक्ति को दिया है। इसकी वजह यह है कि एक व्यक्ति के काम करने की लगन, काम करने का समय, और काम करने का तरीका अलग हो सकता है उसका अपने काम को पेश करने का अंदाज भिन्न हो सकता है और यही सब चीजें उस के लाभ, फायदे, और मुनाफ़े को कम या ज्यादा कर देती हैं। दफ्तर में सहयोगियों के बीच में भी यही होता है और हम यह कह देते हैं कि दूसरे को तरक्की मिल गई और उसकी तनख्वाह भी बढ़ गई जबकि मेरी तरक्की होनी थी यानि तनख्वाह मेरी बढ़नी थी। अब व्यवसाय करने वाले लोग अन्य व्यवसायियो को देखकर सोचते है कि हम एक ही चीज बेचते हैं लेकिन दूसरे अधिक मात्रा में मुनाफा कमा रहे हैं। तब हमें सोचना चाहिए कि आमदनी बढ़ाने के लिये सामने वाला अपने अपने काम मे कोई नई तकनीक इस्तेमाल कर रहा होगा।

अब हमें क्या करना चाहिए यह ठीक से समझ में आ जाए इसके लिए
1 . हरेक काम निर्धारित समय सीमा के अंदर ही समाप्त करना चाहिए।
 2.किसी की नकल करने के स्थान पर अपने विचारो को प्रयोग करके काम करने से काम में नवीनता आएगी जो सबको प्रभावित करेगी।
3.अपने काम को स्पष्ट, साफ सुथरा, पारदर्शी और प्रभावशाली तरीके से करने की कोशिश करें।
4.अपने काम या व्यापार में अपनी एक विशेष छाप छोड़ने की कोशिश करें फिर चाहे वह पुरातनवादी हो,आधुनिक हो,वैज्ञानिक दृष्टिकोण हो या कलात्मक अभिरुचि का प्रदर्शन हो। ताकि आपके काम या व्यवसाय को एक नई पहचान मिले।

सच बात है कि मेहनत, लग्न,जोश,ईमानदारी, सच्चाई, औऱ बुद्धिमानी के बल पर आमदनी को बढ़ाया जा सकता है।इसी उम्मीद के साथ

खुश रहो,स्वस्थ रहो,व्यस्त रहो, मस्त रहो।

Wednesday, September 4, 2019

संस्कार

हमारे जीवन के आरम्भ से ही कुछ विशेष कर्मकांड शुरू हो जाते हैं। जिनमे से कुछ तो हर साल आते है और विशेष रूप से उनका पालन प्रत्येक वर्ष किया जाता है। कुछ समय,उम्र अवस्था के अनुसार निभाये जाते है जैसे नवजात शिशु के बाल उतरवाना ( मुंडन संस्कार ), पहली बार बालक को अन्न खिलाना (अन्न प्राशन संस्कार) हरेक त्यौहार, रीति-रिवाज, रस्मों, व्रत और उत्सव से जुड़ी अनेक कहानियां हैं जिनमें कोई न कोई संदेश छुपा हुआ होता है, क्योंकि आजकल त्योहारों का मौसम चल रहा है। अभी नाग पंचमी, ओकद्वास, ऋषि पंचमी, रक्षा बंधन, गूगा नवमी कृष्ण जन्माष्टमी पिठौरी अमावस्या आदि बहुत से त्यौहार निकले है और कजरी तीज, दुबड़ी साते, गणेश चतुर्थी से अनन्त चौदस तक का गणेश उत्सव,नवरात्रि, दशहरा, करवाचौथ, अहोई अष्टमी, दीवाली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज आदि बहुत से त्यौहार आने वाले हैं। तो केभी कभी प्राचीन, धार्मिक कहानियों जो इन बिशेष अवसरों पर बैठ कर एक दूसरे को सुनाई जाती हैं वह भी आपको बताऊँगी।

एक बुढ़िया माई थी। एक झोपड़ी मेंअकेली रहती थी एक लड़का था जो रोजगार के लिए शहर से बाहर रहता था। पति का स्वर्गवास हो गया था। रोज सुबह आँगन की मिट्टी से गणपतिं जी की छोटी सी प्रतिमा बनाती ,उनकी पूजा पाठ करती,ओर जब उनपर जल चढ़ाती तो मिट्टी भ जाती थी। उसका वर्षो से यही नियम चल रहा था। एक दिन उसने देखा साथ वाली जमीन पर एक सेठ का मकान बनना शुरू हो गया और बहुत सारे राजगीर (मकान बनाने वाले मजदूर) काम कर रहे है। उसने देखा कि मजदूरों ने जो दीवार बनाई है उस पर खूब पानी का छिड़काव कर रहे हैं पर दीवार को कुछ नहीं हुआ।

