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Saturday, May 30, 2020
खुशी की परिभाषा
मॉल में बिक्री चल रही थी, तो रजनी ने रसोई घर के लिए नया डिनर सेट खरीद लिया। घर आकर, रजनी ने रसोईघर में से पुराने बर्तन निकालकर एक तरफ रख दिये, और नया डिनर सेट रैक में लगा दिये। उसे एक तृप्ति की भावना आने गई कि अलग-अलग मेल के बर्तनों से रसोई बहुत बेकार दिखाई देती थी। लेकिन अब डिनर सेट की जगमगाहट से रसोईघर पॉश दिखाई दे रहा था। कामवाली बाई कमला ने रसोईघर में नीचे रखा बर्तनों का ढेर देखा तो उसकी त्योरियाँ चढ़ गई कि, आज इतने सारे बर्तन माँजने होंगे। पर तभी रजनी बोली कि "ये बर्तन कबाड़ी वाले को देने हैं। कोई तुझे चाहिए तो ले जाना"। इतना सुनते ही कमला के चेहरे का भाव बदल गया। सारे स्टील के चमचमाते बर्तन हैं। कमला ने धीरे से पूछा कि सारे ले लू क्या। नया डिनर सेट इतना अच्छा लग रहा था की रजनी ने चहकते हुए कहा कि "हाँ सब ले जा"। कमला ने जल्दी से सब काम किया औऱ सारे बर्तन समेट कर अपने घर ले आई। उसके पास तो बहुत कम बर्तन थे, जो पुराने घिसे हुए थे। उन बर्तनों को हटा कर, लाये हुए बर्तन साफ करके करीने से लगा दिए और सोचने लगी कि सब बेकार के टूटे फूटे हैं कबाड़ी को दे दूँगी। रसोईघर को देखकर उसे बहुत तृप्ति की भावना आ रही थी। तभी दरवाजे पर एक भिखारी ने चाय के लिए गुहार लगाई। कमला चाय लेकर गई तो उसने देखा भिखारी के हाथ में एल्मुनियम का टूटा, चटका हुआ गन्दा सा डिब्बा है जो उसने चाय के लिए आगे कर दिया। कमला फटाफट अंदर गई और अपने बर्तनों में से एक बर्तन में चाय डालकर भिखारी को पीने के लिये दे दी। चाय पीने के बाद भिकारी ने बर्तन वापस लौटाया तो कमला बोली तुम इसे रख लो और अंदर से बाकी के चार बर्तन भी लाकर उसे दे दिए। भिखारी ने अपने झोले से दोनों बर्तनों को निकाल कर कूड़ेदान में डाल दिया औऱ खुशी से गुनगुनाते हुए आगे बढ़ गया।
खुशी की परिभाषा सबके लिए अलग अलग हो सकती हैं।परंतु किसी की मदद करने से जो आत्मसंतोष का अनुभव होता है वह अनमोल है। रजनी बर्तन कबाड़ी को देकर कुछ रुपये ले सकती थी परन्तु उसने कमला को मुफ्त में बर्तन दे दिए औऱ कमला को बर्तन बिना रुपये खर्च किये मिले थे तो उसने भी अपने बर्तन भिखारी को दे दिए।
भिखारी ने अपने पुराने बर्तन कूड़ेदान में दाल दिए जहाँ से उन्हें कूड़ा उठाने वाले लोगों ने उठा लिया। यह एक छोटा सा कदम आगे चलकर एक कड़ी (चेन) में बदल गया। हम किसी अच्छे काम के लिए एक छोटा सा कदम उठाते हैं तो वह अपने साथ बहुत कुछ अच्छाई लेकर आगे बढ़ता है। तो इस खुशी को महसूस करने के लिए प्रतिदिन एक अच्छा काम करने की आदत बनाये। वो अच्छा काम कुछ भी हो सकता है और यदि किसी की मदद करना अटपटा लगता है कोई हिचक महसूस होती है तो खुशी पाने के लिए अलग हट कर काम करें- जैसे सार्वजनिक पौधों को पानी देना, पक्षियों को दाना डालना, पशुओं को चारा खिलाना, मछलियों को आटे की गोलियाँ डालना।
Wednesday, May 27, 2020
कोरोना सकारात्मकता
हम सबने बचपन में एक कहानी सुनी थी कि एक कछुआ और खरगोश में रेस लगी और सबने कछुए को समझाया कि खरगोश की फुर्ती के सामने कछुआ जीत नहीं सकता। परन्तु कछुआ दृढ़ निश्चय से, जीतने का संकल्प करके रेस में भाग लेता है। खरगोश चार छलाँग मे आधी से ज्यादा दूरी तय कर लेता है, और थोड़ी देर आराम करने के लिए, एक पेड़ के नीचे लेट गया। ठंडी हवा में उसकी झपकी लग गई और खरगोश गहरी नींद में सो गया। कछुआ धीरे-धीरे चलता रहा, और दौड़ जीत गया।
इस कहानी से हम सबने प्रेरणा ली थी कि, लगातार मेहनत करने से मुश्किल काम में भी सफलता प्राप्त होती है। किंतु यह पुराने समय की कहानी थी। आज का समय बेईमानी, भ्र्ष्टाचार और धोखाधड़ी का है। आज की कहानी में कछुआ दौड़ने के लिए खरगोश को चैलेंज करता है। खरगोश सोचता है कि, कछुए ने अपने पुरखों से खरगोश की हार की कहानी सुनी है, और अब रेस में बिना रुके भाग कर वह बहुत आराम से जीत जाएगा। किंतु कछुए की जिद के सामने उसकी एक ना चली और एक बार फिर दोनों के बीच रेस शुरू हुई। कछुए के सामने से खरगोश छलाँग लगाकर भागने लगा। खरगोश ने अपने पीछे कछुआ बहुत धीरे-धीरे चलता हुआ दिखाई दे रहा था। घुमावदार रास्ते पर भागते हुए उसे अचानक से जीत की रेखा के पास कछुआ दिखाई दिया। खरगोश ने लम्बी छलाँग भी लगाई पर तब तक कछुआ जीत चुका था।
ये आज के समय की सच्चाई है। कछुआ ईमानदारी से जीत नही सकता था, इसलिए, उसने जीतने की कोशिश भी नहीं की। उसने बेईमानी की और अपने भाई को जीतने की जगह के नजदीक छुपा दिया। जब भाई ने दूर से खरगोश को नजदीक आता देखा, तब उसने जीत की लाइन को छू लिया और जीत गया। कछुये और खरगोश की रेस तो पहले समय मे भी हुई थी, पर तब कछुआ ईमानदारी से जीता था। जबकि, उसके जीतने की उम्मीद नहीं थी। आज का कछुआ बेईमानी करके जीतना चाहता है क्योंकि वह अपने को कमजोर मान कर बेईमानी का सहारा लेता है। हम जानते हैं, कि, इस समय की परेशानियों से हमें यह सीख लेनी चाहिए कि, बुरे वक्त में भी कुछ ना कुछ अच्छाई जरूर होती है, क्योंकि बुरा वक्त भी हमें कोई ना कोई नया सबक जरूर सीखा कर जाता है। अब यह हम पर निर्भर करता है कि, हम उसमें से क्या-क्या सकारात्मक चीजें ग्रहण करते हैं।
आज जब चारो तरफ वैश्विक बीमारी फैली हुई है, ज्यादातर लोग बिना कोई प्रयास किये ही हार मान चुके हैं, और काफी लोगों ने बेईमानी का रास्ता अपना लिया है। ये समय नया है, हमारे माता-पिता ने भी यह समय नहीं देखा है। सबके लिए यह एक नया और परेशान करने वाला अनुभव है। मुश्किलों के बाद मिली सफलता का आनंद कुछ अलग ही होता है। सकारात्मक सोच के साथ बड़े और बच्चें एक साथ इस कठिन समय का सामना कर रहे हैं। अब काफी चीजे स्पष्ट हो गई हैं जो लोग अपने बच्चों के निर्णय पर विश्वास नहीं करते थे, सोचते थे कि बच्चों को कुछ नहीं पता होता, हमनें ज्यादा दुनिया देखी है। उन सब लोगों ने भी अब तक काफी कुछ नहीं देखा था। आज की पीढ़ी के कुछ लोग अपने परिवार के बड़ों को तिरस्कार की नजर से देखते थे, उनकों फालतू समझते थे। इस कठिन समय में घर के बड़े लोग अपने परिवार की ढाल बनकर अपने बच्चों को भावनात्मक रूप से सहारा देने खड़े हो गए। बड़ी से बड़ी समस्या में भी सबने आपस में एक दूसरे से यही कहा कि, ये कोई बड़ी मुसीबत नहीं है। और इसी तरह परिवार वालों को एकदूसरे की ताकत, सहनशीलता और काम सम्भालने की शक्ति का पता लगा। ज्यादातर घरों में पीढ़ियों का अंतर समाप्त हो गया और आदर, प्रेम और अपनापन ने जगह बना ली। यदि अच्छाई देखने की कोशिश करें, तो वह सात तालों को भी खोल कर बाहर आती है। आज के समय की सबसे पहली जरूरत सकारात्मक विचार है जो चुम्बक की तरह से चारों ओर से अच्छाई को आपके पास जरूर लायेंगे। समय गतिशील है, इसलिए, इस वक़्त को भी बीतना होगा, और अच्छा समय जरूर आएगा।
इस कहानी से हम सबने प्रेरणा ली थी कि, लगातार मेहनत करने से मुश्किल काम में भी सफलता प्राप्त होती है। किंतु यह पुराने समय की कहानी थी। आज का समय बेईमानी, भ्र्ष्टाचार और धोखाधड़ी का है। आज की कहानी में कछुआ दौड़ने के लिए खरगोश को चैलेंज करता है। खरगोश सोचता है कि, कछुए ने अपने पुरखों से खरगोश की हार की कहानी सुनी है, और अब रेस में बिना रुके भाग कर वह बहुत आराम से जीत जाएगा। किंतु कछुए की जिद के सामने उसकी एक ना चली और एक बार फिर दोनों के बीच रेस शुरू हुई। कछुए के सामने से खरगोश छलाँग लगाकर भागने लगा। खरगोश ने अपने पीछे कछुआ बहुत धीरे-धीरे चलता हुआ दिखाई दे रहा था। घुमावदार रास्ते पर भागते हुए उसे अचानक से जीत की रेखा के पास कछुआ दिखाई दिया। खरगोश ने लम्बी छलाँग भी लगाई पर तब तक कछुआ जीत चुका था।
ये आज के समय की सच्चाई है। कछुआ ईमानदारी से जीत नही सकता था, इसलिए, उसने जीतने की कोशिश भी नहीं की। उसने बेईमानी की और अपने भाई को जीतने की जगह के नजदीक छुपा दिया। जब भाई ने दूर से खरगोश को नजदीक आता देखा, तब उसने जीत की लाइन को छू लिया और जीत गया। कछुये और खरगोश की रेस तो पहले समय मे भी हुई थी, पर तब कछुआ ईमानदारी से जीता था। जबकि, उसके जीतने की उम्मीद नहीं थी। आज का कछुआ बेईमानी करके जीतना चाहता है क्योंकि वह अपने को कमजोर मान कर बेईमानी का सहारा लेता है। हम जानते हैं, कि, इस समय की परेशानियों से हमें यह सीख लेनी चाहिए कि, बुरे वक्त में भी कुछ ना कुछ अच्छाई जरूर होती है, क्योंकि बुरा वक्त भी हमें कोई ना कोई नया सबक जरूर सीखा कर जाता है। अब यह हम पर निर्भर करता है कि, हम उसमें से क्या-क्या सकारात्मक चीजें ग्रहण करते हैं।
