हमें अच्छाई देखनी चाहिए
एक लड़का जब भी अपनी खिड़की से बाहर देखता था, तो, बहुत दूर, एक सुनहरा, चमकीला ,सुंदर सा मकान दिखाई देता था। वह सोचता रहता था, कि, उस मकान में रहने वाले लोग कितने भाग्यशाली हैं. कितने अमीर, और कितने सुखी होंगे, जो, इतने सुंदर मकान में रहते हैं। एक दिन लड़के ने मातापिता से बोला, कि, वो एक मित्र से मिलने जा रहा है, शाम तक वापस आ जायेगा। वह ख़ुशी-ख़ुशी मुश्किल रास्ते को पार करके उस मकान तक पहुंच गया। वहाँ पर उसकी ही उम्र का एक लड़का था। पहले लड़के ने बताया, कि, उस सुंदर घर को देखने के लिए वह बहुत दूर से आया है। दूसरा लड़का हंसते हुए उसे अपनी खिड़की पर ले गया, और बोला, कि, एक सुंदर मकान तो मैं सामने की पहाड़ी पर देखता हूं, उसकी सतरँगी चमक इतनी सुंदर है, कि, दूर-दूर तक इतना खूबसूरत घर यहाँ कोई नहीं है। वह घर पहले लड़के का घर था। जिस पर रोशनी इस प्रकार से गिर रही थी, कि, वह घर सतरंगी, सुंदर, चमकीला दिखाई देता था।
यही हमारा हाल है। सच यही है, कि, हम दूसरों को देख कर, मन में सोच लेते हैं, कि, हम सब से ज्यादा दुखी है, हम बीमार है, दूसरे स्वस्थ और सुखी हैं। हर चीज में, सामने वाले को ज़्यादा "बेहतर" और अपने को "बिचारा" समझ कर, अपने लिए अच्छा सोच नही पाते। अपनी परिस्थितियों को ठीक करने के लिए किसी दूसरे की जरूरत नहीं होतीैं, हम स्वयं ही ठीक कर सकते हैं। अपनी अच्छाइयों को देखने की आदत बनानी होगी। अपनी कमियों को दूर करने के लिए मेहनत करनी होगी। हम बहुत अच्छा करते हैं और हमें ज्यादा अच्छा करना है यही मूल मंत्र तरक्की की सीढ़ी का काम करेगा। जब कभी निराशा या गुस्सा मन मे आने लगे तभी समझ लेना चाहिए कि अब मंजिल पास ही है और सफलता मिलने वाली है। जैसा सोचते हैं, वैसी ही परिस्थिति मिलने लगती ह। तो सफलता के लिए सोचना ही, सफल होने की पहचान है।
यही हमारा हाल है। सच यही है, कि, हम दूसरों को देख कर, मन में सोच लेते हैं, कि, हम सब से ज्यादा दुखी है, हम बीमार है, दूसरे स्वस्थ और सुखी हैं। हर चीज में, सामने वाले को ज़्यादा "बेहतर" और अपने को "बिचारा" समझ कर, अपने लिए अच्छा सोच नही पाते। अपनी परिस्थितियों को ठीक करने के लिए किसी दूसरे की जरूरत नहीं होतीैं, हम स्वयं ही ठीक कर सकते हैं। अपनी अच्छाइयों को देखने की आदत बनानी होगी। अपनी कमियों को दूर करने के लिए मेहनत करनी होगी। हम बहुत अच्छा करते हैं और हमें ज्यादा अच्छा करना है यही मूल मंत्र तरक्की की सीढ़ी का काम करेगा। जब कभी निराशा या गुस्सा मन मे आने लगे तभी समझ लेना चाहिए कि अब मंजिल पास ही है और सफलता मिलने वाली है। जैसा सोचते हैं, वैसी ही परिस्थिति मिलने लगती ह। तो सफलता के लिए सोचना ही, सफल होने की पहचान है।
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