अब माई ने जाकर मजदूरों से पूछा कि मैं तो रोज गणेशजी बनाती हूं लेकिन पानी डालते ही वह गल जाते हैं, और फिर गिर जाते हैं मुझे तो रोज नये बनाने पड़ते है। मजदूरों ने बताया कि वह पत्थर पर काम कर रहे हैं पत्थर पानी से खराब नहीं होगा। माई को ये बात एकदम नई और बहुत अच्छी लगी। उसने एक छोटी वाली अंगुली के इशारे से कहा कि मेरे लिए भी पत्थर के इतने छोटे से गणेशजी बना दो ।मेरे पास पैसे नही है लेकिन मैं खूब सारी दुआयें दूँगी। कामगारो ने हँस कर कहा कि जितने समय में तेरा काम करेंगे उतने में तो एक पूरी दीवार खड़ी कर देंगे। माई बिचारि दुखी मन से चली गई पर उसके बाद कारीगर दीवार बनाये तो वह सीधी नही बनी उन्होंने दीवार गिरा कर दुबारा बनाई पर फिर भी नही बनी। शाम को सेठ जी ने आकर देखा कि आज कोई काम नहीं किया है उसने कारण पूछा तो कामगारों ने सारी बात बताईऔर बताया कि, तभी से ये दीवार सीधी नही बन रही। सेठजी ने सारी बात बहुत ध्यान से सुनी फिर माई को आदर के साथ बुलाकर पत्थर के गणपति जी बनवाकर दे दिए औऱ मिस्त्रियों से मन लगाकर काम करने को कहा।इसके बाद दीवार भी ठीक बन गई।

इस कहानी को समझने का सबका नजरिया अलग हो सकता है। पर मुख्य बात ये है कि जब कोई जरूरत में होता है और हम मदद करने के लिए सामर्थ्य होते हुए भी मदद ना करें तो अपने मन का अपराध भाव ही काम बिगाड़ सकता है। अगर रास्ते में कोई बुजुर्ग मदद की आशा रखें और हम उसकी मदद ना करें कि हमारे पास समय नहीं है तो उसके बाद अपने अवचेतन मन में यही बात रहेगी कि समय होता तो मदद कर देते। जहाँ तक सँभव हो मन की बात सुनने की कोशिश करनी चाहिए।

जरूरतमंद की हर संभव मदद करके असीम सुख मिलता है औऱ मन भी प्रसन्न हो जाता है और वह प्रसन्नता कहीं से मूल्य देकर खरीदी नहीं जा सकती।वह खुशी अनमोल होती है, इसलिए किसी मजबूर,परेशान इंसान को देखकर अनदेखा करने के स्थान पर अपने कीमती और सीमित समय में से कुछ बहुमूल्य क्षण उसके लिये निकाल कर देखिए, आपको बहुत खूबसूरत आत्मिक आनन्द और शांति का अनुभव होगा। जिससे चेहरे पर नई चमक आ जायेगी।

खुश रहो,स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।

Tuesday, September 3, 2019

The Rituals

Some special rituals start at the beginning of our life. Some of which come every year and especially they are followed every year. Some times, according to the age stage, such as getting the hair of a newborn (mundan rites), feeding the child for the first time (food prasan rites), there are many stories related to each festival, customs, rituals, fasts and celebrations. Some message is hidden because nowadays the festival season is going on. Right now many festivals like Nag Panchami, Okdwas, Rishi Panchami, Raksha Bandhan, Guga Navami Krishna Janmashtami Pithori Amavasya have come out and Ganesh Utsav from Kajri Teej, Dubdi Satay, Ganesh Chaturthi to Anant Chaudas, Navratri, Dussehra, Karvachauth, Ahoi Ashtami, Many festivals like Diwali, Govardhan Puja and Bhai Dooj are going to come. So sometimes ancient, religious stories which are recited to each other on these special occasions will also tell you.