आज जब चारो तरफ वैश्विक बीमारी फैली हुई है, ज्यादातर लोग बिना कोई प्रयास किये ही हार मान चुके हैं, और काफी लोगों ने बेईमानी का रास्ता अपना लिया है। ये समय नया है, हमारे माता-पिता ने भी यह समय नहीं देखा है। सबके लिए यह एक नया और परेशान करने वाला अनुभव है। मुश्किलों के बाद मिली सफलता का आनंद कुछ अलग ही होता है। सकारात्मक सोच के साथ बड़े और बच्चें एक साथ इस कठिन समय का सामना कर रहे हैं। अब काफी चीजे स्पष्ट हो गई हैं जो लोग अपने बच्चों के निर्णय पर विश्वास नहीं करते थे, सोचते थे कि बच्चों को कुछ नहीं पता होता, हमनें ज्यादा दुनिया देखी है। उन सब लोगों ने भी अब तक काफी कुछ नहीं देखा था। आज की पीढ़ी के कुछ लोग अपने परिवार के बड़ों को तिरस्कार की नजर से देखते थे, उनकों फालतू समझते थे। इस कठिन समय में घर के बड़े लोग अपने परिवार की ढाल बनकर अपने बच्चों को भावनात्मक रूप से सहारा देने खड़े हो गए। बड़ी से बड़ी समस्या में भी सबने आपस में एक दूसरे से यही कहा कि, ये कोई बड़ी मुसीबत नहीं है। और इसी तरह परिवार वालों को एकदूसरे की ताकत, सहनशीलता और काम सम्भालने की शक्ति का पता लगा। ज्यादातर घरों में पीढ़ियों का अंतर समाप्त हो गया और आदर, प्रेम और अपनापन ने जगह बना ली। यदि अच्छाई देखने की कोशिश करें, तो वह सात तालों को भी खोल कर बाहर आती है। आज के समय की सबसे पहली जरूरत सकारात्मक विचार है जो चुम्बक की तरह से चारों ओर से अच्छाई को आपके पास जरूर लायेंगे। समय गतिशील है, इसलिए, इस वक़्त को भी बीतना होगा, और अच्छा समय जरूर आएगा।
खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।
Wednesday, January 8, 2020
भय का भूत
भय का भूत
ये एक कुम्हार के परिवार की कहानी है। परिवार का कोई भी एक सदस्य खदान से मिट्टी खोद कर लाता था, और फिर वो उन मिट्टी के बर्तनो को बाजार में बेचते थे। जहाँ से वो मिट्टी खोदते थे, वहां बहुत कीड़े मकोड़े भी थे। और कई बार मिट्टी निकालते समय कीड़े मकोड़े काट लेते थे। तो उन्हें डर भी नही लगता था, क्योंकि, शुरू से ही उन्हें इन सबकी आदत हो गई थी। एक दिन कुम्हार मिट्टी खोद कर लाया तो उसका हाथ मिट्टी में बने बिल में चला गया और बिल मे रहने वाले किसी कीड़े मकोड़े ने उसके हाथ में काट लिया। उसने अपने हाथ पर मिट्टी लगाकर पट्टी बाँध ली, और बर्तन बना कर बाजार में बेचने के लिए चला गया। अगले दिन उसकी पत्नी मिट्टी लेने मैदान में गई तो उसने देखा कि जहाँ पर कुम्हार के हाथ पर किसी कीड़े ने काटा था। वहाँ पर एक जहरीला बिच्छू मरा हुआ पड़ा था। किसान की पत्नी समझ गई कि इसी बिच्छू ने उसके पति को काटा है। वह घबराई हुई घर पहुँची और अपने पति का इंतजार करने लगी। रात को कुम्हार घर आया, पत्नी ने उसकी तबीयत पूछी। कुम्हार बोला हाथ में दर्द है, लेकिन वो सब काम कर रहा है। पत्नी ने खाना देते समय बताया कि, उसने मैदान में मरा हुआ जहरीला बिच्छू देखा, जिसके डंक से इंसान कुछ ही घन्टे में मर जाता है। कुम्हार को तो कुछ भी नहीं हुआ था। पत्नी की बात सुनकर कुम्हार ने खाना खाने के बाद हाथ की पट्टी को खोलकर देखा तो वास्तव में जहरीले बिच्छू के काटने का निशान था। अब तो कुम्हार की हालत खराब हो गई। उसके मुँह से झाग निकलने लगा और वह जमीन पर गिर गया।इसका अंत क्या हुआ ये महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण ये है कि जब तक कुम्हार को सच्चाई पता नहीं थी, वह सारा काम कर रहा था। पर जैसे ही उसे विष का पता लगा, उसकी हालत खराब हो गई। अनदेखी परेशानी हमारे मन मे डर के भूत को बैठा देती है, औऱ हम काम करने से पहले ही डर के कारन हार जाते हैं। अगर पहले से ही मालूम हो जाए की काम कठिन है, तो हम घबरा जाते हैं। पर कितना भी मुश्किल काम हो, जब तक हमें पता नहीं होता, तब तक हम उस काम को करने की पूरी कोशिश करते है। तनाव, घबराहट और व्याकुलता से बचने के लिए हरेक काम को आसान समझ कर करना चाहिए। बीमारी कितनी भी बड़ी हो डॉक्टर हमेशा कहते हैं कि, ठीक हो जाओगे। बस यही विश्वास और सकारात्मकता हमेशा अपने साथ रखें तो मुसीबत, बीमारी, परेशानी औऱ मुश्किल हालात हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।
खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।
Wednesday, January 1, 2020
बच्चों की परवरिश
बच्चों की परवरिश
बच्चों को बचपन मे ही इस तरह के परिवेश में पालना चाहिए कि बड़े होकर एक स्वस्थ, समझदार व्यक्तित्व सामने आए। बचपन में जो भी होता है उसी का प्रभाव बच्चे के आने वाले समय के व्यक्तित्व में झलकता है।गोल-मटोल और स्वस्थ निकुंज सहशिक्षा विद्यालय में पढ़ता था। एक दिन उसकी माँ किसी काम से उसकी कक्षा में चली गई, तो देखा लड़कियाँ अलग कतार में बैठी हैं और लड़कों को अलग बैंच पर बैठाया हुआ है। यह देखकर उसे बहुत आश्चर्य हुआ। उसने कक्षा अध्यापिका से कहा कि "जब यह सहशिक्षा विद्यालय है, तो लड़कों और लड़कियों को अलग अलग पंक्तियों में क्यों बैठाया गया है"। अध्यापिका ने झेंपते हुए कहा कि "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बच्चे कहॉ और कैसे बैठे हैं"। माँ ने कहा "इस तरह तो, बच्चे बचपन से ही लड़कियों को अपने से अलग समझने लगेँगे"। टीचर बोली "ये तो अच्छी बात है। बच्चे लड़कियों का ख़ास सम्मान करेंगे"। तब माँ ने कहा कि "यह बचपन है। इसमें लड़के और लड़की का भेद बच्चों के मस्तिष्क में बिलकुल भी नहीं आना चाहिए। सह शिक्षा का अर्थ है, एकसाथ बैठ कर पढ़ाई करना"। अब कुछ दिन बाद उन्ही अध्यापिका जी ने माँ को स्कूल में बुलवाया ओर बताया कि, निकुंज ने अपने साथ बैठने वाली लड़की को धक्का मारा है। कक्षा में माँ ने देखा कि निकुंज के साथ बैठी बच्ची निकुंज से भी ज्यादा गोल मटोल है। बच्चों ने बताया कि बैंच पर जगह कम होने की वजह लड़की ने निकुंज को धक्का दे दिया जिससे वह नीचे गिर गया, जिसके कारण सब बच्चें हँसने लगे। निकुंज कपड़े झाड़कर दुबारा बैठने लगा पर तब तक बच्ची आराम से बैठ गई, तो बैंच पर जगह और कम हो गईं। जब वह बैठने लगा तो बच्ची ने दुबारा तेज की धक्का दे दिया। निकुंज की कोहनी साथ के बैंच से टकरा कर खुरच गई। उसने गुस्से में लड़की के बाल खींच दिए। टीचर ने पूरी गलती निकुंज की ही थेरायी। माँ ने सारी बात सुनी और हँसते हुए कहा कि "किसी बच्चे की गलती नहीं है क्योंकि, कक्षा में दो मोटे बच्चों को एक साथ, एक बैंच पर बैठाने की बजाए, एक पतले बच्चें के साथ एक मोटे बच्चे को बैठा दिया जाता, तो यह लड़ाई होती ही नहीं"।
बच्चे छोटी-छोटी बातों पर लड़ने लगते हैं। तब उन्हें सिखाये कि, झगड़ो का शांति से सामना करें। उस समय अगर कोई एक बच्चा उठ कर अध्यापिका को बैंच पर बची हुई जगह दिखा कर कहता कि इतनी कम जगह पर बैठ नहीं सकते तो लड़ाई नहीं होती। बचपन में ही लड़ाई को एक समस्या मान कर उसका समाधन निकलने की आदत बनाये। बच्चे हो या बड़े हो गुस्सा हमेशा नुकसान ही पहुँचाता है। सम्मान सबका करना चाहिए क्योंकि जो देंगे वही कुछ समय बाद पलट कर वापस आता है। लड़ाई का जवाब उसी तरह से देंगे, तो बात बढ़ जाती है। लेकिन खराब भाषा भाषा बोलने का उत्तर सहजता और शांति से देने से गुस्सा करने वाले का क्रोध शान्त हो सकता है, और स्वयं भी उच्च रक्तचाप और मानसिक तनाव से भी बचे रहेंगे। जब कोई अपशब्दों का प्रयोग करता है, तो शांत रहना बहुत ज्यादा मुश्किल होता है परन्तु नामुमकिन नहीं है। थोड़े अभ्यास से इन स्थितियों में चुप रहना, सही तरीके से सोचकर सटीक जवाब देना आने लगेगा।
खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।
Wednesday, December 18, 2019
सही दिशा
सही दिशा
कभी कभी समझ नहीं आता कि हमारे काम सही तरीके से आगे क्यों नहीं बढ़ रहे।बहुत ज्यादा समय लगा कर कुछ काम करने पर भी उस काम से सही प्राप्ति नहीं होती।माधव श्री कृष्ण भगवान का भक्त था। वह अक्सर सोचता था कि "मैं भगवान की इतनी भक्ति, पूजा, अर्चना करता हूँ पर भगवान मेरी सुनते नहीं है"। माधव को लगता था कि सबका समय अच्छा आने लगा है, सिर्फ उसी का समय खराब चल रहा है। उसकी पूजा पाठ किसी काम नहीं आ रही। प्रभु श्री कृष्ण जी उसकी तरफ ध्यान नहीं दे रहे, तभी तो उसके काम ठीक से नहीं हो रहे। कई दिनों तक इस तरह की बात सोचने के बाद एक दिन उसने कृष्ण जी की मूर्ति उठाकर कमरे मे ऊपर बनी टाँड़ पर पटक दी और दुर्गा जी की मूर्ति लाकर उनकी पूजा करने लगा। रोज सुबह मूर्ति के सामने धूप-दीप घुमाने लगा। एक दिन उसके मन में विचार आया कि धूप-दीप का धुँआ सीधा ऊपर की ओर जाता है और ऊपर कृष्ण जी की मूर्ति है, तो वह भी इस धुएँ को सूँघते होंगे। बस फिर क्या था, यह विचार आते ही उसने एक कपड़ा उठाया और मूर्ति की नाक पर बाँध दिया औऱ बोला कि जब मेरे काम नहीं करते तो मेरी धूप भी नहीं सूँघ सकते। जैसे ही उसने यह बोला, कृष्ण जी साक्षात प्रकट हो गए। भगवान बोले कि आज तक तू मुझे पत्थर की निर्जीव प्रतिमा समझ कर मेरी पूजा अर्चना कर रहा था। आज पहली बार तूने मन में सोचा कि मै सांस लेता हूँ। बस तभी मैं तेरी परेशानी को दूर करने के लिए प्रकट हो गया। जहाँ तुम्हारी सोच की दिशा ठीक हो जाती है वहीँ काम भी ठीक होने लगते हैं।
यह एक धार्मिक कहानी है इसलिए भगवान जी सामने आ गए, वास्तविक जीवन में ऐसा नहीं होता। परन्तु इस कहानी से यह समझ में आता है कि, जिस काम को करो उसे पूरी लगन, निष्ठा और समर्पण की भावना के साथ करना चाहिए। माधव पूजा को पूरे मन से नही करता था। केवल नियम निभाने के लिए सारी पूजा करता था। इसलिए जैसे ही उसने सोचा कि मूर्ति सांस लेती है, वही क्षण था, जब उसका मन की भावना समर्पण की भावना में बदल गई। जब हम काम को दिनचर्या के अनुसार करते है तो वह बहुत निर्जीव होता है। उसमें सार्थकता का अभाव होता है चाहे दफ्तर हो, घर हो या अपना कोई काम उसको सकारात्मक सोच के साथ खुशी से, मन लगा कर किया जाए तो परिणाम भी सकारात्मक प्रभाव देगा। जबकि काम को निबटाने के विचार से करना, बोझल मन से करना उस काम अपने ऊपर बोझ बना देता है। जिसकी वजह से काम करना एक सिरदर्द बन जाता है। चाहे जो भी करना चाहते हो उसे आनन्द लेकर करें। उसमें अपनी योग्यता का पूरा सौ प्रतिशत योगदान दें। तब उस काम का नतीजा भी सौ प्रतिशत सकारात्मक और खुशी देनें वाला मिलेगा।
खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।
Tuesday, December 3, 2019
सबका पालनहार
सबका पालनहार
सप्ताह में सात दिन होते हैं और सबके साथ कोई कहानी जुड़ी हुई है। हरेक दिन की अनेक कहानियाँ हैं। आज रविवार की अनेकों कहानियों में से एक कहानी की बात करते हैं।एक सुखी, सम्पन्न राज्य का राजा बहुत धार्मिक, कर्मकाण्ड करने वाला और दयालु था। उसकी पत्नी रोज पूजा करने मंदिर जाती थी। एक दिन पूजा के बाद पंडित जी रानी के माथे पर "रोली" से तिलक किया, सिर पर अक्षत (चावल) छिड़के। रानी ने हाथ आगे किया तो पंडित जी ने उसमें चरणामृत (भगवान के समीप रखा जल) दिया, जिसको रानी ने पीकर हाथ को सिर पर फिरा लिया, हथेली पर बची पानी की बूंदे सिर पर लगा ली। रानी ने पूछा कि हमने भगवान को कभी देखा नहीं है तो उसकी पूजा क्यों करते हैं। पंडित जी ने बताया कि भगवान सबके भोजन की व्यवस्था करतें हैं। हमारा पालनपोषण करते हैं इसलिए उनका सम्मान करने का यह एक तरीका है। रानी को ये बात कुछ ठीक नहीं लगी। उसने देखा कि बराबर में मीठे प्रसाद पर चींटियाँ लगी हुई हैं। रानी ने एक चींटी को उठाया और अपने बालों के बीच मे जूड़े में उसे बन्द कर दिया। रात को सोते समय रानी ने मंदिर में हुई सारी बात राजा को बताई तभी उसे चींटी का ध्यान आया। रानी ने बालों का जूड़ा खोला तो चींटी बाहर निकली। रानी को बड़ा अचम्भा हुआ कि चींटी सुबह से बिना भोजन, पानी के भी ठीकठाक बाहर आ गई थी। तब राजा ने समझाया कि जो चावल पंडित जी ने तुम्हारे सिर पर छिड़कें थे। उसका एक दाना भी चींटी के भोजन के लिए बहुत था, और जो चरणामृत का हाथ सिर पर फिराया उस जल की बूंदें जो बालों पर लगी होंगी, तो वह चींटी के पूरे दिन के पानी की व्यवस्था थी। तब रानी को समझ में आया की भगवान ही पशु, पक्षी, पेड़, पौधे और मनुष्य आदि सभी का ध्यान रखते है।
यह बात सही है कि जो भगवान पेड़ों पर सो रहे पक्षियों को गिरने नहीं देते, उन्होंने सबकी कोई ना कोई व्यवस्था जरूर की है। किन्तु इसका अर्थ यह नही है कि हम हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाये कि भोजन तो मिल ही जायेगा।जैसा कि बड़े बुजुर्गों ने कहा है कि इंसान भूखा जागता जरूर है पर सोता नहीं है। लेकिन आज के समय में यदि हम अपने जीवन को अच्छा बनाना चाहते हैं तो थोड़ी मेहनत अधिक करनी होगी क्योंकि केवल पेट भरने के लिए जीवन, मनुष्य का उद्देश्य नहीं है। हम पशु, पक्षियों से उन्नत हैं हमारे पास बुद्धि, विवेक, ज्ञान और समझदारी है। जिसके पास ये सब है वह थोड़ा थोड़ा प्रयत्न करके अपनी जीवनशैली को और अधिक अच्छा बना सकता है। थोड़ा समय जरूर लगता है लेकिन सयंम, लगन और शान्ति के साथ किसी भी साधारण परिस्थिति को अति उत्तम स्थिति में बदला जा सकता है।
खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।
Tuesday, November 26, 2019
विश्वास और अंधविश्वास
विश्वास और अंधविश्वास
विश्वास और अंधविश्वास में बहुत बारीक सा अंतर होता है और अगर वह फर्क समझा नहीं जाए तो विश्वास को अंधविश्वास में बदलते देर नहीं लगती।
एक गाँव में बहुत बारिश हो रही थी। खूब पानी भरने लगा। लोग जान बचा कर गाँव छोड़कर जा रहे थे। गाँव में रहने वाले नीलेश को भगवान पर अटूट विश्वास था और वह सब लोगों को कह रहा था, कि, "गाँव को छोड़कर जाने की जरूरत नहीं है। भगवान की कृपा से या तो बारिश बन्द हो जाएगी या बचने का कोई मार्ग मिल जाएगा"। लोग उसकी बात सुनते और बिना कुछ कहे आगे बढ जाते क्योंकि वे भी दुखी होकर जा रहे थे कि सारा सामान भी छोड़कर भागना पड़ रहा है। जो जाना नहीं चाहते थे वह घर की छतों पर चढ़कर बैठ गए अब इतना पानी भर गया कि नीलेश को भी अपने घर की छत पर जाना पड़ा। उसे पूरा विश्वास था कि ईश्वर खुद उसे बचाने के लिए आएंगे। जब पानी और ज्यादा भरने लगा तो लोग नावों में बैठकर जाने लगे छत तक पानी भर गया तो नीलेश साथ के पेड़ पर चढ़ गया। बराबर से उसके जानने वाले लोग नाव में निकले और नीलेश से भी नाव में आने के लिए कहा। परन्तु नीलेश ने मना कर दिया। पानी बढ़ता गया और नीलेश पेड़ की ऊंची शाखा पर चढ़ता गया। थोड़ी देर में बचाव दल का हवाईजहाज आया औऱ उसमें से रस्सियां लटकाई गई जिन्हें पकड़ कर लोग हवाई जहाज में पहुंच गए। परन्तु नीलेश ने रस्सी पकड़ने से इंकार कर दिया और कह दिया कि मुझे अपने परमात्मा पर पूरा विश्वास है, वह मुझे बचा लेंगें। परन्तु थोड़ी देर में चारों तरफ पानी भर गया और निलेश उस पानी में डूब गया।
मरने के बाद जब उसे भगवान के सामने लाया गया तो वह जोर जोर से चिल्लाने लगा कि मैने आप पर इतना अधिक विश्वास किया किंतु मेरी परेशानी के समय तुमने मेरी मदद नहीं की। मैं तुम्हारा इंतजार करता रहा पर तुम नहीं आये और मेरी जान चली गई। तब भगवान बोले मैं तो बार बार तुझे बचाने के लिए आया लेकिन तूने मेरा विश्वास ही नहीं किया। मैंने बारिश के शुरू होने पर ही गाँव वालों के माध्यम से तुम्हें छोड़कर जाने के लिए कहा।जब पानी भर गया तो मैंने नाव भेजी औऱ जब तुमने अपनी जान बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया तो मैंने हवाई जहाज से रस्सी भी लटकाई जिसे पकड़ कर तुम बच सकते थे पर तुम्हारा विश्वास अंधविश्वास में बदल चुका था जिसके कारण तुमने अपने को बचाने का कोई प्रयास नही किया।
इस तरह की बात कई बार हमारे साथ भी होती है कि हम अपनी परिस्थितियों को स्वयं सुधारने के स्थान पर दूसरे से उम्मीद करते है। किसी व्यक्ति विशेष के ऊपर भरोसा करना बुरी बात नहीं है लेकिन भरोसे के चलते सबकुछ ठीक अपनेआप ठीक हो जाएगा यह सोचना ठीक नहीं है। सबकुछ ठीक करने के लिए खुद भी बहुत कुछ करना चाहिए। भगवान पर विश्वास करना अच्छी बात है पर उसे अंधविश्वास में नही बदलना चाहिए। भगवान किसी को माध्यम बनाते हैं आपका काम करने के लिए ।
भगवान खुद नीचे उतर कर नहीं आते किसी काम को करने के लिए। भगवान के भरोसे काम छोड़ना नहीं चाहिए, बल्कि ज्यादा लगन और मेहनत से काम करना चाहिए। इस विश्वास के साथ की भगवान की सहायता मिलेगी और सब ठीक होगा। इस विश्वास की सकारात्मकता ही काम को पूरा करने में मदद करेगी।
खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।
Saturday, October 19, 2019
कड़ी मेहनत का मूल्य
कड़ी मेहनत का मूल्य।
जिस काम को करने से कुछ अच्छा मिलता है उन्हें करते रहना चाहिए।एक व्यक्ति (नन्दन) को बगीचे में माली का काम मिला। मालिक ने उसे बता दिया था कि बगीचे में ज्यादा पेड़-पौधे नहीं है इसलिए वह बगीचे को बेचने की सोच रहा हैं।नन्दन मन लगाकर काम करने लगा। उसने पेडों के आसपास की जगह पर सफाई करके खूब सारे फूलों वाले पौधे लगा दिये। नन्दन बगीचे में ही रहकर पेड़ पौधों की देखभाल करने लगा। रात दिन की मेहनत से कुछ ही समय में बगीचे में चारो तरफ हरियाली दिखाई देने लगी। बाग के फूलों और फलों को बेचने से आमदनी होने लगी। मालिक भी नन्दन से बहुत खुश रहने लगा। एक रात नन्दन को एक पेड़ से आवाज आई कि वह नन्दन की मेहनत से प्रसन्न होकर जमीन के नीचे दबा हुआ धन नन्दन को देना चाहते हैं। यह बात सुनकर नन्दन की खुशी का ठिकाना न रहा। उसने जमीन खोदकर धन से भरा मटका निकाल लिया। वह सोचने लगा कि अभी तो महीने की पगार से उसका खर्चा चल रहा है जब अपने घर जाएगा तब यह धन निकाल कर ले जाएगा। यह सोचकर उसने धन को बापस जमीन में दबा दिया। अब उसे लगने लगा कि वो जल्दी से छुट्टी लेकर अपने घर चला जाये। उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था। मालिक ने एक महीने बाद छुट्टी की मंजूरी दी। अब नन्दन ने बगीचे का ध्यान रखना बिलकुल बन्द कर दिया। वह सारे दिन रुपयों के बारे में सोचता रहता।
बिना पानी के कुछ ही दिनों में पौधे मुरझाने लगे। किंतु फिर भी नन्दन ने पेड़-पौधों का ध्यान नहीं रखा। जाने से पहले जब उसने गड्डा खोदकर देखा तो मटके में राख भरी हुई थी। उसे कुछ समझ नहीं आया कि यह कैसे हो गया। तब पेड़ ने बताया कि वह धन नन्दन की मेहनत का फल था। नन्दन ने मेहनत करनी बन्द कर दी तो उसका फल भी नष्ट हो गया।
बगीचा नन्दन का नहीं था। वह केवल एक माली था तो वह रकम बगीचे के मालिक की थी। जिसमें से नन्दन को भी कुछ रकम मिल जाती। वह धन निकल कर कोई निवेश कर सकता था। धन खर्च कर सकता था, किंतु उसने लालच से काम लिया और जिस मेहनत, ईमानदारी के कारण धन मिला था। उसी मेहनत और ईमानदारी का साथ छोड़ दिया। वह पहले की तरह ईमानदारी से और मेहनत से काम करते हुए सारी रकम भी रख सकता था। उसने सारी धन सम्पति का लालच करते हुए आलस को भी अपना लिया।जिसकी वजह से उसकी सारी मेहनत पर पानी फिर गया।
जीवन में आगे बढ़ने के लिए, मेहनत सबसे पहले जरूरी होती है। फिर उस मेहनत को बनाये रखना भी जरूरी होता है। जब तक मेहनत करते रहोगे, तब तक सफलता की सीढ़ियाँ भी चढ़ते रहोगें और इन्ही ऊंचाईयों पर आपके लिए भी धन से भरे घड़े, मटके और संदूक इंतजार कर रहे होंगे।
खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।
Monday, October 14, 2019
हर दोस्ती अच्छी नहीं
हर दोस्ती अच्छी नहीं!
