"नहीं" का सही उपयोग
आज के लोकप्रिय औऱ अधिक बोले जाने बाले शब्दों में सॉरी, प्लीज के साथ एक शब्द और प्रचलन में आ रहा है और वह है ' नहीँ '।
"नहीं" एक ऐसा शब्द है जो कई रूप में हमारी रोज की जिंदगी के साथ जुड़ गया है। इसे सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से अपने जीवन में प्रयोग करके हम अपनी समस्याओ को कम कर सकते हैं।यह शब्द कुछ चीजें बिगाड़ सकता है तो कुछ चीजें बना सकता है। अभी
सकारात्मक ऊर्जा पाने के लिए बात करते हैं। अच्छा स्वभाव, चेहरे की चमक, चहकती आवाज, खुशी भरी बातचीत, औऱ हर परेशानी/दुख तकलीफ में भी अच्छाई ढूंढ लेना सकारात्मक ऊर्जा की पहचान है। सिर्फ शर्म के कारण किसी बात को मना कर देना, स्वीकार नहीं करना, ठीक नही होता।
एक बेरोजगार ब्यक्ति था। काफी समय तक उसे कोई नौकरी नही मिली तो एक दिन उसने चने खरीदे और उदास होकर समुद्र के किनारे बैठ कर चने खाते हुए सोचने लगा कि बिना रुपयो के खर्चा कैसे चलेगा। अचानक उसकी नजर एक बगुले पर पड़ी। बगुला चोंच में मछली को पकड़कर हवा में उछलता ओर चोंच में लपककर खा लेता। व्यक्ति को यह बहुत मजेदार लगा और वह ध्यान से बगुले के मछली को उछालने और वापस चोंच में पकड़ने के तरीके को देखने लगा और उसी की तरह वह भी अपने हाथ मे पकड़े चने को हवा में उछलकर मुँह में पकड़ने की कोशिश करने लगा। कुछ समय में ही उसे भी ये करतब करना आ गया।
अब वह अलग अलग चीजों को उछालकर मुँह से पकड़ने का अभ्यास करने लगा। अभ्यास करते हुई वह इतना होशियार हो गया कि तलवार को हवा में फेंक कर मुँह में पकड़ लेता था। यही खेल लोगों को दिखा कर वह पैसे कमाने लगा। एक दिन एक आदमी ने उसके खेल की तारीफ़ करते हुए उसके गुरु का नाम पूछा।व्यक्ति ने सोचा अगर वो बगुले को अपना गुरु बताएगा तो सब उसका मजाक बनाएंगे। उसने एकदम मना कर दिया कि मेरा कोई गुरु नही है। तब उस आदमी ने कहा अगर झूठ बोल कर करतब करोगे तो नुकसान उठाना पड़ेगा, पर व्यक्ति ने दुबारा साफ मना कर दिया की मेरा कोई गुरु नहीं है, और फिर जब उसने तलवार हवा में उछाली तो उसे वापस मुँह में नही लपक सका। उसने कई बार कोशिश की पर दोबारा करतब ठीक हुआ ही नहीं। यदि वो गर्व से कहता कि हा, मेरे भी गुरु है मैने एक बगुले से यह कला सीखी है तो कोई शर्म की बात नहीं थी क्योंकि यह हमारे मन के भाव होते है कि लोग क्या कहेंगे।
बचपन से सुनते हैं कि "ये चीज मत छुओ, ये चीज नही खाओ, वहाँ नही जाओ, ये नही करो"। हर समय "ना, नहीं, मत, मना, इंकार" जैसे नकारात्मक शब्दों को सुनकर हमारा अवचेतन मन ज्यादातर उन्ही शब्दों को दुहराता हैं। नतीजा होता है हमारे चारों तरफ "नही" की अधिकता बढ़ जाती है।
इस नकारात्मकता को दूर करने के लिए कुछ बदलाव करने जरूरी है।
1) पूरे दिन में कितनी बार "नही" शब्द का प्रयोग किया है?
अगले दिन कम बार "नही" शब्द का उच्चारण करना है।
2) जहाँ तक संभव हो "नही" की जगह "शायद" शब्द का प्रयोग करे।
3) किसी काम/बात को मना करने से पहले सोचें कि क्या मना करना जरूरी है? क्या वास्तव में वह काम नही किया जा सकता?
जो काम कुछ समय बाद किया जा सकता है या जो बात बाद में कही जा सकती हैं उसे मना करने से बचे
4) कोशिश करें "नही" शब्द को कह से कम प्रयोग करें।
5) अपनी बातचीत को सकारात्मक बातचीत में बदले।
6) जिस काम को करने की एक प्रतिशत भी सम्भावना हो उसके लिए कुछ अलग वाक्य बोले - कि देखते है, क्या पता ये हो जाये, करके देखने से पता लगेगा,शायद हो जाये, अभी कुछ नहीं कह सकते
7) कुछ काम ऐसे होते हैं जिनके उत्तर स्पष्ट होने चाहिए,तब "हाँ" या "नही" जरूरी होता है और उनका जवाब साफ साफ "हाँ" या "नही" में ही देना चाहिए
8) जिन बातों/कामो का उत्तर नहीं ही है उनको मना कर देना चाहिए
9) अपनी बातचीत के तरीके को बदल कर हम अपने आसपास खुश्हाली ला सकते है
10) अपनी गलती को सही करना आ जाये तो कुछ भी मुश्किल नहीँ होता। कुछ समय में ही व्यवहार में भी प्रफुल्लता महसूस होने लगेगी।
11) जहाँ जरूरत हो वहाँ ना कहने में बुराई नही है बस इस शब्द का उपयोग सीमित मात्रा में करे।
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