An old lady was Mai. There was only one boy in a hut who lived out of town for employment. The husband had died. Every morning, he used to make a small statue of Ganesha from the soil of the courtyard, recite his worship, and when the water was offered to him, the soil used to burn. He had been following this rule for years. One day he saw that Seth's house started to be built on the adjacent land and many Rajgir (labourers who build houses) are working. He saw that the workers were spraying a lot of water on the wall they had built, but nothing happened to the wall.

Now Mai went and asked the labourers that I make Ganesha every day, but after adding water, they melt and then fall, I have to make new ones every day. The workers told that they are working on the stone, the stone will not be spoiled by water. Mai found this thing very new and very good. He said with the gesture of a small finger that even for me make such a small Ganesha of stone. I have no money but I will give lots of prayers. The workers laughed and said that in the amount of time you do your work, you will build an entire wall. Mai Bichari left with a sad heart, but after that, the artisans built the wall, it did not become straight, they dropped the wall and rebuilt it, but still did not. In the evening Seth Ji came and saw that no work has been done today, when he asked the reason, the workers told the whole thing and told that, since then this wall is not being made straight. Sethji listened to the whole thing very carefully, then called Mai with respect and got the stone Ganpati built, and asked the Egyptians to work diligently. After that the wall also became fine.

Everyone's view of understanding this story may be different. But the main thing is that when someone is in need and if we do not help in spite of our ability to help, then the guilt of our mind can only spoil the work. If an elderly person hopes for help on the way and we do not help him that we do not have time, then after that the same thing will remain in our subconscious mind that if there was time, we would have helped. As far as possible, you should try to listen to the mind.

With all possible help to the needy one gets immense happiness and the mind also becomes happy and that happiness cannot be bought by giving value from anywhere. That happiness is priceless, so instead of seeing a forced, disturbed person, ignore your precious And for a limited time, take some precious moments out of it, and you will experience beautiful spiritual joy and peace. Which will give a new glow to the face.

Be happy, be healthy, be busy, be cool.

Wednesday, August 28, 2019

कुछ भी की कीमत



कुछ भी की कीमत

सोहन नाम का एक व्यक्ति था। वह बहुत ही चालाक था। लोगों को बातों में उलझाकर मूर्ख बना लेता था और फिर उनसे एक मोटी रकम वसूल कर लेता था। इसीलिए उससे बात करने में सब घबराते थे। एक दिन उसने सुना की, सेठ हरिराम बहुत अच्छे, दयालु और जरूरतमन्द की मदद करते हैं। बस फिर धूर्त सोहन ने हरिराम से भी रुपये ऐंठने की योजना बनाई औऱ उनके घर पहुँच गया। सोहन ने सेठजी से कहा कि, मै बहुत गरीब हूँ। कुछ मदद करदे तो आपकी बड़ी कृपा होगी। सेठ हरिराम ने कहा कि, 'तुम जो करने में सक्षम हो वही करना शुरू कर दो और अपनी तनख़्वाह बता दो'। सोहन बोला 'कुछ भी दे देना'।

सेठजी के अन्य कर्मचारियों ने बताया कि सोहन बहुत ज्यादा धूर्त, चालाक, बेईमान और मक्कार आदमी है। उससे काम पर नही रखो, वह कोई न कोई बेईमानी जरूर करेगा। सेठजी ने हँस कर बात टाल दी। अब उन कर्मचारियों ने सोहन से पूछा कि, उसने सेठजी से एक निश्चित पगार क्यो नही मांगी, सेठ जी दयावान है जरूरतमन्द की सहायता के लिए मोटी रकम देने के लिए भी तैयार हो जाते। सोहन हँसने लगा पर 'कुछ नहीं बोला क्योंकि, उसने पहले से सोच रखा था कि सेठ से कुछ भी के नाम पर ढेर सारे रुपये माँग लेगा।

काम करते हुए जब एक महीना पूरा हो गया तो वह सेठजी के पास वेतन माँगने पहुँचा। तमाशा देखने के लिए सारे कर्मचारी भी पीछे पीछे आ गए। जब सेठ जी ने पूछा कि कितनी तनख़्वाह दु, तो सोहन बोला कुछ भी दे दीजिए। सेठजी ने पाँच हजार रुपये उसको देने का कहा तो सोहन बोला ये तो बहुत कम है। मुझे तो 'कुछ' चाहिए था। अब सेठ जी ने उसके सामने दस हजार रुपये रख दिये, पर सोहन ने कहा ये तो कुछ नहीं है। सेठ जी ने पन्द्रह हजार उसके सामने रखे और सोहन ने वही बात दोहरा दी कि ये कुछ नहीं है।