दोस्ती बहुत सोच समझ कर करनी चाहिए। बुरे दोस्त का साथ परेशानी देता है पर अच्छे दोस्त का साथ खुशी देता है।एक गोबर में रहने वाले कीड़े (गोबरी) की मित्रता एक फूलों पर मंडराने वाले कीड़े (भँवरे) से हो गई। एक दिन गोबरी ने भँवरे को अपने यहाँ खाना खाने के लिए बुलाया। भँवरे को गंदे, बदबूदार गोबर, कूड़े में जाना पड़ा। फिर एक दिन भँवरे ने गोबरी को अपने भोजन के लिए बुलाया। फूलों के सुगन्धित, स्वादिष्ट और मीठे रस को पीकर गोबरी बहुत खुश हो रहा था कि एक व्यक्ति ने उन्ही फूलों को तोड़कर मंदिर में चढ़ा दिया और थोड़ी देर बाद पंडित जी ने सब फूलों को समेट कर गंगाजी में प्रवाहित कर दिया। भँवरा गोबरी से पूछता है कि, "तुम्हे कैसा लग रहा है", तो गोबरी बोला तुम्हारी मित्रता मेरे लिए बहुत अच्छी रही। स्वादिष्ट भोजन, मंदिर में भगवान के दर्शन और अब गंगाजी का स्पर्श करके मैं धन्य हो गया। गोबरी की मित्रता के कारण, भँवरे को कूड़ा खाना पड़ा और भँवरे की मित्रता ने गोबरी का जीवन सार्थक कर दिया।
दोस्ती खुशी, प्रसन्नता, सुख, शांति, प्रेम, प्यार, सन्तोष पाने के लिए की जाती है। बुरे लोगो का साथ हमारे जीवन में कोयले की तरह होता हैं, जो गर्म होगा तो हाथ जला देगा और ठंडा होगा तो हाथ काले कर देगा। मतलब नुकसान तो करेगा ही। ऐसे लोग सच्चे मित्र नहीं होते, जोंक की तरह होते हैं। जो सामने अच्छी तरह से बात करते हैं परन्तु पीछे से आपकी कही गई बातों का मजाक उड़ाते हैं, बुराई करते हैं, गोपनीय बातें उजागर करते हैं और जरूरत पड़ने पर साथ भी नहीं देते। इसलिए नकारात्मक लोगों को अपने आसपास से हटा दे ताकि जीवन में अच्छे दोस्त के आने की जगह बने। जो आपकी भावनाओं की कद्र करने वाला हो। जिससे बात करके मन प्रसन्न हो, परेशानी भूल जाये। ऐसे दोस्त के लिए जगह बनाने के लिए अपने नजदीक से फालतू की मित्र मंडली को विदा कर दे। अपना समय किसी अन्य गतिविधियों में लगाना शुरू करे, सकारात्मक सोच के प्रभाव से गलत और बुरे लोग आपसे दूर होंगे। अच्छे दोस्त भी मिलेंगे और खुशी भी मिलेगी।
खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।
Monday, October 7, 2019
शब्द रूपी दवा या शब्द रूपी घाव
शब्द रूपी दवा या शब्द रूपी घाव
आजकल व्यंग्यात्मक भाषा का प्रचलन बहुत बढ़ गया है। लगभग सभी को सर्केजम के नाम पर कड़वी बात करने की आदत होती जा रही है।महाभारत की कहानी में धृतराष्ट्र और पाण्डु भाई थे। राजा बड़े बेटे को बनाया जाता था परंतु धृतराष्ट्र नेत्रहीन थे, अँधे थे, उन्हें दिखाई नहीं देता था तो राज्य सम्भालने का काम उनके छोटे भाई पाण्डु को दे दिया गया। धृतराष्ट्र की सन्तान कौरव और पाण्डु की सन्तान पाण्डव कहलाई। जब पांडवो ने अपना महल बनवाया तो उसमें वास्तुकार ने इस प्रकार की कला का प्रयोग किया कि फर्श पर पानी होने का आभास होता था लगता था कि वहाँ पर तालाब है। जहाँ तालाब था वहाँ लगता था की जमीन है। जब धृतराष्ट्र का बड़ा पुत्र दुर्योधन महल देखने आया तो जमीन पर तालाब समझकर उसने तालाब में तैरने के लिए अपने पैरों में से जूतियों को उतार दिया। परन्तु अगला कदम रखते ही उसे पता लगा कि वहाँ पर पानी नही हैं। जब दुर्योधन दूसरे कमरे गया तो उसे लगा की जमीन पर पानी है औरउसने सोचा कि यह भी पिछली जगह की तरह पानी का धोखा है और जमीन समझ कर पैर रख दिया और पानी में गिर गया। तब द्रोपदी ने हँसते हुए व्यंग्यात्मक वाक्य कहा था कि, "अँधे का पुत्र अँधा ही होता है"। यह सुनने के बाद ही दुर्योधन ने बदला लेने के ठान लिया था और इसी का परिणाम महाभारत के भयंकर युद्ध के रूप में सामने आया।सोलह दिन तक चले इस युद्ध में बहुत ज्यादा तबाही हुई।
पहले कहा जाता था कि ऐसी बानी बोलिये मन का आपा खोय,ओरन को शीतल करे,आप हू शीतल होये। यानि ऐसी बात बोलनी चाहिए जिसमें अपने आप को भी अच्छा लगे और सुनने वाले को भी अच्छा लगें।किसी के खराब मूड को भी अच्छी बात बोलकर ठीक किया जा सकता है पर खराब बात बोलने से स्थिति ज्यादा खराब हो सकती है। कई बार परिस्थिति थोड़ी सी बुरी होती है और हम अपने आप को उसके अनुसार बदल नहीं पाते और परेशान होकर कोई बुरी बात कह देते हैं। परिस्थिति तो कुछ समय बाद ठीक हो जाती हैं लेकिन बात का असर इतनी जल्दी ठीक नहीं होता। इसीलिए कहा जाता है कड़वा बोलने वाले का गुड़ भी नहीं बिकता और मीठा बोलने वालों की तो मिर्च भी बिक जाती है। यह हमारे शब्द ही होते जो दुखी मन पर दवा का काम करते हैं और सामने वाले का दुख कम हो जाता है।व्यंग्यात्मक बातें कई बार तलवार का काम करतें हैं जो सुनने वालों के मन पर इतना बड़ा घाव कर देते हैं कि आपस में रिश्ते बिगड़ जाते हैं। आजकल सबके साथ ही कोई न कोई परेशानी लगी रहती है ऐसे में कठोर शब्दों का प्रयोग दूसरे को और अधिक नाराज़ कर सकता है।मज़ाक करने और मज़ाक उड़ाने में अंतर होता है।मजाक करते समय सभी उसका आनन्द लेते हैं माहौल हल्का हो जाता है,तनाव कम हो जाता है। सभी लोग अपने आसपास खुशमिजाज व्यक्ति को पसंद करते हैं। जिस व्यक्ति को ताने मारने की आदत होती है उसे कुछ समय तक ही लोग पसंद करते हैं औऱ थोड़े दिन बाद उससे मिलने जुलने वालों की संख्या कम होने लगती है, जबकि खुशमिजाज, मजाकिया, हँसमुख व्यक्ति के चारो ओर से लोग आकर्षित होते हैं।
अगर आप भी चर्चित होना चाहते हैं, लोगों के चहिते बनना चाहते हैं तो हर बात पर ताना मारना, व्यंग्य करना बन्द कर दीजिए। चेहरे का व्यंग्यात्मक अंदाज हटा कर एक सहज,मुस्कुराहट कायम करने की कोशिश करें। शुरू में नकली मुस्कान रखें, धीरे धीरे अपनेआप को खुश रखने की आदत हो जाएगी। थोड़ा समय जरूर लगेगा पर नकली हँसी असली हँसी में बदल जाएगी। चेहरे की लकीरें, झुर्रियां, झाइयाँ दूर हो जाएगी। जीवन मे ऊंचाईयों पर जाने का मूलमंत्र तनावरहित चमकदार और प्रसन्न चेहरा होता है जो सबको आकर्षित करता है।
खुश रहो, स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।
Thursday, September 26, 2019
कल कभी नहीं आता
कल कभी नहीं आता
ये कहानी भी काफी पुराने समय की है। मैंने ये कहानी अपने बचपन मे सुनी थी। ये कहानी आपने भी कभी, कहीं सुनी होगी।
एक किसान के खेत मे एक चिड़िया ने अपना घोंसला बना कर अंडे दिए। जब उसमें से छोटे-छोटे चूजे निकले तो चिड़िया चूजों को अकेला छोड़कर उनके लिए भोजन लेने जाती थी। चिड़िया को अपने बच्चों की चिंता लगी रहता थी कि, अगर किसी ने फसल काटी तो, उसके बच्चों को नुकसान पहुंच जाएगा। एक दिन उसके वापस लौटने पर बच्चों ने बताया कि, किसान फसल देखने आया था और कह रहा था कि फसल पक गई है काटनी पड़ेगी। यह सुनकर चिड़िया बोली "कोई बात नहीं, अभी किसान फसल नहीं कटेगा"। अब उसे भी फ़िक्र हो गई क्योंकि अभी चूजों के पँख इतने बड़े नहीं थे की वो उड़ सके। दो दिन बाद बच्चों ने बताया की किसान आज कह रहा था कि, वह अपने पड़ोसियों को भेजेगा फसल काटने के लिए। चिड़िया जानती थी कि, कोई नही आयेगा। पर, दो दिन बाद बच्चों ने कहा कि, किसान आया था और बोल रहा था कि, "अब फसल बहुत पक चुकी है"। कल भाइयों को भेजेगा काटने के लिए। यह सुनकर चिड़िया बोली उड़ने का अभ्यास करते रहना क्योंकि दो चार दिन मै ही हमें यह जगह छोड़नी होगी। पर अभी कल उसके भाई काम करने नहीं आएंगे। अबकी बार किसान आया तो वह फसल देखकर बोला कि, "अब तो मुझे ही काटना पड़ेगा, कोई किसी का काम नहीं करता। मुझे अपना काम खुद ही करना होगा नहीं तो फसल खराब हो जाएगी"। जब चिड़िया के बच्चों ने यह बात चिड़िया को बताई तो वह बोली अब यहाँ पर रुकना ठीक नहीं है। उसके बच्चों के पँख भी थोड़े बड़े हो चुके थे। वह अपने बच्चों को लेकर उड़ गई।
ये बात बहुत साधारण सी लगती है लेकिन गहराई से देखे तो सच है। जब हम मन, वचन और कर्म से ठान लेते हैं, तब ही कोई काम पूरा कर सकते हैं। किसी दूसरे से काम कराने की इच्छा से कभी कोई काम नही होता। अपना काम स्वयं ही करना पड़ता है। दफ्तर के काम के लिए सहकर्मियों से काम कराने की उम्मीद करते हैं। घर में परिवार के सदस्यों से अपना काम करवाना चाहते हैं। परन्तु, कभी दूसरा कोई व्यक्ति हमारा काम कर देता है, तो बदले में कुछ हमसे भी चाहता है। और, कभी नहीं करता तब जो मानसिक तनाव होता है। उससे बचने के लिए हमेशा अपना काम स्वयं करना चाहिए।
जब हम सोचते हैं की यह करना है तब हम मानसिक रूप में अपने को काम करने के लिए तैयार कर रहे होते है। जब हम किसी के सामने मुँह से बोलते हैं अपने सोचे हुए काम को करने के बारे में, तब वचन यानी, बोली की भी ताकत जुड़ जाती है। इस प्रकार, मन अपने सोचने और मुँह अपने शब्दों से, काम को करने की ओर ले जाता हैं। तब काम को पूरा करने के लिए जो मेहनत की जाती है वही कर्म है। उसके बिना मन और वचन अर्थहीन है। मुख्य भूमिका कर्म निभाता है। इस कहानी में दो सीख छुपी हुई हैं।
१.) अगर किसान को लेकर देखे तो उसने पहले ही दिन से कहा कि फसल पक गई है। परन्तु, वह खुद काम नहीं करना चाहता था। इसलिए पड़ोसियों औऱ भाइयो पर आश्रित, निर्भर हो गया। जिससे उसका काम समयानुसार पूरा नहीं हो सका और तब उसकी फसल खराब भी हो सकती थी। यानि, काम को समय सीमा में समाप्त करने के लिए किसी का आसरा देखने की जगह, खुद करना चाहिए।
२.) अगर चिड़िया के नजरिये से देखे तो हर परिस्थिति में शान्ति, समझदारी, और संयम से निर्णय लेना चाहिए। चिड़िया ने किसान की बात से समझ लिया कि, यह आलसी हैं और अपना काम दूसरों से कराना चाहता है। सारी चीजें देखकर, समझ कर और विचार करके उसने कुछ दिन और रुकने का निर्णय किया। और अपने बच्चों को इतना बड़ा कर लिया कि, वो सब सकुशल वहाँ से निकल सके।
