हमारे जीवन के आरम्भ से ही कुछ विशेष कर्मकांड शुरू हो जाते हैं। जिनमे से कुछ तो हर साल आते है और विशेष रूप से उनका पालन प्रत्येक वर्ष किया जाता है। कुछ समय,उम्र अवस्था के अनुसार निभाये जाते है जैसे नवजात शिशु के बाल उतरवाना ( मुंडन संस्कार ), पहली बार बालक को अन्न खिलाना (अन्न प्राशन संस्कार) हरेक त्यौहार, रीति-रिवाज, रस्मों, व्रत और उत्सव से जुड़ी अनेक कहानियां हैं जिनमें कोई न कोई संदेश छुपा हुआ होता है, क्योंकि आजकल त्योहारों का मौसम चल रहा है। अभी नाग पंचमी, ओकद्वास, ऋषि पंचमी, रक्षा बंधन, गूगा नवमी कृष्ण जन्माष्टमी पिठौरी अमावस्या आदि बहुत से त्यौहार निकले है और कजरी तीज, दुबड़ी साते, गणेश चतुर्थी से अनन्त चौदस तक का गणेश उत्सव,नवरात्रि, दशहरा, करवाचौथ, अहोई अष्टमी, दीवाली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज आदि बहुत से त्यौहार आने वाले हैं। तो केभी कभी प्राचीन, धार्मिक कहानियों जो इन बिशेष अवसरों पर बैठ कर एक दूसरे को सुनाई जाती हैं वह भी आपको बताऊँगी।
एक बुढ़िया माई थी। एक झोपड़ी मेंअकेली रहती थी एक लड़का था जो रोजगार के लिए शहर से बाहर रहता था। पति का स्वर्गवास हो गया था। रोज सुबह आँगन की मिट्टी से गणपतिं जी की छोटी सी प्रतिमा बनाती ,उनकी पूजा पाठ करती,ओर जब उनपर जल चढ़ाती तो मिट्टी भ जाती थी। उसका वर्षो से यही नियम चल रहा था। एक दिन उसने देखा साथ वाली जमीन पर एक सेठ का मकान बनना शुरू हो गया और बहुत सारे राजगीर (मकान बनाने वाले मजदूर) काम कर रहे है। उसने देखा कि मजदूरों ने जो दीवार बनाई है उस पर खूब पानी का छिड़काव कर रहे हैं पर दीवार को कुछ नहीं हुआ।
अब माई ने जाकर मजदूरों से पूछा कि मैं तो रोज गणेशजी बनाती हूं लेकिन पानी डालते ही वह गल जाते हैं, और फिर गिर जाते हैं मुझे तो रोज नये बनाने पड़ते है। मजदूरों ने बताया कि वह पत्थर पर काम कर रहे हैं पत्थर पानी से खराब नहीं होगा। माई को ये बात एकदम नई और बहुत अच्छी लगी। उसने एक छोटी वाली अंगुली के इशारे से कहा कि मेरे लिए भी पत्थर के इतने छोटे से गणेशजी बना दो ।मेरे पास पैसे नही है लेकिन मैं खूब सारी दुआयें दूँगी। कामगारो ने हँस कर कहा कि जितने समय में तेरा काम करेंगे उतने में तो एक पूरी दीवार खड़ी कर देंगे। माई बिचारि दुखी मन से चली गई पर उसके बाद कारीगर दीवार बनाये तो वह सीधी नही बनी उन्होंने दीवार गिरा कर दुबारा बनाई पर फिर भी नही बनी। शाम को सेठ जी ने आकर देखा कि आज कोई काम नहीं किया है उसने कारण पूछा तो कामगारों ने सारी बात बताईऔर बताया कि, तभी से ये दीवार सीधी नही बन रही। सेठजी ने सारी बात बहुत ध्यान से सुनी फिर माई को आदर के साथ बुलाकर पत्थर के गणपति जी बनवाकर दे दिए औऱ मिस्त्रियों से मन लगाकर काम करने को कहा।इसके बाद दीवार भी ठीक बन गई।
इस कहानी को समझने का सबका नजरिया अलग हो सकता है। पर मुख्य बात ये है कि जब कोई जरूरत में होता है और हम मदद करने के लिए सामर्थ्य होते हुए भी मदद ना करें तो अपने मन का अपराध भाव ही काम बिगाड़ सकता है। अगर रास्ते में कोई बुजुर्ग मदद की आशा रखें और हम उसकी मदद ना करें कि हमारे पास समय नहीं है तो उसके बाद अपने अवचेतन मन में यही बात रहेगी कि समय होता तो मदद कर देते। जहाँ तक सँभव हो मन की बात सुनने की कोशिश करनी चाहिए।