सेठ हरि राम अब सारा माजरा समझ गये। उन्होंने सोहन से कहा "मैं समझ गया कि क्या कुछ देना है। मैं तुम्हारा वेतन मंगवाता हूं, तब तक तुम आराम से बैठो। अभी, मैं तम्हारे लिए बढ़िया, स्वादिष्ट, मीठा दूध मंगवाता हूँ।" सेठजी ने एक कर्मचारी को बुलाकर उससे दूध लाने के लिए कहा। सोहन मन मे हिसाब -किताब लगाने लगा कि, एक महीने के काम के लिए वह खूब मोटी रकम वसूल करेगा। तभी उसके सामने दूध आ गया। पीने के लिए मुँह तक ले जाते समय, उसने देखा कि दूध में काला सा कुछ तैर रहा है। उसके मुँह से एकदम ही निकला कि इसमें तो कुछ पड़ा है। सेठ हरीराम ने हँसते हुए कहा कि ठीक है निकाल कर अपने पास रखो क्योंकि तनख्वाह के रूप मे तुम्हें कुछ चाहिए था, तो यह तुम्हारी पूरे महीने की कमाई है। अब सोहन के पास कोई जवाब नहीं था।

ज्यादा के लालच में उसे थोड़ा भी नही मिला। कहते हैं कि "आधी छोड़, पूरी को धाय,आधी मिले ना पूरी पाय"

अक्सर हमारे साथ भी ऐसा हो जाता है कि, हम किसी काम को यह सोच कर करते हैं कि, बहुत फायदा होगा, लेकिन, ऐसा नहीं होता। तब हमें समझना चाहिए कि, यदि रास्ता सही है, तो मन मुताबिक परिणाम मिलेगा जरूर। बस समय थोड़ा ज्यादा लग सकता है। किसी भी स्थिति में घबराना नहीं चाहिए। अपनी बुद्धि का प्रयोग समझदारी से करके हर हालात के लिए तैयार रहना चाहिए। जो लोग बिना रुके, बिना थके, सही मार्ग पर चलते रहते हैं, वो एक दिन अवश्य सफल होते हैं। अपने आसपास के किसी प्रतिष्ठित, सम्मानित, सफल व्यक्ति को देखिए क्योंकि, वह जिस स्थान पर पहुँचा है। आप भी एक दिन वही होंगे बस उसके लिए आपको अपनी लगन, दृढ निश्चय, सच्चाई, ईमानदारी को कभी नहीं छोड़ना। ये सब खूबियाँ आपको थोड़े समय में ही बुद्धिमान बना देंगी। अगर आप पहले से ही होशियार हैं, तो आपकी बुद्धि को तीव्र, पैना और चतुर कर देंगी। तो अब एक नई लगन, नए निश्चय के साथ अपने रुके हुए काम को, अपने बन्द किये हुए अभियान को और किसी नई शुरुआत को फिर से आगे बढ़ाने के लिए एक नई आशा, विश्वास, उमंग, स्फूर्ति के साथ दुबारा शुरू कीजिए, और सफलता की तरफ़ अपना कदम बढ़ाना आरम्भ कीजिए। इसी कामना के साथ

खुश रहो,स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो। 

Cost of Anything

Cost of Anything


There was a person named Sohan. He was very clever. He used to fool people by confusing things and then charge a hefty amount from them. That is why everyone used to get scared to talk to him. One day he heard, Seth Hariram is very good, kind and helps the needy. Just then the rascal Sohan planned to get money from Hariram too and reached his house. Sohan told Sethji that, I am very poor. I will be very pleased if you help me. Seth Hariram said, 'Start doing what you are capable of and tell your salary'. Sohan said 'give anything'.

Other employees of Sethji told that Sohan is very sly, cunning, dishonest, and a man of deceit. Do not keep him from working, he will definitely do some dishonesty. Sethji deferred the matter by laughing. Now those employees asked Sohan why, he did not ask Sethji for a certain salary, Seth ji is compassionate and would also be ready to pay big money to help the needy. Sohan started laughing but did not say anything because, he had planned it so that he would ask for a lot of money in the name of anything.