किसी काम को करने का विचार मन मे आते ही समझ लेना चाहिए कि, उस विचार के साथ मन की शक्ति जुड़ गई है। उस बात पर सोचना चाहिए कि, कितना समय लगेगा, कितना धन लगेगा और काम खुशी के लिए करना है या धन प्राप्ति के लिए करना है। फिर बदले में कितनी खुशी होगी या कितनी धन प्राप्ति होगी। अच्छी तरह सोच समझकर उसमें वचन की शक्ति को जोड़ें। यानि कि जो अपने हैं, आपके शुभचिंतक हैं, करीबी दोस्त, रिश्तेदार है उन्हें अपना विचार बताए। अगर किसी को नहीं बताना चाहते तो फिर जिस भी सर्वोच्च शक्ति को मानते हैं, आपका जिस भगवान् पर विश्वास हो, उनके सामने अपनी बात कहे। जिससे उस विचार के साथ वाणी, बोली, वचन की शक्ति भी जुड़ जाए। इसके बाद अपनी तीसरी और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण शक्ति-कर्म, मेहनत को जोड़ दें क्योंकि इसके बिना मन और वचन का काम बेकार हो जाता है। मुख्य भूमिका कर्म ही निभाता है। जैसे कि, आप मन मे सोचने लगें कि, घर की सफाई करनी है, फिर, जो करना है वह बोलने भी लगे की, सफाई करनी है। किंतु, जब तक काम शुरू नही करेंगे, सोचना और बोलना बेकार होता रहेगा, और गंदगी बढ़ती रहेगी। अब से आदत बनाये जो काम करना है, उसे ज्यादा समय तक नहीं लटकाना है। जल्दी से जल्दी, समय-सीमा के साथ ही पूरा करने का प्रयास करना है। शुरू में थोड़ा समय लगेगा, फिर काम को समय से पूरा करने का अभ्यास हो जाएगा और आपके सब काम बिना किसी विघ्न-बाधा के, समय से पूरे होने लगेंगे।
खुश रहो,स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।
Wednesday, September 18, 2019
थॉमस अल्वा एडिसन और दृष्टिकोण
थॉमस अल्वा एडिसन और दृष्टिकोण
कुछ दिन पहले मुझ से किसी ने कहा कि, 'आपकी कहानियों में सोने के सिक्के ही क्यों होते हैं?' तब मैंने कहा कि, 'ये उस समय की कहानियाँ है जब कागज के रुपये नहीं होते थे।' मैंने इन कहानियों में यहीं बताने की कोशिश की है कि, जो बात तब सही थी वही बात आज भी सही हो सकती है, बस नजरिया बदल कर देखने की जरूरत होती है, जिसे हम 'perspective' कहते हैं।आज के समय की कहानी की बात करते हैं। थॉमस अल्वा एडिसन की कहानी सारी दुनिया जानती है, कि कैसे उनके स्कूल से एक कागज का टुकड़ा देकर उन्हें घर वापस भेज दिया गया था। जब उन्होंने अपनी मां को वह कागज दिखाया तो माँ वह पढ़कर रोने लगीं। बेटे के पूछने पर उन्होंने बताया कि इस पर लिखा है कि, आपका बच्चा इतना होशियार है कि स्कूल के अध्यापक उसे नहीं पढ़ा सकते। तब माँ ने उन्हें अपने आप घर पर ही पढ़ाना शुरू कर दिया और कुछ समय बाद वह एक वैज्ञानिक के रूप में पहचाने जाने लगे। अपनी माताजी के स्वर्गवास के बाद घर की सफाई के समय वही कागज जब उनको मिला। तब उन्होंने कागज पढ़ा तो उसमें लिखा था कि उनका बेटा मूर्ख है इसलिए उसे स्कूल से निकाला जा रहा है।
यह कहानी नहीं है। यह हकीकत है, किंतु कितने लोगों ने इस बात को गहराई से समझा है और, कितने लोग अपने बच्चों को पढ़ाई के समय मदद करते हैं। मदद के स्थान पर जो वो खुद नहीं कर सके उसे अपने बच्चों के द्वारा पूरा करने की इच्छा रखते हैं। आज के परिवेश में परिवारजनों को चाहिए कि, जब बच्चों को भावनात्मक सहयोग की आवश्यकता हो तब माता पिता उसकी परेशानी को समझ कर कोई हल निकाले, और उसके साथ रहे, ताकि बच्चे को अकेलापन महसूस ना हो। बच्चा अपनी समस्या बिना किसी हिचकिचाहट के उनके सामने रख सके। छोटे से बच्चे के साथ से ही स्पष्ट, पारदर्शी तरीके से, मित्रों जैसा सम्बन्ध बनाने का प्रयास करते रहना चाहिए। दोंनो में दोस्तों जैसा व्यवहार होगा, तो कोई भी कटु स्थिति आने से पहले ही सुलझ जाएगी।
अपनी बात को अधिक स्पष्ट करने से पहले, एक परिचिता की बताई हुई घटना आपके साथ साझा करना चाहूँगी। मेरी एक मित्र ने बताया कि, उनके छोटे बेटे को पढ़ाई के समय काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। वह शुरुआत से ही बहुत ज्यादा बीमार रहता था। घर में थोड़ी बहुत पढ़ाई करके उसने विद्यालय की प्रवेश परीक्षा पास कर ली। लेकिन जब छात्र कक्षा में किसी एक प्रश्न का उत्तर नहीँ दिया, तो अध्यापिका ने लड़के को दीवार की तरफ मुँह करके खड़ा कर दिया। हो सकता है नई कक्षा, नये सहपाठी, नये अध्यापक और नये माहौल को देखकर शायद उत्साह में उसने कोई शरारत भी की हो, परन्तु एक ढाई साल के बच्चे के लिए आधे घंटे तक दीवार की तरफ मुँह करके खड़े होना बहुत ज्यादा बड़ी सजा थी।
बात इतनी सी नही थी। अब, अगले दिन भी, टीचर ने उसे आते ही दीवार की तरफ मुँह करके खड़ा कर दिया, थोड़ी देर बाद बेटे ने पलट कर देख लिया तो मास्टरनीजी ने उसे अलमारी के पीछे जा कर खड़े होने की सजा दे दी। अब, रोज अध्यापिका उसको दीवार की तरफ मुँह करके, लोहे की अलमारी के पीछे खड़ा कर देती थी। जल्द ही, बेटे ने स्कूल जाने से मना करना शुरू कर दिया। फिर एक दिन, माँ ने बड़े बेटे से कहा कि, मध्यावकास के समय में जाकर देखे कि छोटे को कोई बच्चा तो तंग नही करता, किस बात से डर कर वो स्कूल नहीं जाना चाहता। माँ ने घर मे पढ़ाते हुए देखा कि बेटा d और b, w और m लिखने में गलती करने लगा है। प्रतिदिन के कक्षा कार्य की अभ्यास पुस्तिका पर काम नहीं किया, काम गलत है और काम गंदा है, लिखा मिल रहा था। अब एक दिन बड़े बेटे ने घर आकर बताया कि वो किसी काम से छोटे की कक्षा में गया तो देखा कि उसे दीवार की ओर मुँह करके अलमारी के पीछे खड़े होने की सजा मिली हुई थी। अब माँ को बेटे की सारी बात समझ आ गई। जब विद्यालय में बात की तो कोई सुनवाई नहीं हुई तब अपने बच्चें को पढ़ाने के लिए माँ ने ही कमर कस ली, और फिर जिस बच्चें को बचपन मे अध्यापिका जी ने डिस्लेक्सिया मरीज, बता दिया था आज वह एक सौ तीस के आईक्यू के साथ अच्छी खासी डिग्री, डिप्लोमा और सार्टिफिकेट ले चुका है। शायद यह बेटा भी आने वाले समय का थॉमस एल्वा एडिसन हो।
जिन शिक्षा संस्थानों को बच्चों को पढ़ाने के लिए एक मोटी रकम दी जाती है, उन पर आँख बंद करके भरोसा नहीं किया जा सकता। बच्चे हमारे है, तो हमें ही उनका साथ देना है। जिससे वह हरेक दुख, तकलीफ, मुसीबत, परेशानी या समस्या से आसानी हमारे साथ बाँटे, साझा करें और उनसे घबराने की बजाय उन से बाहर निकल सके।हम उनको हर परिस्थिति का सामना करने की हिम्मत दे सकते हैं, ताकि वो कठिनाइयों को चीर कर बाहर आ सके।
खुश रहो,स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।
Saturday, September 7, 2019
कैसे अमीर हो जाता है अमीर
लोग कहते हैं कि पैसा ही पैसे को खींचता है, इसीलिए अमीर और अमीर हो जाता है और गरीब और गरीब हो जाता है। ये एक कहावत है जिसका अर्थ यह है कि जिस के पास पैसा होता है वह उस पैसे का प्रयोग करके आमदनी बढ़ाने की कोशिश कर सकता है और ज्यादा पैसा बना सकता है। ये जो प्रक्रिया शुरू होती है वही ज्यादा पैसा बनाने में मदद करती है परन्तु धनवान वही हो सकता है जो बुद्धि का इस्तेमाल करता है।
इसी संदर्भ में एक पुरानी कहानी याद आ गई।एक व्यापारी था। जब व्यापारी ने थोड़ा बहुत धन कमा लिया तो उसने काम में मदद के लिए एक कर्मचारी रख लिया जो उसके घर पर ही रहने लगा और घर का काम भी करने लगा। कुछ ही समय में व्यापारी ने काफी उन्नति कर ली, उसकी गिनती धनवान लोगो मे होने लगी। एक दिन सेवक के मन मे आया कि मेंरा सेठ तो थोड़े समय में ही इतना पैसे वाला हो गया है और मैं वहीँ का वहीँ कर्मचारी ही रह गया। कई दिन तक सोचने के बाद एक दिन उसने व्यापारी से उसकी अमीरी का राज पूछ ही लिया। व्यापारी ने बताया कि बुद्धि का प्रयोग करके कोई भी थोड़े से धन को बढ़ा सकता है क्योंकि धन में चुम्बकीय ताकत होती है इसलिए पैसा ही पैसे को खींचता है। सेवक ने सारी बात सुनकर अमीर बनने की ठान ली।
वह रोज देखता था कि व्यापारी रोज ग्राहकों से मिली रकम को सोने के सिक्कों में बदलकर अपने कमरे की एक अलमारी में रखकर कमरे को ताला लगा दिया करता था। सेवक ने अपनी पगार को इक्कट्ठा करके बदले में एक सोने का सिक्का ले लिया और एक दिन वह सब काम समाप्त करके रात को सोने का सिक्का हाथ मे लेकर क़मरे के बाहर बैठ गया। वह मन ही मन सोच रहा था कि इस सिक्के के असर से अलमारी में से सब सिक्के लाइन लगाकर दरवाजे की दरार के नीचे से बाहर आ जाएंगे और वो उन्हें इक्कट्ठा करकें अमीर बन जायेगा। इसी भावना से उसने अपने हाथ मे पकड़े सिक्के को दरार के नीचे लगा दिया। काफी देर तक कुछ नहीं हुआ।
उसका हाथ भी दर्द करने लगा वो थकने भी लगा और ऐसे में उसे हल्का सा नींद का झोंका आया, ध्यान चूका और हाथ से सिक्का छूट कर दरार के नीचे से कमरे के अंदर चला गया। अब सेवक की हालत खराब हो गई एकलौता सिक्का था वो भी चला गया।वो बहुत गुस्से में अपने मालिक के पास गया, उसे सारी बात बताई और बोला कि ये झूठी बात है कि पैसा ही पैसे को खीचता है वो सारी रात बैठा रहा पर उसका पैसा कुछ भी नहीं खींच सका। अब मालिक के हँसने की बारी थी। उसने कहा कि मेरा पैसा ज्यादा था जबकि तुम्हारा सिक्का अकेला था इसलिए मेरे सिक्कों ने तुम्हारे सिक्के को अपने पास खींच लिया। समझदारीपूर्ण तरीके के द्वारा ही पैसा बनाया जा सकता है मूर्खतापूर्ण तरीके से नहीं। मूर्खतापूर्ण काम का नतीजा ये हुआ कि उसका इकलौता सिक्का भी हाथ से चला गया।इसको आज के समय में रखकर हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। आज के समय में सबसे बड़ा सोने का सिक्का हमारी बुद्धि का सही प्रयोग करना है। दरअसल हमारे साथ भी अक्सर ऐसा होता है कि अगर किसी एक व्यक्ति को किसी काम से फायदा हो गया तो हम भी फ़ायदे के लिए बिना सोचे समझे उसकी नकल करते है तब ज़रूरी नहीं होता वही काम हमें भी उतना ही फायदा देगा जितना एक व्यक्ति को दिया है। इसकी वजह यह है कि एक व्यक्ति के काम करने की लगन, काम करने का समय, और काम करने का तरीका अलग हो सकता है उसका अपने काम को पेश करने का अंदाज भिन्न हो सकता है और यही सब चीजें उस के लाभ, फायदे, और मुनाफ़े को कम या ज्यादा कर देती हैं। दफ्तर में सहयोगियों के बीच में भी यही होता है और हम यह कह देते हैं कि दूसरे को तरक्की मिल गई और उसकी तनख्वाह भी बढ़ गई जबकि मेरी तरक्की होनी थी यानि तनख्वाह मेरी बढ़नी थी। अब व्यवसाय करने वाले लोग अन्य व्यवसायियो को देखकर सोचते है कि हम एक ही चीज बेचते हैं लेकिन दूसरे अधिक मात्रा में मुनाफा कमा रहे हैं। तब हमें सोचना चाहिए कि आमदनी बढ़ाने के लिये सामने वाला अपने अपने काम मे कोई नई तकनीक इस्तेमाल कर रहा होगा।
अब हमें क्या करना चाहिए यह ठीक से समझ में आ जाए इसके लिए
1 . हरेक काम निर्धारित समय सीमा के अंदर ही समाप्त करना चाहिए।
2.किसी की नकल करने के स्थान पर अपने विचारो को प्रयोग करके काम करने से काम में नवीनता आएगी जो सबको प्रभावित करेगी।
3.अपने काम को स्पष्ट, साफ सुथरा, पारदर्शी और प्रभावशाली तरीके से करने की कोशिश करें।