जरूरतमंद की हर संभव मदद करके असीम सुख मिलता है औऱ मन भी प्रसन्न हो जाता है और वह प्रसन्नता कहीं से मूल्य देकर खरीदी नहीं जा सकती।वह खुशी अनमोल होती है, इसलिए किसी मजबूर,परेशान इंसान को देखकर अनदेखा करने के स्थान पर अपने कीमती और सीमित समय में से कुछ बहुमूल्य क्षण उसके लिये निकाल कर देखिए, आपको बहुत खूबसूरत आत्मिक आनन्द और शांति का अनुभव होगा। जिससे चेहरे पर नई चमक आ जायेगी।
खुश रहो,स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।
एक बुढ़िया माई थी। एक झोपड़ी मेंअकेली रहती थी एक लड़का था जो रोजगार के लिए शहर से बाहर रहता था। पति का स्वर्गवास हो गया था। रोज सुबह आँगन की मिट्टी से गणपतिं जी की छोटी सी प्रतिमा बनाती ,उनकी पूजा पाठ करती,ओर जब उनपर जल चढ़ाती तो मिट्टी भ जाती थी। उसका वर्षो से यही नियम चल रहा था। एक दिन उसने देखा साथ वाली जमीन पर एक सेठ का मकान बनना शुरू हो गया और बहुत सारे राजगीर (मकान बनाने वाले मजदूर) काम कर रहे है। उसने देखा कि मजदूरों ने जो दीवार बनाई है उस पर खूब पानी का छिड़काव कर रहे हैं पर दीवार को कुछ नहीं हुआ।
अब माई ने जाकर मजदूरों से पूछा कि मैं तो रोज गणेशजी बनाती हूं लेकिन पानी डालते ही वह गल जाते हैं, और फिर गिर जाते हैं मुझे तो रोज नये बनाने पड़ते है। मजदूरों ने बताया कि वह पत्थर पर काम कर रहे हैं पत्थर पानी से खराब नहीं होगा। माई को ये बात एकदम नई और बहुत अच्छी लगी। उसने एक छोटी वाली अंगुली के इशारे से कहा कि मेरे लिए भी पत्थर के इतने छोटे से गणेशजी बना दो ।मेरे पास पैसे नही है लेकिन मैं खूब सारी दुआयें दूँगी। कामगारो ने हँस कर कहा कि जितने समय में तेरा काम करेंगे उतने में तो एक पूरी दीवार खड़ी कर देंगे। माई बिचारि दुखी मन से चली गई पर उसके बाद कारीगर दीवार बनाये तो वह सीधी नही बनी उन्होंने दीवार गिरा कर दुबारा बनाई पर फिर भी नही बनी। शाम को सेठ जी ने आकर देखा कि आज कोई काम नहीं किया है उसने कारण पूछा तो कामगारों ने सारी बात बताईऔर बताया कि, तभी से ये दीवार सीधी नही बन रही। सेठजी ने सारी बात बहुत ध्यान से सुनी फिर माई को आदर के साथ बुलाकर पत्थर के गणपति जी बनवाकर दे दिए औऱ मिस्त्रियों से मन लगाकर काम करने को कहा।इसके बाद दीवार भी ठीक बन गई।
इस कहानी को समझने का सबका नजरिया अलग हो सकता है। पर मुख्य बात ये है कि जब कोई जरूरत में होता है और हम मदद करने के लिए सामर्थ्य होते हुए भी मदद ना करें तो अपने मन का अपराध भाव ही काम बिगाड़ सकता है। अगर रास्ते में कोई बुजुर्ग मदद की आशा रखें और हम उसकी मदद ना करें कि हमारे पास समय नहीं है तो उसके बाद अपने अवचेतन मन में यही बात रहेगी कि समय होता तो मदद कर देते। जहाँ तक सँभव हो मन की बात सुनने की कोशिश करनी चाहिए।
जरूरतमंद की हर संभव मदद करके असीम सुख मिलता है औऱ मन भी प्रसन्न हो जाता है और वह प्रसन्नता कहीं से मूल्य देकर खरीदी नहीं जा सकती।वह खुशी अनमोल होती है, इसलिए किसी मजबूर,परेशान इंसान को देखकर अनदेखा करने के स्थान पर अपने कीमती और सीमित समय में से कुछ बहुमूल्य क्षण उसके लिये निकाल कर देखिए, आपको बहुत खूबसूरत आत्मिक आनन्द और शांति का अनुभव होगा। जिससे चेहरे पर नई चमक आ जायेगी।
खुश रहो,स्वस्थ रहो, व्यस्त रहो, मस्त रहो।
0 comments:
Post a Comment