When one month was completed while working, he reached Sethji to ask for salary. All the employees also followed closely to watch the spectacle. When Seth ji asked how much salary, Sohan said give anything. When Sethji asked to give five thousand rupees to him, Sohan said that this is very less. I wanted 'something'. Now Seth ji put ten thousand rupees in front of him, but Sohan said that this is nothing. Seth ji put fifteen thousand in front of him and Sohan repeated the same thing that it is nothing.

Seth Hari Ram now understood the whole thing. He said to Sohan "I understand what to give '. I ask for your salary, till then you sit comfortably. Right now, I ask for good, tasty, sweet milk for you." Sethji called an employee and asked him to bring milk. Sohan began to calculate the account in his mind that, for a month's work, he would charge a hefty amount. Then milk came in front of him. He was about to take a sip, he noticed something black floating in the milk. He told Seth ji that there was something in it. Seth Hariram laughed and asked Sohan to take it out and keep it because Sohan wanted something as salary, then it is your whole month's income. Now Sohan had no answer.

He did not even get a little due to greed for more. It is said that "Leave half, poor whole, half meet nor complete pay".

It often happens to us that we do some work thinking that it will be of great benefit, but it does not happen. Then we should understand that, if the path is right, then we will definitely get the desired result. Just the time may take a little longer. Do not panic in any case. Use your intelligence wisely and be prepared for every situation. Those who keep walking on the right path, without stopping, without being tired, they must succeed one day. Look at a distinguished, respected, successful person around you because the place he has reached. You too will be the same one day, just for that you never leave your passion, determination, truth, honesty. All these features will make you intelligent in a short time. If you are already smart, you will make your intelligence sharp, sharp and clever. So now, with a renewed dedication, new determination, resume your stalled work, your closed campaign and a new beginning with a renewed hope, faith, zeal, elation, and success. Start making your move towards With the same wish

Be happy, be healthy, be busy, be cool.

Saturday, August 24, 2019

Direction and Diligence

Direction and Diligence

Diligence plays a very important role in elevating personality. Often small children are told that if you work diligently, the result will be good.

When I was a child, I tried to figure out the meanings from many stories I was told, one of which is this story. I'll be sharing it with you today.

There was a speech named Shankar. He had a habit of complaining about everything. He used to think that parents love him less and more of his siblings. In school, the teachers also sided with other students, there is discrimination in the office, thinking similar things, he assumed that God is responsible for all these things. God gave him a bad surroundings, gave him negativity all around, and thinking so, Shankar went to the temple in anger. There he cursed god and said bad things in temple in front of the idol of God, which caused his anger and his mind became somewhat calm.

Now he made it a ritual to go to the temple every day and curse. People worshiping in the temple thought that everything the Lord gives is good and in the temple, one should be respectful. But Shankar did not listen to anyone, his anger, anger, anger, annoyance, trouble , Used to get irritated and fired at God.

One day, it was raining heavily, water was flooded all the way. There was so much rain that people did not even go to the temple to worship that morning. Shankar kept waiting for rain to stop for a while. When the rains became faster, Shankar went to the temple. The family members, the nearby neighbors, advised him not to go in such bad weather. He did not listen and went on his way to the temple. He started cursing the lord, he shouted and cursed so much that he lost his voice. Then he heard a voice from the idol of God saying that Shankar decided to hold god responsible for all his problems and his dedication. Then God explained it to him that Shankar went to the temple even in such a bad weather and even after so many difficulties he still had the courage to go to temple just to curse god. Shankar used to give up on any work after a few day and yet he made it his habit of going to temple everyday and to curse god. he never gave up this work. Then god explained it to him that it is Shankar's sheer will and dedication towards the task which forced god to appear. God told him only if he could show such diligence towards his work, he would have achieved great heights.

Practice and hard work done in the right direction never goes in vain. Plant is to be watered every day and you have to wait for flowers and fruits.

So from today, remove toxicity, nonsense and negative thoughts and start seeing the people around you with a new energy, passion, freshness and positive thoughts. You get happiness, progress and prosperity. Just work with dedication.

Be happy, be healthy, be busy, be cool.