4.अपने काम या व्यापार में अपनी एक विशेष छाप छोड़ने की कोशिश करें फिर चाहे वह पुरातनवादी हो,आधुनिक हो,वैज्ञानिक दृष्टिकोण हो या कलात्मक अभिरुचि का प्रदर्शन हो। ताकि आपके काम या व्यवसाय को एक नई पहचान मिले।
सच बात है कि मेहनत, लग्न,जोश,ईमानदारी, सच्चाई, औऱ बुद्धिमानी के बल पर आमदनी को बढ़ाया जा सकता है।इसी उम्मीद के साथ
इसी संदर्भ में एक पुरानी कहानी याद आ गई।एक व्यापारी था। जब व्यापारी ने थोड़ा बहुत धन कमा लिया तो उसने काम में मदद के लिए एक कर्मचारी रख लिया जो उसके घर पर ही रहने लगा और घर का काम भी करने लगा। कुछ ही समय में व्यापारी ने काफी उन्नति कर ली, उसकी गिनती धनवान लोगो मे होने लगी। एक दिन सेवक के मन मे आया कि मेंरा सेठ तो थोड़े समय में ही इतना पैसे वाला हो गया है और मैं वहीँ का वहीँ कर्मचारी ही रह गया। कई दिन तक सोचने के बाद एक दिन उसने व्यापारी से उसकी अमीरी का राज पूछ ही लिया। व्यापारी ने बताया कि बुद्धि का प्रयोग करके कोई भी थोड़े से धन को बढ़ा सकता है क्योंकि धन में चुम्बकीय ताकत होती है इसलिए पैसा ही पैसे को खींचता है। सेवक ने सारी बात सुनकर अमीर बनने की ठान ली।
वह रोज देखता था कि व्यापारी रोज ग्राहकों से मिली रकम को सोने के सिक्कों में बदलकर अपने कमरे की एक अलमारी में रखकर कमरे को ताला लगा दिया करता था। सेवक ने अपनी पगार को इक्कट्ठा करके बदले में एक सोने का सिक्का ले लिया और एक दिन वह सब काम समाप्त करके रात को सोने का सिक्का हाथ मे लेकर क़मरे के बाहर बैठ गया। वह मन ही मन सोच रहा था कि इस सिक्के के असर से अलमारी में से सब सिक्के लाइन लगाकर दरवाजे की दरार के नीचे से बाहर आ जाएंगे और वो उन्हें इक्कट्ठा करकें अमीर बन जायेगा। इसी भावना से उसने अपने हाथ मे पकड़े सिक्के को दरार के नीचे लगा दिया। काफी देर तक कुछ नहीं हुआ।
उसका हाथ भी दर्द करने लगा वो थकने भी लगा और ऐसे में उसे हल्का सा नींद का झोंका आया, ध्यान चूका और हाथ से सिक्का छूट कर दरार के नीचे से कमरे के अंदर चला गया। अब सेवक की हालत खराब हो गई एकलौता सिक्का था वो भी चला गया।वो बहुत गुस्से में अपने मालिक के पास गया, उसे सारी बात बताई और बोला कि ये झूठी बात है कि पैसा ही पैसे को खीचता है वो सारी रात बैठा रहा पर उसका पैसा कुछ भी नहीं खींच सका। अब मालिक के हँसने की बारी थी। उसने कहा कि मेरा पैसा ज्यादा था जबकि तुम्हारा सिक्का अकेला था इसलिए मेरे सिक्कों ने तुम्हारे सिक्के को अपने पास खींच लिया। समझदारीपूर्ण तरीके के द्वारा ही पैसा बनाया जा सकता है मूर्खतापूर्ण तरीके से नहीं। मूर्खतापूर्ण काम का नतीजा ये हुआ कि उसका इकलौता सिक्का भी हाथ से चला गया।इसको आज के समय में रखकर हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। आज के समय में सबसे बड़ा सोने का सिक्का हमारी बुद्धि का सही प्रयोग करना है। दरअसल हमारे साथ भी अक्सर ऐसा होता है कि अगर किसी एक व्यक्ति को किसी काम से फायदा हो गया तो हम भी फ़ायदे के लिए बिना सोचे समझे उसकी नकल करते है तब ज़रूरी नहीं होता वही काम हमें भी उतना ही फायदा देगा जितना एक व्यक्ति को दिया है। इसकी वजह यह है कि एक व्यक्ति के काम करने की लगन, काम करने का समय, और काम करने का तरीका अलग हो सकता है उसका अपने काम को पेश करने का अंदाज भिन्न हो सकता है और यही सब चीजें उस के लाभ, फायदे, और मुनाफ़े को कम या ज्यादा कर देती हैं। दफ्तर में सहयोगियों के बीच में भी यही होता है और हम यह कह देते हैं कि दूसरे को तरक्की मिल गई और उसकी तनख्वाह भी बढ़ गई जबकि मेरी तरक्की होनी थी यानि तनख्वाह मेरी बढ़नी थी। अब व्यवसाय करने वाले लोग अन्य व्यवसायियो को देखकर सोचते है कि हम एक ही चीज बेचते हैं लेकिन दूसरे अधिक मात्रा में मुनाफा कमा रहे हैं। तब हमें सोचना चाहिए कि आमदनी बढ़ाने के लिये सामने वाला अपने अपने काम मे कोई नई तकनीक इस्तेमाल कर रहा होगा।
अब हमें क्या करना चाहिए यह ठीक से समझ में आ जाए इसके लिए
1 . हरेक काम निर्धारित समय सीमा के अंदर ही समाप्त करना चाहिए।
2.किसी की नकल करने के स्थान पर अपने विचारो को प्रयोग करके काम करने से काम में नवीनता आएगी जो सबको प्रभावित करेगी।
3.अपने काम को स्पष्ट, साफ सुथरा, पारदर्शी और प्रभावशाली तरीके से करने की कोशिश करें।
4.अपने काम या व्यापार में अपनी एक विशेष छाप छोड़ने की कोशिश करें फिर चाहे वह पुरातनवादी हो,आधुनिक हो,वैज्ञानिक दृष्टिकोण हो या कलात्मक अभिरुचि का प्रदर्शन हो। ताकि आपके काम या व्यवसाय को एक नई पहचान मिले।
सच बात है कि मेहनत, लग्न,जोश,ईमानदारी, सच्चाई, औऱ बुद्धिमानी के बल पर आमदनी को बढ़ाया जा सकता है।इसी उम्मीद के साथ
खुश रहो,स्वस्थ रहो,व्यस्त रहो, मस्त रहो।
Wednesday, September 4, 2019
संस्कार
हमारे जीवन के आरम्भ से ही कुछ विशेष कर्मकांड शुरू हो जाते हैं। जिनमे से कुछ तो हर साल आते है और विशेष रूप से उनका पालन प्रत्येक वर्ष किया जाता है। कुछ समय,उम्र अवस्था के अनुसार निभाये जाते है जैसे नवजात शिशु के बाल उतरवाना ( मुंडन संस्कार ), पहली बार बालक को अन्न खिलाना (अन्न प्राशन संस्कार) हरेक त्यौहार, रीति-रिवाज, रस्मों, व्रत और उत्सव से जुड़ी अनेक कहानियां हैं जिनमें कोई न कोई संदेश छुपा हुआ होता है, क्योंकि आजकल त्योहारों का मौसम चल रहा है। अभी नाग पंचमी, ओकद्वास, ऋषि पंचमी, रक्षा बंधन, गूगा नवमी कृष्ण जन्माष्टमी पिठौरी अमावस्या आदि बहुत से त्यौहार निकले है और कजरी तीज, दुबड़ी साते, गणेश चतुर्थी से अनन्त चौदस तक का गणेश उत्सव,नवरात्रि, दशहरा, करवाचौथ, अहोई अष्टमी, दीवाली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज आदि बहुत से त्यौहार आने वाले हैं। तो केभी कभी प्राचीन, धार्मिक कहानियों जो इन बिशेष अवसरों पर बैठ कर एक दूसरे को सुनाई जाती हैं वह भी आपको बताऊँगी।
एक बुढ़िया माई थी। एक झोपड़ी मेंअकेली रहती थी एक लड़का था जो रोजगार के लिए शहर से बाहर रहता था। पति का स्वर्गवास हो गया था। रोज सुबह आँगन की मिट्टी से गणपतिं जी की छोटी सी प्रतिमा बनाती ,उनकी पूजा पाठ करती,ओर जब उनपर जल चढ़ाती तो मिट्टी भ जाती थी। उसका वर्षो से यही नियम चल रहा था। एक दिन उसने देखा साथ वाली जमीन पर एक सेठ का मकान बनना शुरू हो गया और बहुत सारे राजगीर (मकान बनाने वाले मजदूर) काम कर रहे है। उसने देखा कि मजदूरों ने जो दीवार बनाई है उस पर खूब पानी का छिड़काव कर रहे हैं पर दीवार को कुछ नहीं हुआ।
अब माई ने जाकर मजदूरों से पूछा कि मैं तो रोज गणेशजी बनाती हूं लेकिन पानी डालते ही वह गल जाते हैं, और फिर गिर जाते हैं मुझे तो रोज नये बनाने पड़ते है। मजदूरों ने बताया कि वह पत्थर पर काम कर रहे हैं पत्थर पानी से खराब नहीं होगा। माई को ये बात एकदम नई और बहुत अच्छी लगी। उसने एक छोटी वाली अंगुली के इशारे से कहा कि मेरे लिए भी पत्थर के इतने छोटे से गणेशजी बना दो ।मेरे पास पैसे नही है लेकिन मैं खूब सारी दुआयें दूँगी। कामगारो ने हँस कर कहा कि जितने समय में तेरा काम करेंगे उतने में तो एक पूरी दीवार खड़ी कर देंगे। माई बिचारि दुखी मन से चली गई पर उसके बाद कारीगर दीवार बनाये तो वह सीधी नही बनी उन्होंने दीवार गिरा कर दुबारा बनाई पर फिर भी नही बनी। शाम को सेठ जी ने आकर देखा कि आज कोई काम नहीं किया है उसने कारण पूछा तो कामगारों ने सारी बात बताईऔर बताया कि, तभी से ये दीवार सीधी नही बन रही। सेठजी ने सारी बात बहुत ध्यान से सुनी फिर माई को आदर के साथ बुलाकर पत्थर के गणपति जी बनवाकर दे दिए औऱ मिस्त्रियों से मन लगाकर काम करने को कहा।इसके बाद दीवार भी ठीक बन गई।
इस कहानी को समझने का सबका नजरिया अलग हो सकता है। पर मुख्य बात ये है कि जब कोई जरूरत में होता है और हम मदद करने के लिए सामर्थ्य होते हुए भी मदद ना करें तो अपने मन का अपराध भाव ही काम बिगाड़ सकता है। अगर रास्ते में कोई बुजुर्ग मदद की आशा रखें और हम उसकी मदद ना करें कि हमारे पास समय नहीं है तो उसके बाद अपने अवचेतन मन में यही बात रहेगी कि समय होता तो मदद कर देते। जहाँ तक सँभव हो मन की बात सुनने की कोशिश करनी चाहिए।
जरूरतमंद की हर संभव मदद करके असीम सुख मिलता है औऱ मन भी प्रसन्न हो जाता है और वह प्रसन्नता कहीं से मूल्य देकर खरीदी नहीं जा सकती।वह खुशी अनमोल होती है, इसलिए किसी मजबूर,परेशान इंसान को देखकर अनदेखा करने के स्थान पर अपने कीमती और सीमित समय में से कुछ बहुमूल्य क्षण उसके लिये निकाल कर देखिए, आपको बहुत खूबसूरत आत्मिक आनन्द और शांति का अनुभव होगा। जिससे चेहरे पर नई चमक आ जायेगी।
खुश रहो,स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।
एक बुढ़िया माई थी। एक झोपड़ी मेंअकेली रहती थी एक लड़का था जो रोजगार के लिए शहर से बाहर रहता था। पति का स्वर्गवास हो गया था। रोज सुबह आँगन की मिट्टी से गणपतिं जी की छोटी सी प्रतिमा बनाती ,उनकी पूजा पाठ करती,ओर जब उनपर जल चढ़ाती तो मिट्टी भ जाती थी। उसका वर्षो से यही नियम चल रहा था। एक दिन उसने देखा साथ वाली जमीन पर एक सेठ का मकान बनना शुरू हो गया और बहुत सारे राजगीर (मकान बनाने वाले मजदूर) काम कर रहे है। उसने देखा कि मजदूरों ने जो दीवार बनाई है उस पर खूब पानी का छिड़काव कर रहे हैं पर दीवार को कुछ नहीं हुआ।
अब माई ने जाकर मजदूरों से पूछा कि मैं तो रोज गणेशजी बनाती हूं लेकिन पानी डालते ही वह गल जाते हैं, और फिर गिर जाते हैं मुझे तो रोज नये बनाने पड़ते है। मजदूरों ने बताया कि वह पत्थर पर काम कर रहे हैं पत्थर पानी से खराब नहीं होगा। माई को ये बात एकदम नई और बहुत अच्छी लगी। उसने एक छोटी वाली अंगुली के इशारे से कहा कि मेरे लिए भी पत्थर के इतने छोटे से गणेशजी बना दो ।मेरे पास पैसे नही है लेकिन मैं खूब सारी दुआयें दूँगी। कामगारो ने हँस कर कहा कि जितने समय में तेरा काम करेंगे उतने में तो एक पूरी दीवार खड़ी कर देंगे। माई बिचारि दुखी मन से चली गई पर उसके बाद कारीगर दीवार बनाये तो वह सीधी नही बनी उन्होंने दीवार गिरा कर दुबारा बनाई पर फिर भी नही बनी। शाम को सेठ जी ने आकर देखा कि आज कोई काम नहीं किया है उसने कारण पूछा तो कामगारों ने सारी बात बताईऔर बताया कि, तभी से ये दीवार सीधी नही बन रही। सेठजी ने सारी बात बहुत ध्यान से सुनी फिर माई को आदर के साथ बुलाकर पत्थर के गणपति जी बनवाकर दे दिए औऱ मिस्त्रियों से मन लगाकर काम करने को कहा।इसके बाद दीवार भी ठीक बन गई।
इस कहानी को समझने का सबका नजरिया अलग हो सकता है। पर मुख्य बात ये है कि जब कोई जरूरत में होता है और हम मदद करने के लिए सामर्थ्य होते हुए भी मदद ना करें तो अपने मन का अपराध भाव ही काम बिगाड़ सकता है। अगर रास्ते में कोई बुजुर्ग मदद की आशा रखें और हम उसकी मदद ना करें कि हमारे पास समय नहीं है तो उसके बाद अपने अवचेतन मन में यही बात रहेगी कि समय होता तो मदद कर देते। जहाँ तक सँभव हो मन की बात सुनने की कोशिश करनी चाहिए।
जरूरतमंद की हर संभव मदद करके असीम सुख मिलता है औऱ मन भी प्रसन्न हो जाता है और वह प्रसन्नता कहीं से मूल्य देकर खरीदी नहीं जा सकती।वह खुशी अनमोल होती है, इसलिए किसी मजबूर,परेशान इंसान को देखकर अनदेखा करने के स्थान पर अपने कीमती और सीमित समय में से कुछ बहुमूल्य क्षण उसके लिये निकाल कर देखिए, आपको बहुत खूबसूरत आत्मिक आनन्द और शांति का अनुभव होगा। जिससे चेहरे पर नई चमक आ जायेगी।
खुश रहो,स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।
Wednesday, August 28, 2019
कुछ भी की कीमत
कुछ भी की कीमत
सोहन नाम का एक व्यक्ति था। वह बहुत ही चालाक था। लोगों को बातों में उलझाकर मूर्ख बना लेता था और फिर उनसे एक मोटी रकम वसूल कर लेता था। इसीलिए उससे बात करने में सब घबराते थे। एक दिन उसने सुना की, सेठ हरिराम बहुत अच्छे, दयालु और जरूरतमन्द की मदद करते हैं। बस फिर धूर्त सोहन ने हरिराम से भी रुपये ऐंठने की योजना बनाई औऱ उनके घर पहुँच गया। सोहन ने सेठजी से कहा कि, मै बहुत गरीब हूँ। कुछ मदद करदे तो आपकी बड़ी कृपा होगी। सेठ हरिराम ने कहा कि, 'तुम जो करने में सक्षम हो वही करना शुरू कर दो और अपनी तनख़्वाह बता दो'। सोहन बोला 'कुछ भी दे देना'।सेठजी के अन्य कर्मचारियों ने बताया कि सोहन बहुत ज्यादा धूर्त, चालाक, बेईमान और मक्कार आदमी है। उससे काम पर नही रखो, वह कोई न कोई बेईमानी जरूर करेगा। सेठजी ने हँस कर बात टाल दी। अब उन कर्मचारियों ने सोहन से पूछा कि, उसने सेठजी से एक निश्चित पगार क्यो नही मांगी, सेठ जी दयावान है जरूरतमन्द की सहायता के लिए मोटी रकम देने के लिए भी तैयार हो जाते। सोहन हँसने लगा पर 'कुछ नहीं बोला क्योंकि, उसने पहले से सोच रखा था कि सेठ से कुछ भी के नाम पर ढेर सारे रुपये माँग लेगा।
काम करते हुए जब एक महीना पूरा हो गया तो वह सेठजी के पास वेतन माँगने पहुँचा। तमाशा देखने के लिए सारे कर्मचारी भी पीछे पीछे आ गए। जब सेठ जी ने पूछा कि कितनी तनख़्वाह दु, तो सोहन बोला कुछ भी दे दीजिए। सेठजी ने पाँच हजार रुपये उसको देने का कहा तो सोहन बोला ये तो बहुत कम है। मुझे तो 'कुछ' चाहिए था। अब सेठ जी ने उसके सामने दस हजार रुपये रख दिये, पर सोहन ने कहा ये तो कुछ नहीं है। सेठ जी ने पन्द्रह हजार उसके सामने रखे और सोहन ने वही बात दोहरा दी कि ये कुछ नहीं है।
सेठ हरि राम अब सारा माजरा समझ गये। उन्होंने सोहन से कहा "मैं समझ गया कि क्या कुछ देना है। मैं तुम्हारा वेतन मंगवाता हूं, तब तक तुम आराम से बैठो। अभी, मैं तम्हारे लिए बढ़िया, स्वादिष्ट, मीठा दूध मंगवाता हूँ।" सेठजी ने एक कर्मचारी को बुलाकर उससे दूध लाने के लिए कहा। सोहन मन मे हिसाब -किताब लगाने लगा कि, एक महीने के काम के लिए वह खूब मोटी रकम वसूल करेगा। तभी उसके सामने दूध आ गया। पीने के लिए मुँह तक ले जाते समय, उसने देखा कि दूध में काला सा कुछ तैर रहा है। उसके मुँह से एकदम ही निकला कि इसमें तो कुछ पड़ा है। सेठ हरीराम ने हँसते हुए कहा कि ठीक है निकाल कर अपने पास रखो क्योंकि तनख्वाह के रूप मे तुम्हें कुछ चाहिए था, तो यह तुम्हारी पूरे महीने की कमाई है। अब सोहन के पास कोई जवाब नहीं था।
ज्यादा के लालच में उसे थोड़ा भी नही मिला। कहते हैं कि "आधी छोड़, पूरी को धाय,आधी मिले ना पूरी पाय"।
अक्सर हमारे साथ भी ऐसा हो जाता है कि, हम किसी काम को यह सोच कर करते हैं कि, बहुत फायदा होगा, लेकिन, ऐसा नहीं होता। तब हमें समझना चाहिए कि, यदि रास्ता सही है, तो मन मुताबिक परिणाम मिलेगा जरूर। बस समय थोड़ा ज्यादा लग सकता है। किसी भी स्थिति में घबराना नहीं चाहिए। अपनी बुद्धि का प्रयोग समझदारी से करके हर हालात के लिए तैयार रहना चाहिए। जो लोग बिना रुके, बिना थके, सही मार्ग पर चलते रहते हैं, वो एक दिन अवश्य सफल होते हैं। अपने आसपास के किसी प्रतिष्ठित, सम्मानित, सफल व्यक्ति को देखिए क्योंकि, वह जिस स्थान पर पहुँचा है। आप भी एक दिन वही होंगे बस उसके लिए आपको अपनी लगन, दृढ निश्चय, सच्चाई, ईमानदारी को कभी नहीं छोड़ना। ये सब खूबियाँ आपको थोड़े समय में ही बुद्धिमान बना देंगी। अगर आप पहले से ही होशियार हैं, तो आपकी बुद्धि को तीव्र, पैना और चतुर कर देंगी। तो अब एक नई लगन, नए निश्चय के साथ अपने रुके हुए काम को, अपने बन्द किये हुए अभियान को और किसी नई शुरुआत को फिर से आगे बढ़ाने के लिए एक नई आशा, विश्वास, उमंग, स्फूर्ति के साथ दुबारा शुरू कीजिए, और सफलता की तरफ़ अपना कदम बढ़ाना आरम्भ कीजिए। इसी कामना के साथ
खुश रहो,स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।
Saturday, August 24, 2019
दिशा और परिश्रम
दिशा और परिश्रम
लगन ब्यक्तित्व को ऊपर उठाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अक्सर छोटे बच्चों को कहा जाता है लगन से काम करोगे तो परिणाम अच्छा ही आएगा।
बचपन में पढ़ी हुई बहुत सी कहानियों मे से आज एक आपको सुनाने की इच्छा है।मैंने कई अटपटी कहानियों से सुलझे हुए अर्थ निकलने की कोशिश की है जिनमें से एक कहानी यह भी है।
एक शंकर नाम का ब्यक्ति था। उसे हरेक बात में शिकायत करने की आदत थी। उसे लगता था कि मातापिता उसको कम और उसके भाई बहनों में ज्यादा प्यार करते है। स्कूल में अध्यापक भी अन्य छात्रों के साथ पक्षपात करते थे, ऑफिस में भेदभाव होता है, इसी तरह की बातें सोचते हुए उसने मान लिया, कि इन सब बातों के लिए भगवान जिम्मेदार है। भगवान ने ही उसे खराब माहौल दिया, उसके चारों तरफ नकारात्मकता दी है, और इतना सोचते ही, शंकर गुस्से में मंदिर गया। वहाँ भगवान की मूर्ति के सामने दो-चार बुरी बातें सुनाई, जिससे उसका गुस्सा निकल गया और उसका मन कुछ शांत हो गया।
अब उसने रोज मंदिर जाने का नियम बना लिया। मंदिर में पूजा करने वाले लोग उसे समझते, कि प्रभु सब कुछ अच्छा देता है। मंदिर में बुरी बात नही करनी चाहिए, पर शंकर किसी की बात नहीं सुनता था। अपनी भड़ास, गुस्सा, खीझ, परेशानी, चिड़चडाहट भगवान पर निकाल कर आ जाता था।
एक दिन बहुत बूंदाबांदी हो रही थी सारे रास्ते में पानी भर गया ।इतनी अधिक बारिश थी कि लोग पूजा करने भी नहीं गए। शंकर थोड़ी देर तक बरखा के रुकने का इंतजार करता रहा ।जब वर्षा कम होने की बजाय ज्यादा तेज हो गई तो शंकर मंदिर चल दिया।।घरवालो ने, पासपड़ोस वालों ने मना किया कि इतने खराब मौसम में जाना ठीक नही है ।पर उसने किसी की नहीं सुनी और जाकर परमात्मा को कोसना शुरू कर दिया इतनी खरीखोटी सुनाई कि उसके गला से आवाज निकलनी बन्द हो गई। तभी भगवान की मूर्ति में से आवाज आई कि शंकर अपने मन मे तूने ठान लिया था कि अपनी हरेक परेशानी के लिये तू मुझे उत्तरदायी ठहराएगा ,इसी लग्न में तुझे इतना जोश दिया कि तू खराब समय में भी आ गया जबकि रोज आने वाले भी आज मौसम से डर कर पूजा करने नही आये।जितनी लगन बुरा बोलने में लगाई उतनी लगन अपने सामने आये हुए काम को करने में लगाई होती तो जीवन मे बहुत ऊंचाइयों पर पहुंच गया होता। अपने काम को करते समय हमारे आसपास के लोग हमें रोकते भी हैं और टोकते भी है। लोगो ने कहा मंदिर में बुरा नही बोल ,लोगो ने कहा मौसम खराब है घर बैठ ,पर तूने दोनों बार गलत किया ।शंकर बोला फिर भी तुम्हें मेरी बात सुनने आना पड़ा ।तब भगवान ने उसे समझाया कि रोज जाने से उसे एक काम को निरन्तरता से करने की आदत बन गई पहले वह किसी भी काम को कुछ दिन करने के बाद ही नकारात्मकता, पक्षपात, भेदभाव का बहाना बना कर छोड़ देता था। काम का अच्छा और सही परिणाम मिलने ने समय लगता है और काफ़ी कठिनाई होती है।
सही दिशा में ,सही तरीके से की हुई कोशिश, लगन, मेहनत, कभी बेकार नहीं जाती। पौधा लगकर रोज पानी देना होता है फूल और फल के लिए कुछ इंतजार करना पड़ता है समय आने पर ही फल और फूल मिलता है।माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आये फल होए।
तो आज से ही बेकार,फालतू ,व्यर्थ ,बकवास औऱ नकारात्मक विचारों को दूर करके एक नई ऊर्जा, जोश,ताजगी औऱ सकारात्मक विचारों के साथ अपने आसपास के लोगों को, माहौल को देखना आरम्भ कीजिए।आपको सामने खुशी,तरक्की, उन्नति और खुशहाली इंतजार करती दिखाई देगी।बस अपनी काम करने की लगन को किसी भी कीमत पर कम मत होने देना।
खुश रहो,स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।
Tuesday, May 28, 2019
निन्यानवे का फेर
निन्यानवे का फेर
किसी गाँव में एक पति-पत्नी बहुत हँसी-खुशी से रहते थेा। उनका साधारण रहन-सहन थाा। सारी आमदनी खर्च हो जाती थी, और वह कुछ बचत भी नही कर पाते थे। लेकिन, फिर भी गांव वालों ने कभी उन्हें किसी भी बात के लिए नाराज होते, गुस्सा करते हुए, लड़ते-झगड़ते या चिड़चिड़ाते हुये नही देखा था। एक दिन, सब आपस मे यही बात करने लगे कि, दोनों के जीवन में सुख सुविधाएं नहीं है, फिर भी दोनों खुश रहते हैं। तब एक बुजुर्ग ने हँसते हुए कहा, कि, वह अभी निन्यानवे के फेर में नही पड़े है, इसलिए खुश हैं। जितना कमाते है उतना खर्च कर देते है कल के लिये कुछ बचा कर नही रखते औऱ कल की चिंता भी नही करते। पर कुछलोगों का कहना था कि ऐसा नहीं होता। उनके पास ज्यादा रुपये होते तो वह खर्च करते जब रुपये नही है तो खर्च कहा से करेंगे। तब बुजुर्ग ने कहा कि उन्हें कुछ रुपये देकर देख लेते हैं। अगले दिन पति को अपने घर के दरवाजे पर एक पोटली रखी हुई मिली जिसमे 99 रुपये थे। (अब ये कहानी उस समय की है जब एक रुपया कमाना बहुत ज्यादा बड़ी बात होती थी जैसे आज के एक लाख रुपये की बात कोस समय के सौ रुपये के बराबर समझ सकते हैं) उन दोनों ने गाँव में सबसे पूछा पर सबने यही कहा कि पैसे उनके नहीं है। सारे गाँव के कहने पर उन्होंने रुपये रख लिए औऱ घर आकर गिने तो वह 99 रुपये थे।दोनों सोचने लगे कि रुपये कहाँ से आये। सारी रात रुपयो के बारे में ही बात करते रहे। दिनभर काम में मन नहीं लगा और शाम को फिर वही बात करने लगे की एक रुपया मिलाकर पूरे सौ हो जायेगे।अब दोनो एक रुपया बचाने के बारे में सोचने लगे कम खाना,ज्यादा समय तक काम करना औऱ हर समय पैसे बचने की तरकीब सोचना शुरू कर दिया।धीरे धीरे हंसना कम हो गया और उसकी जगह गुस्से ने ले ली,क्योंकि अब दोनों निन्यानवे के फेर में पड़ गये थे।हमारे साथ भी यही हो रहा है।हम सब भी निन्यानवे के चक्कर में लगे हुए हैं।हँसी,खुशी, मजाक ,मौज मस्ती,शैतानी,इन सब को एक तरफ रखकर हर समय परेशानियों के बारे में सोचते रहते है आज की खुशी को महसूस करने की बजाए आने वाले समय की अनजानी मुसीबतों को सोचकर चिन्ता करते है।