दिशा और परिश्रम



दिशा और परिश्रम



लगन ब्यक्तित्व को ऊपर उठाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अक्सर छोटे बच्चों को कहा जाता है लगन से काम करोगे तो परिणाम अच्छा ही आएगा।

    बचपन में पढ़ी हुई बहुत सी कहानियों मे से आज एक आपको सुनाने की इच्छा है।मैंने कई अटपटी कहानियों से सुलझे हुए अर्थ निकलने की कोशिश की है जिनमें से एक कहानी यह भी है।

एक शंकर नाम का ब्यक्ति था। उसे हरेक बात में शिकायत करने की आदत थी। उसे लगता था कि मातापिता उसको कम और उसके भाई बहनों में ज्यादा प्यार करते है। स्कूल में अध्यापक भी अन्य छात्रों के साथ पक्षपात करते थे, ऑफिस में भेदभाव होता है, इसी तरह की बातें सोचते हुए उसने मान लिया, कि इन सब बातों के लिए भगवान जिम्मेदार है। भगवान ने ही उसे खराब माहौल दिया, उसके चारों तरफ  नकारात्मकता दी है, और इतना सोचते ही, शंकर गुस्से में मंदिर गया। वहाँ भगवान की मूर्ति के सामने दो-चार बुरी बातें सुनाई, जिससे उसका गुस्सा निकल गया और उसका मन कुछ शांत हो गया।

     अब उसने रोज मंदिर जाने का नियम बना लिया। मंदिर में पूजा करने वाले लोग उसे समझते, कि प्रभु सब कुछ अच्छा देता है। मंदिर में बुरी बात नही करनी चाहिए, पर शंकर किसी की बात नहीं सुनता था। अपनी भड़ास, गुस्सा, खीझ, परेशानी, चिड़चडाहट भगवान पर निकाल कर आ जाता था।

      एक दिन बहुत बूंदाबांदी हो रही थी सारे रास्ते में पानी भर गया ।इतनी अधिक बारिश थी कि लोग पूजा करने भी नहीं गए। शंकर थोड़ी देर तक बरखा के रुकने का इंतजार करता रहा ।जब वर्षा कम होने की बजाय ज्यादा तेज हो गई तो शंकर मंदिर चल दिया।।घरवालो ने, पासपड़ोस वालों ने मना किया कि इतने खराब मौसम में जाना ठीक नही है ।पर उसने किसी की नहीं सुनी और जाकर परमात्मा को कोसना शुरू कर दिया इतनी खरीखोटी  सुनाई कि उसके  गला  से आवाज निकलनी बन्द हो गई। तभी भगवान की मूर्ति में से आवाज आई कि शंकर अपने मन मे तूने ठान लिया था कि अपनी हरेक परेशानी के लिये तू मुझे उत्तरदायी ठहराएगा ,इसी लग्न में तुझे इतना जोश दिया कि तू खराब  समय में भी आ गया जबकि रोज आने वाले भी आज  मौसम से डर कर पूजा करने नही आये।जितनी लगन बुरा बोलने में लगाई उतनी लगन अपने सामने आये हुए काम को करने में लगाई होती तो जीवन मे बहुत ऊंचाइयों पर पहुंच गया होता। अपने काम को करते समय  हमारे आसपास के लोग हमें रोकते भी हैं और टोकते भी है। लोगो ने कहा मंदिर में बुरा नही बोल ,लोगो ने कहा मौसम खराब है घर बैठ ,पर तूने दोनों बार गलत किया ।शंकर बोला फिर भी तुम्हें मेरी बात सुनने आना पड़ा ।तब भगवान ने उसे समझाया कि रोज जाने से उसे एक काम को निरन्तरता से करने की आदत बन गई पहले वह किसी भी काम को कुछ दिन करने के बाद ही नकारात्मकता, पक्षपात, भेदभाव का बहाना बना कर छोड़ देता था। काम का अच्छा और सही परिणाम मिलने ने समय लगता है और काफ़ी कठिनाई होती है।

       सही दिशा में ,सही तरीके से   की हुई कोशिश, लगन, मेहनत, कभी बेकार नहीं जाती। पौधा लगकर रोज पानी देना होता है फूल और फल के लिए कुछ इंतजार करना पड़ता है  समय आने पर ही फल और फूल मिलता है।माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आये फल होए।

     तो आज से ही बेकार,फालतू ,व्यर्थ ,बकवास औऱ नकारात्मक विचारों को दूर करके एक नई ऊर्जा, जोश,ताजगी औऱ सकारात्मक विचारों के साथ अपने आसपास के लोगों को, माहौल को देखना आरम्भ कीजिए।आपको सामने खुशी,तरक्की, उन्नति और खुशहाली इंतजार करती दिखाई देगी।बस अपनी काम करने की लगन को किसी भी कीमत पर कम मत होने देना।

 खुश रहो,स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।