आज से सोचना होगा कि जो हो रहा है वो सही है आज को आनन्द से गुजारना है, आने वाले समय को और ज्यादा सुधारना होगा पर उसके लिए आज को खराब नही करना क्योंकि आज का समय फिर लौट कर नहो आएगा। जहाँ पैसा समाज मे स्थान बनाने के लिए, रहन सहन सुधारने के लिए जरूरी हैै। वहीँ खुशी हमारे मन की, शरीर की ,चेहरे की सुंदरता, औऱ, निर्मलता के लिए जरूरी हैै। जो लोग खुश रहते है, उनका व्यक्तित्व चुम्बकीय हो जाता हैं। चेहरे पर निश्छलता आ जाती हैं, सारी बीमारियां, सारी नकारात्मकता दूर हो जाती है।
खुश रहें, स्वस्थ रहें, मस्त रहें, व्यस्त रहें
Saturday, May 25, 2019
ईमानदारी
ईमानदारी
आजकल, चारों तरफ बेईमानी, चोरी ,धोखाधड़ी के बारे में बात होती हैं। रोज की जिंदगी में कभी-कभी हमारे साथ भी, कुछ ऐसी ही बात हो जाती है, जो कभी हमे गुस्सा दिला देती है तो, कभी, परेशान कर देती हैं।○ एक भिखारी को एक रूपयों से भरी थैली मिली। उसने थैली उठाई ,रुपये निकाल कर गिने, पूरे 200 रुपये थे। तभी वहाँ एक सेठ आयाे। सेठ बहुत घबराया हुआ थाे। उसकी रुपयों से भरी थैली रास्ते में कहीं गिर गई हैे। सेठ ने भिखारी से कहा कि वह थैली ढूढ़ने वाले को कुछ रुपये इनाम में भी देगा। भिखारी ने थैली निकाल कर सेठ को दे दी और बदले में सेठ से इनाम के रुपये मांगे।अब सेठ की नीयत बदल गई। उसने रुपये गिने और बोला इसमें रुपये कम है। इसमें 300 रुपये थे। तुमने पहले ही रुपये निकाल लिये है। बात इतनी अधिक बढ़ गई कि, उन्हें राजा के पास जाना पड़ा। राजा ने सारी बात बहुत ध्यान से सुनी, और वो समझ गया कि, सेठ के मन मे बेईमानी, चालाकी और धोखाधड़ी आ गई है। राजा ने कहा कि सेठ की थैली में ज्यादा रुपये थे। इसका मतलब ये थैली इस सेठ की नही है। इस थैली का कोई मालिक नही है, और इतना कहकर राजा ने वो थैली भिखारी को दे दी।
○ हम सब के साथ, कई बार, बेईमानी हुई है।
1.परीक्षा के समय, मैंने जल्दी प्रश्नपत्र हल कर लिया। औऱ मेरे बाहर आने के बाद, मेरे पीछे वाले छात्र ने रो धोकर निरीक्षक से मेरी उत्तरपुस्तिका मांग ली और आराम से सब उत्तर की नकल कर ली।
2.बाजार में, दुकानदार "सामान" तौल कर, थैले में पलटते समय, थोडा समान, तराजू के नीचे लट के अपने थैले में गिरा लेते है।
3.सामान लेते समय जितना समय पर्स से रुपये निकलने में लगता है उतनी देर में थैली बदल कर सड़े हुए सामान को रख देते है।
4.वजन के बट्टे को घिसकर हल्का करना,
5.दफ्तर में हमारे द्वारा किए गये काम का श्रेय कोई और ले लेता है।
6.तरक्की की लाइन में नम्बर हमारा होता है और दूसरे सहयोगी साम, दाम, दंड, भेद लगाकर उसे ले लेते है
बेईमानी हर जगह है पर अभी बात अपनी कर रहे हैं जब भी ऐसा कुछ होता है बहुत गुस्सा आता है जो अपने शरीर और दिमाग के लिए बहुत खराब होता हैऔर उसके कारण ,स्वभाव में नकरात्मकता आ जाती है। पहले अपने विचारों को शान्त करे और जिस ने बेईमानी की है उसे बताये की उसकी चालाकी के बारे में आपको पता है। यदि ठंडे स्वभाव के साथ बात कर सकते हैं तो ही बात करे वरना उसे कुछ समय के लिए टाल दें।बात यदि काम से सम्बंधित है तो सोचे कि कहीं बात बिगड़ कर काम पर असर कर सकती हैं तो उसे न करें।
मन को बहुत शान्त रखें। जिन बातों को बदल नही सकते उन पर अफ़सोस करने की बजाए सोचे कि आप और अधिक पाने के अधिकारी है यह कम था इसलिए दूसरे को मिल गया।आप ज्यादा पाने के लिये नए सिरे कमर कस कर तैयार हो जाए क्योंकि अब आपको ज्यादा ही मिलेगा। इन्हीं सकारात्मक विचारों को अपनी ताकत बना कर बुराई का मुकाबला अच्छाई से करे।
खुश रहें, स्वस्थ रहें, मस्त रहें, व्यस्त रहें
Wednesday, May 22, 2019
हमें अच्छाई देखनी चाहिए
हमें अच्छाई देखनी चाहिए
एक लड़का जब भी अपनी खिड़की से बाहर देखता था, तो, बहुत दूर, एक सुनहरा, चमकीला ,सुंदर सा मकान दिखाई देता था। वह सोचता रहता था, कि, उस मकान में रहने वाले लोग कितने भाग्यशाली हैं. कितने अमीर, और कितने सुखी होंगे, जो, इतने सुंदर मकान में रहते हैं। एक दिन लड़के ने मातापिता से बोला, कि, वो एक मित्र से मिलने जा रहा है, शाम तक वापस आ जायेगा। वह ख़ुशी-ख़ुशी मुश्किल रास्ते को पार करके उस मकान तक पहुंच गया। वहाँ पर उसकी ही उम्र का एक लड़का था। पहले लड़के ने बताया, कि, उस सुंदर घर को देखने के लिए वह बहुत दूर से आया है। दूसरा लड़का हंसते हुए उसे अपनी खिड़की पर ले गया, और बोला, कि, एक सुंदर मकान तो मैं सामने की पहाड़ी पर देखता हूं, उसकी सतरँगी चमक इतनी सुंदर है, कि, दूर-दूर तक इतना खूबसूरत घर यहाँ कोई नहीं है। वह घर पहले लड़के का घर था। जिस पर रोशनी इस प्रकार से गिर रही थी, कि, वह घर सतरंगी, सुंदर, चमकीला दिखाई देता था।
यही हमारा हाल है। सच यही है, कि, हम दूसरों को देख कर, मन में सोच लेते हैं, कि, हम सब से ज्यादा दुखी है, हम बीमार है, दूसरे स्वस्थ और सुखी हैं। हर चीज में, सामने वाले को ज़्यादा "बेहतर" और अपने को "बिचारा" समझ कर, अपने लिए अच्छा सोच नही पाते। अपनी परिस्थितियों को ठीक करने के लिए किसी दूसरे की जरूरत नहीं होतीैं, हम स्वयं ही ठीक कर सकते हैं। अपनी अच्छाइयों को देखने की आदत बनानी होगी। अपनी कमियों को दूर करने के लिए मेहनत करनी होगी। हम बहुत अच्छा करते हैं और हमें ज्यादा अच्छा करना है यही मूल मंत्र तरक्की की सीढ़ी का काम करेगा। जब कभी निराशा या गुस्सा मन मे आने लगे तभी समझ लेना चाहिए कि अब मंजिल पास ही है और सफलता मिलने वाली है। जैसा सोचते हैं, वैसी ही परिस्थिति मिलने लगती ह। तो सफलता के लिए सोचना ही, सफल होने की पहचान है।
यही हमारा हाल है। सच यही है, कि, हम दूसरों को देख कर, मन में सोच लेते हैं, कि, हम सब से ज्यादा दुखी है, हम बीमार है, दूसरे स्वस्थ और सुखी हैं। हर चीज में, सामने वाले को ज़्यादा "बेहतर" और अपने को "बिचारा" समझ कर, अपने लिए अच्छा सोच नही पाते। अपनी परिस्थितियों को ठीक करने के लिए किसी दूसरे की जरूरत नहीं होतीैं, हम स्वयं ही ठीक कर सकते हैं। अपनी अच्छाइयों को देखने की आदत बनानी होगी। अपनी कमियों को दूर करने के लिए मेहनत करनी होगी। हम बहुत अच्छा करते हैं और हमें ज्यादा अच्छा करना है यही मूल मंत्र तरक्की की सीढ़ी का काम करेगा। जब कभी निराशा या गुस्सा मन मे आने लगे तभी समझ लेना चाहिए कि अब मंजिल पास ही है और सफलता मिलने वाली है। जैसा सोचते हैं, वैसी ही परिस्थिति मिलने लगती ह। तो सफलता के लिए सोचना ही, सफल होने की पहचान है।
खुश रहें, स्वस्थ रहें, मस्त रहें, व्यस्त रहें
Tuesday, May 14, 2019
लोग क्या कहेंगे!
लोग क्या कहेंगे!
एक पिता औऱ पुत्र घोड़ा खरीद कर लाते हैं। वापस लौटते समय दोनों ही बातें करते हुए चलते हैं कि बहुत बढ़िया घोड़ा बहुत कम दाम में मिल गया।तभी वहाँ से जो आदमी गुजर रहा था वह उनसे बोला कि तुम कैसे लोग हो घोड़ा होते हुए भी पैदल चल रहे हो ।यह सुनकर पिता ने अपने बेटे को घोड़े पर बैठने को कहा और खुद पैदल चलने लगा।थोड़ा आगे बढे तो सामने से जो लोग आ रहे थे वह आपस मे बोले देखो कैसा बेटा है बाप तो पैदल चल रहा है और खुद घोड़े पर है।अब लड़के ने पिता को घोड़े पर बैठा दिया और खुद पैदल चलने लगा। चार कदम ही चले थे कि आगे खेत मे काम करने वाले लोग उन्हें देख कर हंसने लगे कि देखो क्या समय आ गया बाप आराम से घोड़े पर है और बेटा बिचारा पैदल चल रहा है।अब पिता ने बेटे को भी घोड़े पर बैठा लिया।कुछ दूर चलने के बाद ही आगे से आते लोगो मे से एक आदमी बोला देखो दोनों ही घोड़े पर बैठ गए हैं बिचारे घोड़े की तो जान ही निकल रही होगी। अब दोनों घोड़े से उतर कर सोचने लगे कि अब क्या करे।थोड़ा सोचने के बाद दोनों ने एक मजबूत लकड़ी,बाँस लेकर घोड़े को उस पर बाँध लिया और अपने कंधे पर उठा कर चल दिये।लोगों के कहने के अनुसार काम करने से अपना काम भी नही होता, मजाक भी बनता है, और उसके बाद की परेशानी से स्वास्थ्य पर बुरा असर भी पड़ता है
लोग क्या कहेंगे यह विचार व्यक्ति की कार्यशैली को बहुत ज्यादा प्रभावित करता है।अक्सर मातापिता अपने बच्चों को अपने विचारों के अनुसार पालते है ।बच्चों की मर्ज़ी को नही सुना जाता।बच्चे अपने परिवार के लोगो को उम्मीदो पर पूरा उतरने के लिए मेहनत करते हैं बाद में अपने अध्यापक को प्रभावित करने के लिए औऱ बड़े होने के बाद हरेक काम करने से पहले वो अच्छी तरह देखते हैं कि उनके कामो पर अन्य लोगों की क्या प्रतिक्रिया होगी ।परन्तु जो अपने व्यक्तित्व को उभारने के लिए काम करते है अपनी खुशी का भी ध्यान रखते है और उनका व्यवहार ज्यादा अच्छा होता है वह अपने को और अपने आसपास वालों को खुश रखते हैं।.
अपने अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा बनाने के लिए आज से ही शुरूआत करनी होगी। लोगों की हरेक बात को मानने की बजाए सोचे आप वह काम करने में खुशी महसूस करेंगे या नहीं अगर सामने वाले कि बात न मानी जाए तो कोई नुकसान तो नहीं है।
जिस काम या जिस बात को करने से अच्छा लगे। वही करना चाहिए। केवल लोगों के लिए काम नहीं करे। पूरे दिन में एक काम अपनी खुशी के लिए जरूर करे।
मन को खुश करने के लिए अपने मन पसन्द कपड़े पहने।
दिन में किसी की मदद करने की कोशिश करें
सबकी बातों का जवाब देते समय चेहरे पर मुस्कुराहट बनाये रखें। धीरे धीरे आपके चारो तरफ से नकारात्मकता दूर हो जाएगी।
जब अपने मन की सुनना शुरू कर देते हैं तो सब कुछ अच्छा लगता है और आसपास के माहौल से शिकायत कम होने लगती हैं यही प्रसन्नता की शुरुआत होती हैं।